पानीपत का सच, उद्योगों से कारोबार बढ़ा, इधर, प्रदूषण से टूट रहीं सांसेें Panipat News
रंग-रसायन मुक्त पानी..जल जहर विषय पर शुक्रवार को सेक्टर-29 पार्ट-2 स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में परिचर्चा के दौरान शहर के चिकित्सकों ने चिंता व्यक्त की।
पानीपत, जेएनएन। उद्यमी खुश हैं कि पांच वर्षों के अंतराल में उनका कारोबार 20 फीसद से अधिक की छलांग लगा चुका है। हालांकि, डॉक्टर ¨चतित हैं कि हड्डियां, कमजोर दांत, कैंसर, हेपेटाइटिस, पीलिया, एनिमिया, मनोरोग, डायरिया और टायफाइड जैसे रोग इस अंतराल में पांच गुना तक बढ़ गए हैं। पहले दो-तीन दिन की दवा से मरीज ठीक हो जाते थे अब 10-15 दिन तक दवा खानी पड़ती है। रंग-रसायन मुक्त पानी..जल जहर विषय पर
शुक्रवार को सेक्टर-29 पार्ट-2 स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में परिचर्चा के दौरान शहर के चिकित्सकों ने यह चिंता व्यक्त की है। चिकित्सकों ने दो टूक कहा कि रोगों की पटरी पर दौड़ता विकास अब जानलेवा होने लगा है। असंख्य हुए कैंसर मरीज अस्सी के दशक की बात करें तो कैंसर के बहुत कम मरीज थे।
वर्तमान की बात करें तो असंख्य मरीज हैं। बात दूषित जल से होने वाले कैंसर की करें तो सबसे ज्यादा आंतों और पेशाब की थैली में कैंसर के मरीज इलाज और सर्जरी के लिए आ रहे हैं। इसका कारण भूजल में मिले क्रोमियम, माइक्रो प्लास्टिक, नाइट्रेट, क्लोरीन, रसायनिक उर्वरक, ऐनेलीन आदि घातक पदार्थ हैं। मैं अकेला क्या कर सकता हूं, इस सोच को त्यागना होगा। सभी मिलकर बहुत कुछ सुधार ला सकते हैं। दैनिक जागरण की मुहिम जरूर रंग लाएगी।
-डॉ. अभिनव मुटनेजा, कैंसर रोग विशेषज्ञ प्रेम अस्पताल
दूषित भूजल से दांत कमजोर अपनी ओपीडी की बात करूं तो बच्चों के दांत भी इतने कमजोर हो गए हैं कि टूटने लगे हैं। दांत पीले होने की शिकायत तो 90 फीसद लोगों को है। रंग-रसायन उद्योगों (डाई हाउस) को बंद तो नहीं कर सकते लेकिन सरकार इंडस्ट्रियल एरिया के सभी मानक पहले पूरा करे। इसके बाद उद्योगों को लाइसेंस दे। रूटीन निरीक्षण भी जरूरी है कि उद्योगों में मानकों का कितना पालन हो रहा है। प्रदूषण से साझा लड़ाई अब जरूरी हो गई है। डॉक्टरों का काम मरीजों को जागरूक करने और उनका इलाज करना है, वो कर रहे हैं।
-डॉ. रोहित गोयल, दंत रोग विशेषज्ञ
हड्डियां हो रहीं कमजोर मेरे पास 35-40 वर्ष की महिलाएं और पुरुष आते हैं। हड्डियों में दर्द की शिकायत करते हैं। डेढ़ दशक पहले ऐसी शिकायत 50 से अधिक आयु वालों में होती थी। टेस्ट कराते हैं, रिपोर्ट में कुछ नहीं मिलता। मरीजों से बात करने से पता चलता है कि दूषित खानपान और प्रदूषण इस समस्या की बड़ी वजह है। पचास बेड से अधिक वाले अस्पतालों पर एफ्ल्यूऐंट ट्रीटमेंट प्लांट और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का नियम लागू है। तमाम वैध-अवैध डाइंग यूनिट भूजल को दूषित कर रही हैं, सरकारी मशीनरी सोई हुई हैं। शुद्ध पानी बचा रहे इसके लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।
-डॉ. दीपक भारद्वाज, (हड्डी रोग विशेषज्ञ एवं पूर्व प्रधान आइएमए, पानीपत)
आई फ्लू के मरीज बढ़े रंग-रसायन युक्त पानी से आई फ्लू और ड्राइनेस के मरीज बढ़े हैं। हालांकि, इन रोगों के अन्य कारण भी हैं। आर्टिफिशियल आंसू का कारोबार बढ़ा है। समझ से परे है कि राजस्व के मामले में पानीपत प्रदेश में दूसरे नंबर पर है। विकास की बात करें तो सरकार सुध नहीं लेती। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, नगर निगम, जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग का डंडा अस्पतालों पर चलता है। लाखों-करोड़ों कमा रहे उद्योगों पर नहीं। सुखद पहलू यह कि दैनिक जागरण ने इस मुद्दे को जन-जागरण बनाने की दिशा में काम किया है।
-डॉ. बीके गुप्ता, नेत्र रोग विशेषज्ञ
बांझपन का कारण भी प्रदूषण महिलाओं में बांझपन सहित प्री-टर्म डिलीवरी और गर्भपात का बड़ा कारण खराब जीवनशैली के साथ जलवायु प्रदूषण भी है। जापान, म्यांमार आदि देशों की कुछ रिपोर्ट में इसका उल्लेख भी है। पुरुषों में नपुंसकता के करीब 20 और महिलाओं में बांझपन के चार फीसद केस जलवायु प्रदूषण से हैं। अगर प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए तो शहर-गांव का हर व्यक्ति बीमार हो जाएगा। सात सरोकारों की कड़ी में दैनिक जागरण ने इस विषय को प्रमुखता से उठाया है। आइएमए, पानीपत भी अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाएगी।
-डॉ. अंजलि बंसल (स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं प्रधान आइएमए, पानीपत)
उद्योगों के लिए बने मानक ठीक से हों लागू वर्ष 1990 में पानीपत में प्रैक्टिस शुरू की थी। प्रदूषित भूजल से होने वाली बीमारियां बढ़ी हैं। हालांकि, लोग जागरूक हुए हैं और आरओ इस्तेमाल करने लगे हैं। रंग-रसायन युक्त पानी जिले में बीमारियों का बड़ा कारण है। घरों की बात करें तो सेफ्टी टैंक साफ तो कराते हैं लेकिन उसका निस्तारण तो भूजल में किया जाता है। पानीपत का बाथमेट अमेरिका में निर्यात होता है। एक बाथमेट बनाने में 250 लीटर पानी लगता है। यही कारण है कि अमेरिका ने अपने यहां इसका उत्पादन नहीं किया। स्वस्थ रहना है तो भूजल को प्रदूषित होने से बचाना होगा।
-डॉ. मधुसूदन गुप्ता, शिशु रोग विशेषज्ञ
सुधार की दिशा में करें काम भूजल और वायु प्रदूषण पर अंकुश नहीं लगने का बड़ा कारण है कि संबंधित विभागों के अधिकारी उद्यमियों का उत्पीड़न तो करते हैं, सुधार कैसे हो इस दिशा में काम नहीं करते। उद्योगों को बंद तो नहीं किया जा सकता, जरूरत है कि उद्यमियों को प्रदूषण के संबंध में जागरूक करने की। ईटीपी-सीटीपी सही ढंग से काम कर रहे हैं या नहीं, इस पर नजर रखने की। हर व्यक्ति को यह सोच बनानी चाहिए कि अगली पीढ़ी के लिए कुछ अच्छा करके जाएं।
-डॉ. अनिल गुप्ता, नेत्र रोग विशेषज्ञ
भूजल प्रदूषण से बच्चे अधिक प्रभावित भूजल प्रदूषण का सबसे अधिक प्रतिकूल असर बच्चों की सेहत पर पड़ता है। बच्चों में खून की कमी हो जाती है। पीलिया, डायरिया जैसे रोग बच्चों को घेर लेते हैं। रंगाई उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले रंगों में कितने घातक रसायन मिले होते हैं, कुछ कहना मुश्किल है। बच्चों के दांत और हड्डियां कमजोर हो रही हैं। गर्भ में पल रहे शिशु पर भी प्रदूषण का दुष्प्रभाव देखा गया है। दैनिक जागरण की मुहिम जन आवाज बने, तो सुधार संभव है।
-डॉ. रितेश आनंद, शिशु रोग विशेषज्ञ
बच्चे-बड़े होने लगे भुलक्कड़ दूषित भूजल का सेवन करने और वायु प्रदूषण का असर मनुष्य के दिमाग पर भी पड़ता है। उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक 50 वर्ष की आयु में ही बूढ़े दिखने लगते हैं। खासकर, भूलने वाली बीमारी उन्हें सताती है। इस कारण उन्हें जॉब भी छोड़नी पड़ जाती है। बच्चे-किशोरों में भी यह रोग देखा जा रहा है। हालांकि, इस रोग के कारण अन्य भी है लेकिन प्रदूषण को इससे अलग नहीं किया जा सकता।
-डॉ. अंकुर सिंघल, मनोरोग विशेषज्ञ