संघर्ष की अनोखी कहानी: पिता जिस ग्राउंड में करता था सफाई का काम, बेटी वहीं से बनी स्टार
शाहाबाद के ओमप्रकाश 15 वर्षों से ग्राउंडमैन हैं। अब उनकी बेटी रीत ने हॉकी में बड़ा मुकाम हासिल किया है। सरकार ने रीत को 10 लाख रुपये दिए हैं।
पानीपत/कुरुक्षेत्र, [जतिंद्र सिंह चुघ]। यह कहानी एक पिता के संघर्ष और बेटी के हौसले की है। 15 सालों से जिस मैदान पर पिता को ग्राउंडमैन के रूप में कभी सफाई तो कभी गेट बंद करते देखा, उसी पर खेलकर बेटी ने सफलता की वह इबारत लिखी, जिस पर उसके पिता ही नहीं पूरे क्षे के लोगों को नाज है। यहां हम बात कर रहे हैं भारतीय जूनियर महिला हॉकी टीम की सदस्य रीत की।
पिता के संघर्ष को बेटी ने किया सार्थक, गरीबी के बावजूद पाया मुकाम, राष्ट्रीय हॉकी टीम में चुनी गई
रीत के पिता ओमप्रकाश डेढ़ दशक से कुरुक्षेत्र के शाहाबाद में हॉकी मैदान पर अस्थायी ग्राउंडमैन के तौर पर कार्यरत हैं। रीत ने दूसरी लड़कियाें की देखादेखी उसने हॉकी की स्टिक थाम ली। इसी मैदान पर उसने हॉकी सीखी और उसकी बारीकियां के बारे में जाना। गरीबी और अभाव से संघर्ष करते हुए पिता ने वह सब किया जो वह कर सकते थे। पिता के संघर्ष को बेटी ने भी सार्थक किया। लंबा सफर तय कर रीत राष्ट्रीय जूनियर हॉकी टीम में चुनी गई तो पिता ओमप्रकाश की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। यूथ ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन को देख हॉकी इंडिया ने रीत को 10 लाख रुपये की राशि प्रदान की है।
चार साल की उम्र में थामी हॉकी स्टिक
ओमप्रकाश बताते हैं कि बेटी रीत ने चार साल की उम्र हॉकी स्टिक थामी थी। हॉकी में दिलचस्पी काे देखा तो करीब 15 साल पहले द्रोणाचार्य अवार्डी कोच बलदेव सिंह के समक्ष बेटी को हॉकी की ट्रेनिंग देने की इच्छा जाहिर की। इसके बाद बलेदव सिंह ने चार वर्ष की आयु में ही रीत के हाथों में हॉकी स्टिक थमा दी।
ओमप्रकाश ने बताया कि उनका सपना था कि बेटी रीत भी अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी जसजीत कौर, राजविंद्र कौर, सुमनबाला, रानी रामपाल, रमणीक कौर, सुरेंद्र कौर की तरह भारतीय महिला महिला हॉकी टीम में खेले। कोच बलदेव सिंह ने उनके इस सपने को साकार कर दिया।
2018 में यूथ ओलंपिक में चयन
वर्ष 2018 में रीत का चयन यूथ ओलंपिक के लिए हुआ। यह परिवार के लिए सबसे खुशी का पल था। ओमप्रकाश के अनुसार रीत ने कई बार जूनियर हॉकी टीम में प्रतिभा का लोहा मनवाया है। अब वह चाहते हैं कि बेटी सीनियर टीम में पहुंचकर देश के लिए खेले।
जूते भी नहीं थे : रीत
रीत ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा, ' मैं पिता के सपनों को जानती थी, वह मुझे हॉकी के खेल में ऊंचे मुकाम पर पहुंचाना चाहते थे। लेकिन, घर के हालात भी छिपे नहीं थे। गरीबी का आलम यह था कि खेल के दौरान पहनने के लिए सामान्य जूते तक नहीं थे। हॉकी स्टिक व अन्य सभी खेल का सामान उनके कोच बलदेव सिंह ने दिया। पिता को मैदान साफ करते हुए, गेट को बंद करते हुए देखा करती थी। अभ्यास करते सोचती थी कि एक दिन पिता के सपनों को सच करना है।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुलाकात कर बढ़ाया था उत्साह
वर्ष 2018 में 7 से 14 अक्टूबर तक अर्जेंटीना में हुए यूथ ओलंपिक में उम्दा प्रदर्शन करने वाली शाहाबाद की हॉकी खिलाड़ी रीत को 10 लाख रुपये की राशि पुरस्कार स्वरूप हॉकी इंडिया से मिली है। यह राशि तीन दिन पहले ही उसके खाते में आई है। भारत ने इस प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल हासिल किया था। प्रतियोगिता में रीत ने सात गोल दागकर प्रतिद्वंद्वी टीमों के पसीने छुड़ाए थे। भारत लौटने पर दिल्ली में पीएम मोदी ने टीम से मुलाकात कर हौसला भी बढ़ाया था।
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