भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान से हिंदुस्तान लौटे बुजुर्गों ने बयां की विभाजन की विभीषिका
भारत पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त दुख और पीड़ा का दंश झेल चुके कैथल में रह रहे बुजुर्गों के सम्मान के लिए विभाजन की विभिषिका पर एक कार्यक्रम किया गया। इस दौरान सांसद नायब सैनी ने कहा कि बुजुर्गों ने विस्थापित होते हुए दर्दनाक मंजर देखें हैं।
कैथल, जागरण संवाददाता। बंटवारे के वक्त हमने होश में वो मंजर देखा है, जब हिंदुस्तान के एक हिस्से से हमें निकालकर यहां भेजा गया और जिस तरह से भेजा गया उसको याद करके आज भी पूरा शरीर सिहर जाता है। खून से लथपथ रेल गाडिय़ां जब हिंदुस्तान के इस हिस्से में पहुंचती थी तो उसमें 70 से 80 प्रतिशत लोग विभाजन के इस दंश की मार झेल चुके होते थे। मृत्यु का ग्रास बन चुके होते थे। जो बचे हुए यहां पहुंचे, वह लूटे-पीटे अपना बसा-बसाया घर और परिवार छोड़ कर पहुंचे।
विस्थापित होते हुए लोगों ने सहे हैं दर्दनाक मंजर-नायब सैनी
उन्होंने फिर से यहां मेहनत की, लेकिन अपने स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए किसी के आगे हाथ तक नहीं फैलाया। यह पीड़ा उन बुजुर्गों की है, जिन्होंने आंसू भरी आंखों से अपनी-अपनी व्यथा सुनाई और सबके आंखों के कोर गीले हो गए। 82 वर्षीय प्रो. एएल मदान, 98 साल के बहादुर चंद मदान, हरभगवान मदान, सीएल वधवा, रघुवीर बत्रा, लक्ष्मणदास गिरधर, दर्शनलाल मनचंदा, सोमनाथ मदान और अविनाश बठला सरीखे कितनों ने यह मंजर देखा-सहा है।
ये लोग रहे मौजूद
बता दें कि भारत पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त दुख और पीड़ा का दंश झेल चुके कैथल में रह रहे बुजुर्गों के सम्मान के लिए विभाजन की विभिषिका पर एक कार्यक्रम किया गया। कार्यक्रम संयोजक एवं हैफेड के चेयरमैन कैलाश भगत द्वारा आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में सांसद नायब सैनी बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे। साथ ही भाजपा के जिला अध्यक्ष अशोक गुर्जर विशेष अतिथि के रूप में मौजूद रहे। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के इस अवसर पर पंजाबी समाज की विभिन्न संस्थाओं में पंजाबी वेलफेयर सभा के प्रधान राजकुमार मुखीजा, पंजाबी सेवा सदन के प्रधान प्रदर्शन परुथी, रमेश पाहवा, कृष्ण नारंग, इंद्रजीत सरदाना, नवीन मल्होत्रा, नरेंद्र निझावन, वीके चावला भी मौजूद रहे।
सांसद नायब सैनी ने कहा कि उन्होंने जब-जब भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल और चेयरमैन कैलाश भगत से उनके बुजुर्गों के साथ बंटवारे के वक्त की ज्यादतियों के बारे में सुना है तो पता चला है कि उन्होंने विस्थापित होते हुए दर्दनाक मंजर देखें हैं। उसके बाद अपनी मेहनत के बल पर जो तरक्की की है उससे इनके जज्बे को सलाम करने को दिल करता है। संयोजक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष कैलाश भगत ने अपने बुजुर्गों से प्राप्त जानकारियों के आधार पर उन लम्हों को याद किया। उन्होंने कहा कि 1947 से अब तक 75 सालों में किसी ने भी बंटवारे वक्त के भुक्तभोगियों के सम्मान में कोई दिवस मनाने का साहस नहीं किया था। यह केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल को ही श्रेय है।
हम रिफ्यूजी नहीं, हिंदुस्तानी थे हिंदुस्तानी हैं
अखिल भारतीय अरोड़ खत्री (क्षत्रिय) महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जींद से डा. धर्मेंद्र बत्रा ने कहा कि जो आज तक हमें हमारे बुजुर्गों को विस्थापित होने के बाद रिफ्यूजी का नाम देते थे वो पूरी तरह से सच्चाई से परे हैं। सच्चाई यह है कि उस क्षेत्र में रहते हुए भी हमारे परिवार अखंड हिंदुस्तान का हिस्सा थे जो पश्चिमी पंजाब का क्षेत्र पड़ता था। जब हम लोग यहां आए तो भी एक अखंड भारत के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में शिफ्ट हुए थे। इस लिहाज से किसी भी तरह से रिफ्यूजी कहना तर्कसंगत नहीं है।