जीवन के सफर में पिता वट बरगद की छाया है, लालन-पालन के संघर्षो में पत्थर जैसी काया
पानीपत में भारतीय संस्कृति एवं भाषा प्रचार परिषद करनाल एवं बिसरिया शिक्षा सेवा समिति लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में काव्य संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
जागरण संवाददाता, पानीपत : भारतीय संस्कृति एवं भाषा प्रचार परिषद करनाल एवं बिसरिया शिक्षा सेवा समिति लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाइन छठी राष्ट्रीय आध्यात्मिक काव्य संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संयोजिका रचना गुप्ता ने बताया कि गोष्ठी का आयोजन संस्था के संस्थापक रामेश्वर दयाल गोयल के निर्देशन में हुआ। कार्यक्रम के अध्यक्ष शामली के कवि प्रीतम सिंह प्रीतम व मुख्य अतिथि जबलपुर से संध्या जैन श्रुति रहे। संचालन कवि भारत भूषण वर्मा ने किया। उन्होंने मातृ-पितृपूजन दिवस पर अपनी रचना सुनाते हुए कहा कि रिश्ता के संसार में सुखी वही इंसान, भूषण सिर जिसके पिता वही है भाग्यवान।
चमोली उत्तराखंड के कवि संजय भारती ने कविता सुनाते हुए कहा कि जीवन के सफर में पिता वट बरगद की छाया है, लालन-पालन के संघर्षो में पत्थर जैसी काया है। कोटा राजस्थान से अरिनीता पांचाल ने कहा कि राम-रहीम सब पूजे जाते सब धर्मों का दुलारा है, हिदू मुस्लिम सिख ईसाई एकता व भाईचारा है। जोधपुर से छगनराज राव ने कहा कि हाथ रोटी खिलाते दूध घी में चूर, साफ छवि वाले पिताजी थे नहीं मगरूर। प्रीतम सिंह प्रीतम ने नाम महिमा सुनाते हुए कहा कि लगन लगी जो नाम की मेटे पर की पीर, पर के अंदर देख ले तू खुद की तकदीर। सुल्तानपुर से हरि नाथ शुक्ल ने कहा कि जीना न आया यह जीवन बीत गया, छलक-छलक कर वर्षो तक घट-जीवन रीत गया। भिवाड़ी से इंदिरा गुप्ता ने कहा कि साल कितने बाद फिर वैसा ही मंजर नजर छा गया, भूला हुआ एक हादसा मर्म को झुलसा गया। जोधपुर से दीपा परिहार, जम्मू से मिताली सहगल, हरिद्वार से दीनदयाल दीक्षित, पंचकूला से सुदेश मोदगिल नूर, मैनपुरी से चंद्र वर्मा चंद्र ने अपनी माता-पिता विषयक रचनाओं से समां बांधा। काव्य पाठ के आखिर में ऑनलाइन सम्मान समारोह आयोजित हुआ। पंचम आध्यात्मिक कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया।