आंतकी हमले से जिंदा लौटा ये जवान, बोला-पत्थरबाज हंसते, हम नहीं ले पाते एक्शन
श्रीनगर में पंथा चौक के पास खूनमू में आतंकियों के खिलाफ आपरेशन में घायल गांव लिजवाना खुर्द निवासी सोनू बेड रेस्ट पर घर आया है। बताया किस तरह से कश्मीर में मुश्किलें खड़ी होती हैं।
जींद [कर्मपाल गिल]। श्रीनगर के लोगों का फौज के प्रति रवैया बहुत खराब है। वे सेना को देखकर खुश नहीं हैं। जब भी सैनिक सड़क पर ड्यूटी करते हैं तो कश्मीरी पत्थर फेंकते हैं। सेना की गाडिय़ों पर भी पत्थर मारते हैं। सड़क पर खड़े सैनिकों को चिढ़ाने के लिए सामने से निकलते समय किलकी मारते हैं। यह सैनिकों की बेइज्जती है, लेकिन हम कोई जवाब नहीं दे पाते। उन्हें ठोकने की इजाजत मिलनी चाहिए। यह कहना है कि श्रीनगर में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में घायल हुए सीआरपीएफ के जवान निवासी सोनू का।
यहां गांव लिजवाना खुर्द निवासी सोनू 26 जनवरी को श्रीनगर में पंथा चौक के पास खूनमू में आतंकियों के खिलाफ आपरेशन में घायल हो गए थे। आतंकियों के फेंके ग्रेनेड का स्प्लिंटर एक गाल के आर-पार हो गया था। ऑपरेशन से से बाहर निकाला गया। इसी तरह पैर में घुटने से ऊपर भी स्प्लिंटर घुस गया था, जो अभी तक पैर के अंदर ही है। करीब तीन महीने बाद ऑपरेशन करके उसे बाहर निकाला जाएगा। 42 दिन के मेडिकल रेस्ट पर घर पहुंचे सोनू से दैनिक जागरण ने विस्तार से बातचीत की।
स्थानीय लोग करते आतंकियों का बचाव
सोनू ने बताया कि श्रीनगर में जब भी आतंकियों के खिलाफ कोई आपरेशन लांच होता है तो स्थानीय लोग आतंकियों का बचाव करते हैं और पत्थर मारते हैं, ताकि आपरेशन सफल न हो, लेकिन उन्हें सहनशीलता दिखानी पड़ती है। सोनू 2012 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। पहले चार साल छत्तीसगढ़ में रहे। अब डेढ़ साल से श्रीनगर में हैैं।
नाम पैरामिलिट्री फोर्स, जबकि काम मिलिट्री वालों जितनापुलवामा हमले के बाद पैरामिलिट्री को सुविधाएं न मिलने के उठ रहे मुद्दे पर सोनू ने कहा कि उन्हें शहीद का दर्जा नहीं मिलता है। रिटायरमेंट के बाद पेंशन नहीं है। मेडिकल सुविधा नहीं है, इसलिए अब इलाज के लिए यहां धक्के खा रहा हूं। हालांकि झड़ौदा व बादामी बाग में 92बेस अस्पताल है, लेकिन उनमें आर्मी के अस्पताल की तरह सुविधाएं नहीं हैं। इसके अलावा एक्स सर्विसमैन का कोटा भी नहीं है। जबकि पैरामिलिट्री में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आइटीबीपी, सीआइएसएफ, एसएसबी, असम राइफल के जवान सेना के जवानों को काम व ड्यूटी ज्यादा करते हैं। आर्मी की सीएसडी कैंटीन की तरह उनकी कैंटीन भी नहीं है। नाम पैरामिलिट्री फोर्स है, जबकि काम मिलिट्री वालों जितना करते हैं।
पैर व मुंह पर लगा ग्रेनेड का स्प्लिंटर
सीआरपीएफ की वैली क्वेटी टीम में शामिल सोनू ने बताया कि उन्हें पता चला था कि खूनमू में एक घर में दो आतंकी दो माह से छिपे हुए हैं। 25 जनवरी की रात 10 बजे एसओजी ग्रुप के साथ सर्च अभियान शुरू किया। जब यह पता चला कि किस घर में दो आतंकी छिपे हुए हैं तो 26 जनवरी की अलसुबह साढ़े 3 बजे आपरेशन लांच किया। मकान की घेराबंदी करके आंसू गैस के गोले फेंके। फिर भी आतंकियों से रिस्पांस नहीं दिया तो घर के अंदर इंट्री की। वह सबसे आगे था। उसके पीछे सीआरपीएफ और सेना के तीन जवान थे। अंदर करते समय बाथरूम में छिपे आतंकियों ने उन पर ग्रेनेड फेंक दिया। इसके बाद दो ग्रेनेड फिर फेंके। इसमें उन समेत चार जवान घायल हो गए। फिर सेना ने भी जवाबी कार्रवाई में फायर शुरू किया। मुठभेड़ के समय वह सामने से हमले का बचाव करने के लिए 25 किलो की लोहे की शील्ड पकड़े हुए थे, लेकिन साइड से ग्रेनेड का स्प्लिंटर उसके मुंह व जांघ पर लग गया।