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भक्ति करना हर एक की व्यक्तिगत यात्रा : सुदीक्षा महाराज

ब्रह्मांड की हर एक वस्तु विश्वास पर ही टिकी है। विश्वास ऐसा न हो कि वास्तविक रूप में कुछ और मन में कुछ अन्य कल्पना हो जाए। इससे तो हम अंधविश्वासों की ओर बढ़ जाते हैं। किसी चीज की वास्तविकता और उसके उद्देश्य को नहीं जानकर काम करना ही अंधविश्वास की जड़ है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 Nov 2021 08:04 PM (IST)Updated: Sun, 28 Nov 2021 08:04 PM (IST)
भक्ति करना हर एक की व्यक्तिगत यात्रा : सुदीक्षा महाराज
भक्ति करना हर एक की व्यक्तिगत यात्रा : सुदीक्षा महाराज

जागरण संवाददाता, समालखा: ब्रह्मांड की हर एक वस्तु विश्वास पर ही टिकी है। विश्वास ऐसा न हो कि वास्तविक रूप में कुछ और मन में कुछ अन्य कल्पना हो जाए। इससे तो हम अंधविश्वासों की ओर बढ़ जाते हैं। किसी चीज की वास्तविकता और उसके उद्देश्य को नहीं जानकर काम करना ही अंधविश्वास की जड़ है। किसी काल्पनिक बात पर तब तक विश्वास नहीं होता, जब तक हम उसे साक्षात नहीं देखते। प्रभु, परमात्मा व ईश्वर पर भी हमारा विश्वास तभी परिपक्व होता है जब ब्रह्मज्ञान से उन्हें जानने का प्रयास करते हैं। ईश्वर पर ²ढ़ विश्वास रखकर हम उनकी अनुभूति कर जीवन को सार्थक बना सकते हैं। भक्ति हमें वास्तविक जीवन जीते हुए हर सांस में परमात्मा का अहसास कराने का नाम है। यह हर एक की व्यक्तिगत यात्रा है। यह उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने वर्चुअल निरंकारी संत समागम के सत्संग समारोह में व्यक्त किए।

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उन्होंने ने कहा कि विश्वास और अंध विश्वास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अंध विश्वास से भ्रांतियां उत्पन्न होती हैं। डर पैदा होता और मन में अहंकार का प्रवेश होता है। मन में बुरे ख्याल आते हैं। कलह-कलेष का सामना करना पड़ता है। ब्रह्मज्ञान से हम इससे दूर रह सकते हैं। परिवेश, व्यक्ति अथवा वस्तु से अपने को दूर रखने का नाम भक्ति नहीं है। हर दिन ईश्वर से जुड़े रहना भक्तिभाव को प्रबल करता है। इच्छाएं अनंत होती हैं। सभी पूरी नहीं होती। इससे उदास नहीं होना चाहिए। सेवादल ने रैली से दिया मानवता का संदेश

रविवार दोपहर सेवादल की रैली में करीब दो सौ भाई-बहनों ने भाग लिया। खेल, व्यायाम, करतब सहित गीत एवं लघुनाटिकाओं से मानवता का संदेश दिया। वृक्षारोपण के फायदे, दुर्घटना में घायलों की मदद देने के लिए प्रेरित किया। माता सुदीक्षा ने कहा कि तन-मन को स्वस्थ रखकर समर्पित भाव से सेवा करना हर भक्त के लिए जरूरी होता है। भले वह सेवादल की वर्दी पहनकर करता हो अथवा बिना वर्दी पहने। हर एक में परमात्मा को देखकर हम घर, समाज, मानवता के लिए मन से सेवा कर सकते हैं। सेवा करते वक्त विवेक और चेतनता की भी निरंतर आवश्यकता होती है।


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