भाजपा अपनाएगी ये रणनीति, सर्वे रिपोर्ट बनेगी टिकट बंटवारे का आधार
लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा ने मंथन शुरू कर दिया है। इस बार टिकट की दावेदारी के लिए पार्टी ने चिंतन कर राय ली। हर हाल में जीतने वाला ही चेहरा सामने लाएंगे। जानिए क्या है रणनीति।
पानीपत, [अरविंद झा] : सियासी जंग में टिकट बंटवारे का खेल शुरू हो गया है। इनेलो के अंतर्कलह का फायदा उठाने के लिए भाजपा उन नेताओं को ही इस बार मैदान में उतारेगी जो जितने के काबिल होंगे। एजेंसी से सर्वे कराने के बाद प्रत्याशियों की सूची फाइनल होगी। आकाओं की सिफारिश के बलबूते विधानसभा चुनाव में कोई टिकट हासिल करने में कामयाब नहीं होगा।
चुनावी बिगुल बजने से पहले वर्ष 2019 का सियासी कसरत शुरू है। तीन खेमों बंटी कांग्रेस आलाकमान से निर्देश मिलने पर प्रत्याशियों के नाम फाइनल करेगी। इनेलो में अभय-अजय की जंग ने टिकट के दावेदारों को सकते में डाल दिया है। सतारुढ़ पार्टी भाजपा इस अवसर का फायदा उठाने को बेताब है।
इस बार उप्र में 70 से अधिक सीटों का दावा
पार्टी सूत्रों की मानें तो पहले लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं में यह भी चर्चा है कि दोनों चुनाव एक साथ भी हो सकते हैं। 2014 में हरियाणा में पहली बार सत्ता में आई भाजपा दूसरी बार 90 में से 70 से अधिक सीट जीतने का दावा कर रही है।
चिंतन में जीत का मंत्र
संगठन के नेता चिंतन शिविर में कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र सिखा रहे हैं। चमौली जिले के जोशीमठ (उत्तराखंड) में 09-11 नवंबर तक चले तीन दिन के अध्यात्मिक चिंतन शिविर में 2019 में चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों के स्वरूप पर चर्चा हुई। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने पर भी मंथन किया गया।
दो निजी एजेंसी करेगी सर्वे
शिविर में चर्चा हुई कि भाजपा टिकट देने से पहले तीन प्रकार का सर्वे कराएगी। दो निजी एजेंसियों को सर्वे का कार्य दिया जाएगा। तीसरा सर्वे आरएसएस कराएगी। सर्वे की रिपोर्ट में 2014 में चुनाव जीतने वाले विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तैयार होगा। टिकट इसी आधार पर दिया जाएगा। सिपहसलारों को पार्टी इस बार किसी सूरत में टिकट नहीं देगी।
राजस्थान में इसी फार्मूले पर जोर
भाजपा सूत्रों का कहना है कि मध्यप्रदेश में सर्वे की रिपोर्ट उम्दा नहीं आई है। पूर्व सीएम वसुंधरा के अडिय़ल रवैये से राजस्थान में टिकट बंटवारे के इसी फार्मूले को लागू करने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन तालमेल नहीं बैठ रहा है। पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। हरियाणा में पहली बार कमल खिलाने वाली भाजपा किसी कीमत पर उसे मुरझाने नहीं देना चाहती है। संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी इस बारे में फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं।