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पर्यावरण संरक्षण के लिए पराली जलाने से तौबा, अब उसी को बनाया कमाई का जरिया Panipat News

पराली जलाकर पर्यावरण को दूषित करने वालों के लिए पानीपत के गुरूचरण नजीर बनकर सामने आए हैं। उन्होंने पराली जाने से तौबा करके उसी को आमदनी का जरिया बना लिया।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 09:50 AM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 05:13 PM (IST)
पर्यावरण संरक्षण के लिए पराली जलाने से तौबा, अब उसी को बनाया कमाई का जरिया Panipat News
पर्यावरण संरक्षण के लिए पराली जलाने से तौबा, अब उसी को बनाया कमाई का जरिया Panipat News

पानीपत, [रामकुमार कौशिक]। पराली जलाने पर पाबंदी है। किसान इसे जलाकर पर्यावरण और धरती दोनों को नुकसान पहुंचा रहे है। पानीपत के किसान गुरूचरण सिंह इन दोनों की हिफाजत करने में जुटे हैं। पिछले दो साल से पराली जलाना छोड़ कर आमदनी का जरिया बना लिया है। अब वो न केवल खुद की, बल्कि आस पास के गांवों के  किसानों की पराली के अवशेषों की भी कटाई कर ले जाते हैं, ताकि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।  

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यमुना एन्कलेव के रहने वाले गुरूचरण सिंह ने बताया कि वो चार भाई हैं। कचरौली गांव में सौ एकड़ जमीन है। ज्यादातर में धान की खेती करते हैं। चारे में पराली का प्रयोग नहीं करते हैं मजबूरन जलाना पड़ता था। दो साल पहले जैसे ही पराली जलाने पर पाबंदी लगी और कृषि विभाग के अधिकारियों ने उन्हें पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में बताया। तभी से जलाना छोड़ दिया। पता चला की पराली की भी डिमांड है। इसे गांठ बना कर बेचा जा सकता है। गांठ बनाने वाली मशीनों पर अपने यहां अनुदान नहीं मिला तो पटियाला के रहने वाले रिश्तेदार गुरप्रीत सिंह की मशीन को मंगवा पराली की गांठ बनाने का काम शुरू कर दिया। ऐसा करने से न केवल पराली जलाने से पीछा छूटा, बल्कि आमदनी भी होने लगी।

ऐसे बनाते है गांठ

किसान ने बताया कि धान की कंबाइन से कटाई के बाद उसे दोबारा से पूरी तरह से काटकर कई दिन तक सुखाते हैं। फिर रेक मशीन से लाइन में एकत्र करते है और बेलर मशीन उसे गांठ में बांध देती है। ऐसा करने से खेत के अंदर किसी तरह का कोई अवशेष नहीं बचता है। पूरी तरह से साफ हो जाता है। इससे जुताई करने में भी कोई दिक्कत नहीं आती है। इस काम में दो ट्रैक्टर मशीनों को चलाते है और दो ट्राले से गांठों को फैक्टरी तक पहुंचाने का काम करते हैं। पंद्रह लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है। 

100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल का भाव 

गुरूचरण ने बताया कि वो पराली की गांठ को घरौंडा की एक फैक्टरी में पहुंचाते हैं। जहां उसका ईंधन के तौर पर प्रयोग होता है। उन्हें 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। एक एकड़ में 15-20 क्विंटल तक पराली निकलती है। जिस भी किसान के खेत से पराली उठाते हैं न तो उससे कुछ लेते है और न उसे कुछ देते हैं। पूरे सीजन में 300 एकड़ तक पराली की गांठ बना देते हैं। इस साल भी मशीन चल रही है। डिमांड बढ़ती जा रही है। 

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दैनिक जागरण की मुहिम सराहनीय 

गुरूचरण ने कहा कि पराली जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के प्रति जागरुकता को लेकर दैनिक जागरण ने जो मुहिम चला रखी है, वो सराहनीय है। इससे भी काफी किसानों में जागरूकता आई है। पिछले साल मुझे भी पराली न जलाने पर प्रशंसा पत्र मिला था। 


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