LockDown Effect: मोक्ष के द्वार पर कोरोना वायरस का ताला, अब तो लॉकर भी फुल
लॉकडाउन के चलते परिवार के लोग मृतकों की अस्थियां प्रवाहित करने नहीं जा पा रहे। करीब 80 मृतकों की अस्थियां लॉकर में रखी है।
पानीपत/करनाल, [सेवा सिंह]। कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जहां हर इंसान को खौफजदा किया हुआ है वहीं मृतकों के लिए मोक्ष के द्वार भी बंद कर दिए हैं। करनाल में ही 80 से अधिक मृतक लोगों की अस्थियां विसर्जन के इंतजार में हैं, जिनका स्वजन विसर्जन नहीं कर पा रहे। अब यह अस्थि विसर्जन कब हो सकेगा, यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा है। सदा के लिए बिछुड़े अपनों को मोक्ष देने को लेकर अब स्वजन चिंतित हैं।
वहीं जिला प्रशासन लॉकडाउन के चलते धैर्य रखने व सामान्य हालात होने तक इंतजार करने की अपील कर रहा है। शास्त्रों के अनुसार किसी भी मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां उठाने के 10 दिन तक इन्हें गंगा में विसर्जित करने का विधान है। इसके बाद ही उसे मोक्ष प्राप्ति संभव होती है।
करनाल शहर के पांच शमशान गृहों में 22 मार्च को लगाए गए जनता कर्फ्य से लेकर शनिवार तक अंतिम संस्कार के बाद 80 से अधिक लोगों की अस्थियां यहां लॉकरों में रखी हैं। इनमें अधिकतर अस्थियां 10 दिन से ज्यादा समय से रखी हैं, जिनके स्वजन यहां पहुंचकर संभाल कर रहे हैं तो वहीं अब अस्थियां रखने को लेकर विकल्प बताए जाने लगे हैं। इनमें ऐसे लोगों की अस्थियां भी शामिल हैं, जिनका अंतिम संस्कार सामाजिक संस्थाओं ने करवाया है।
स्वजन नहीं ले जा पा रहे अस्थियां, लॉकर फुल
मॉडल टाउन स्थित शमशान गृह के सेवक मनोज शर्मा का कहना है कि पिछले 20 वर्ष में कभी ऐसी स्थिति नहीं आई कि सभी लॉकर अस्थियों से भर जाएं। लोग लॉकडाउन के चलते अस्थि विसर्जन करने नहीं जा पा रहे। करनाल शहर में पांच शमशान गृह हैं और हर किसी में कम से कम 15 लॉकर हैं। लोग हालात का हवाला देते हुए यहां अस्थि रखने को मजबूर हैं।
गंगा मैया में विसर्जन जरूरी : शंटी भारद्वाज
मॉडल टाउन स्थित शमशान गृह के पंडित शंटी भारद्वाज का कहना है कि किसी भी व्यक्ति की समय व असमय मौत होने पर क्रियाक्रम पूरा किया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां उठाई जाती हैं, जिन्हें शास्त्रों के अनुसार अगले 10 दिन तक इन्हें गंगा में विसर्जित करने का विधान है। इससे मृतक को मोक्ष प्राप्ति संभव होती है। ऐसा न होने पर आत्मा को शांति नहीं मिलती। लोग लॉकडाउन के चलते अस्थि विसर्जन नहीं कर पाते और लॉकर में भी जगह नहीं मिलती तो वे पीपल के पेड़ पर इन्हें विशेष कपड़े से बांध सकते हैं, लेकिन यहां हर रोज धूप आदि जलाना आवश्यक होता है। समय पर अस्थि विसर्जन न हो तो एक अस्थि किसी भी बहती नहर में विसर्जित की जा सकती है, जिसके बाद 10 दिन में विजर्सन का बंधन आवश्यक नहीं रहता।
हालात सामान्य होते ही प्रशासन करेगा व्यवस्था : डीसी
डीसी निशांत यादव का कहना है कि कोरोना वायरस के खतरा व लॉकडाउन के चलते लोगों को धैर्य रखना होगा। हालात जैसे ही सामान्य होंगे, प्रशासन अस्थियां विसर्जन ले जाने की व्यवस्था करेगा। फिलहाल दूसरे राज्यों की सीमाएं भी सील हैं।