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आठ सगी बहनें, घर में खो खो खेलते-खेलते दो तो नेशनल तक पहुंच गईं

पानीपत के समालखा के गांव मनाना की हैं ये बेटियां। पढ़ाई भी करती हैं और खेलती भी हैं। गांव को इन पर गर्व। पिता ने कहा, सपने को मरने नहीं दूंगा। आगे बढ़ाने की हर संभव कोशिश करेंगे।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 04:20 PM (IST)Updated: Sun, 28 Oct 2018 05:10 PM (IST)
आठ सगी बहनें, घर में खो खो खेलते-खेलते दो तो नेशनल तक पहुंच गईं
आठ सगी बहनें, घर में खो खो खेलते-खेलते दो तो नेशनल तक पहुंच गईं

पानीपत [रामकुमार कौशिक] - हरियाणा के पानीपत में एक गांव है मनाना। बेटियों के जन्‍म पर यहां कोई शर्मिंदा नहीं होता। इसी गांव के एक घर में आठ बेटियां हैं। पिता हैं मोटर मैकेनिक। गरीबी और तंगी के बावजूद उन्‍होंने कभी ये नहीं कहा कि बेटी घर से बाहर निकलो। खेलने मत जाओ। समाज में अगर कोई टोकता तो उसकी परवाह नहीं की। उसी की बेटियां हम खेल के माध्‍यम से गांव का भी नाम रोशन कर रही हैं। पहले घर में खो-खो खेलती थीं। मैदान प्रैक्टिस करने लगीं तो दो बेटियां तो स्‍टेट और नेशनल स्‍तर पर पहुंच गई हैं। पढ़ें बहनों की यह कहानी।

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समालखा नेशनल हाईवे से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बसा है पानीपत जिले का गांव मनाना। यहां बेटों के साथ बेटियों की रग-रग में खो खो का खेल समाया है। इन्हीं में से अपनी मेहनत के बल पर मोटर मैकेनिक शीशपाल की दो बेटियां सविता और सरिता आज स्टेट से लेकर नेशनल स्तर पर अपने खेल का लोहा मनवा रही है। हाल में भी एक जहां इंटर कालेज खेलने के लिए अभ्यास में लगी है तो दूसरी नेशनल में पहली बार सलेक्शन होने पर सुबह शाम पसीना बहा रही है। खिलाड़ी सविता बताती है कि हम आठ बहनें हैं। भाई नहीं है। पिता शीशपाल मोटर मैकेनिक हैं। मां रेखा गृहि‍णी हैं। सबसे बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। मैं तीसरे नंबर की हूं। गांव में खो खो ज्यादा खेला जाता है। इसलिए परिवार वालों ने प्रिंसिपल के कहने पर मुझे खो खो के मैदान में उतार दिया। फिर क्या था, मैंने मिले मौके को हाथ से नहीं जाने दिया और सुबह शाम कड़ा अभ्यास कर पहले जिले और प्रदेश स्तर की टीम का हिस्सा बनी और फिर नेशनल स्तर तक पहुंच गोल्ड तक जीता। इसके बाद उसकी पांचवें नंबर की बहन सरिता भी मैदान में उतर आई। वो भी एक अच्छी खिलाड़ी है और अबकी बार उसका नेशनल टूर्नामेंट के लिए चयन हो चुका है।

पिता का सपना करेंगे पूरा
सरिता ने बताया कि उसके पिता सारी बहनों से बराबर प्यार करते हैं। वो हमेशा हमें बेटों की तरह आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं और कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने देते हैं। चाहे कैसे भी हालात हों, वो हमें खेल की हर चीज मुहैया कराते हैं । ताकि हम खेल से कुछ बन सकें। इसलिए हमारा मकसद भी पिता के सपने को साकार करना है।

मेरी बेटियां, बेटों से कम नहीं
शीशपाल का कहना है कि मेरी बेटियां, बेटों से कम नहीं हैं। मुझे उनके ऊपर पूरा गर्व है। इसलिए मैं चाहता हूं की मेरी बेटियां एक दिन देश के लिए खेलकर मेडल जीत हमारे साथ देश, प्रदेश व गांव का नाम रोशन करें। उन्होंने कहा कि कोई नौकरी न होने के कारण परिवार को चलाने में तंगी जरूर होती है। परंतु बेटियों के खेल के आगे मैं उस तंगी को आने नहीं देता।

किसने क्या है जीता
सविता सिवाह स्थित चौधरी ताऊ देवीलाल कॉलेज से बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ती है। वह आठ बार नेशनल खेल दो बार गोल्ड जीत चुकी है। जबकि स्टेट लेवल पर 18 बार खेल ले चुकी है। हाल में इंटर कालेज टूर्नामेंट की तैयारी में लगी है। वहीं छोटी बहन सरिता गांव के ही स्कूल में आठवीं में पढ़ती है। तीन बार स्टेट खेल चुकी है और नेशनल में पहली बार चयन हुआ है।


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