सपने खूब दिखाए, एक साल बाद भी नहीं मिली लेजर मशीन
पानीपत के सिविल अस्पताल के डॉक्टरों ने भी स्किन रोग ओपीडी में लेजर थैरेपी नहीं हो पा रही है।
जागरण संवाददाता, पानीपत : सिविल अस्पताल के डॉक्टरों ने भी स्किन रोग ओपीडी में लेजर थैरेपी मशीन आने के मरीजों को खूब सपने दिखाए, लेकिन एक वर्ष बाद भी ढाक के तीन पात जैसी स्थिति है। लेजर थैरेपी एक कॉमन ट्रीटमेंट है। त्वचा के दाग-धब्बों को मिटाने, शरीर के अनचाहे बालों को हटाने और मुंहासों के बाद चेहरे पर पड़े गड्ढों को भरने में यह तकनीक कारगर है।
सिविल अस्पताल में प्रत्येक दिन इस समस्याओं को लेकर 70-80 मरीज पहुंचते हैं। इनमें युवक-युवती सहित महिलाएं शामिल हैं। स्किन स्पेशलिस्ट डॉ. रजनी खरे ने अस्पताल में ज्वाइन करते समय कहा था कि युवा स्किन के दाग-धब्बों, कील-मुंहासे और चोट के निशानों के प्रति काफी संवेदनशील है। अनचाहे बाल-दाग देखकर यह पीढ़ी तनाव में रहती है। ऐसे मरीजों को इलाज मुहैया कराने के लिए लेजर मशीन की डिमांड की गई है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आलोक जैन ने दावा किया था कि नई मशीन आने में समय लगेगा। कुरुक्षेत्र से मशीन मांगी गई है। इन दावों को एक साल बीत चुका है। डॉ. रजनी खरे लंबी छुट्टी पर हैं। स्वास्थ्य विभाग को मुख्यालय से मशीन नहीं मिली और न ही कुरुक्षेत्र से मशीन ली जा सकी है।
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ऐसे काम करती है मशीन
लेजर थैरेपी में लाइट की तेज किरणें ट्रीटमेंट किए जाने वाले हिस्से पर डाली जाती हैं। यह स्किन के ऊपर या अंदर वाली लेयर तक जाकर अनचाहे हिस्से को बर्न कर देती है। इससे बर्थ मार्क्स, स्ट्रैच मार्क्स व झाइयां आदि खत्म हो जाते हैं। चोट के निशानों के रंगों को पहचानकर उसके हिसाब से लेजर दी जाती है। लेजर फेशियल में स्किन के ऊपर की लेयर लेजर के जरिए बर्न कर दी जाती है, जिससे नई लेयर दिखे। इससे नई लेयर ग्लो करती है। वर्जन :
लेजर ट्रीटमेंट मशीन महंगी है और मुख्यालय से मिलनी है। डॉ. खरे के छुट्टी पर जाने के बाद एक डॉक्टर हैं। रोजाना करीब 150-170 मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं। एक डॉक्टर के लिए लेजर ट्रीटमेंट के लिए समय निकालना मुश्किल है। डॉक्टर की संख्या बढ़ने पर दोबारा से मशीन की डिमांड की जाएगी।
-डॉ. संतलाल वर्मा, सिविल सर्जन।