पत्नी से लड़ाई में बेटी को भूला तो कोर्ट ने पिता को याद दिलाया फर्ज Panipat News
माता पिता के बीच चल रही अनबन का खामियाजा बेटी को उठाना पड़ा तो वह कोर्ट पहुंच गई। कोर्ट ने न सिर्फ फटकार लगाई बल्कि पिता को एक बेटी के प्रति उसका फर्ज भी याद दिलाया।
पानीपत, [राज सिंह]। दंपतियों के बीच तलाक भले हो जाए, लेकिन वे संतानों के प्रति संवेदनशील रहते हैं। रहना ही चाहिए, लेकिन पत्नी से तलाक की जंग में यहां एक पिता ने अपनी बेटी की उपेक्षा करते हुए उसके पासपोर्ट नवीनीकरण फार्म पर हस्ताक्षर करने से भी इन्कार कर दिया। आखिरकार मामला कोर्ट पहुंचा और जब वहां से फटकार लगी तो पिता को हस्ताक्षर करने ही पड़े। पिता के हस्ताक्षर इसलिए आवश्यक थे, क्योंकि बेटी नाबालिग है। उसे माता-पिता, दोनों के ही हस्ताक्षर की जरूरत थी।
पहले दंपती बेटी के साथ अमेरिका में रह रहे थे। बाद में दोनों भारत लौट आए। 16 वर्षीय बेटी के पिता गुरुग्राम में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते हैं। पति-पत्नी में अनबन हुई तो मार्च 2012 में दोनों अलग रहने लगे। दोनों के तलाक का केस कोर्ट में विचाराधीन है। शिक्षक पत्नी बेटी के साथ पानीपत की यमुना एन्क्लेव सोसाइटी में रह रही हैं। नाबालिग को पासपोर्ट के नवीनीकरण फार्म पर पिता के हस्ताक्षर चाहिए थे। पिता ने इन्कार कर दिया तो बेटी ने बाल कल्याण समिति कार्यालय में प्रार्थना पत्र दिया। तीन बार नोटिस के बाद भी पिता पेश नहीं हुए तो समिति ने आदेश जारी कर दिए। पिता ने कोर्ट में आदेश को चुनौती दी। कोर्ट ने 25 मई, 2019 को समन भेजकर बुलवाया।
कोर्ट ने पिता को समझाया
समिति की चेयरपर्सन पद्मा रानी ने बताया कि उन्होंने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धाराओं का हवाला देकर नाबालिग के अधिकारों को कोर्ट के समक्ष रखा। कोर्ट ने बेटी के पासपोर्ट फार्म पर हस्ताक्षर करने के लिए पिता को समझाया। आखिरकार पिता ने याचिका वापस लेते हुए, हस्ताक्षर कर दिए।
मां-बाप पीछे नहीं हट सकते
जेजे एक्ट के तहत बच्चे के भरण-पोषण से लेकर संरक्षण तक करने का जिम्मा माता-पिता का होता है। एडवोकेट अजीत दहिया ने बताया कि सामर्थ्य अनुसार नाबालिग बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य सहित अन्य सुविधाएं देनी होती हैं।