Move to Jagran APP

अटल बिहारी वाजपेयी भी चख चुके चिमन लाल की कचौरी का स्वाद

बलराज सैनी, पानीपत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल भी चिमन लाल

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Oct 2017 01:03 AM (IST)Updated: Fri, 06 Oct 2017 01:03 AM (IST)
अटल बिहारी वाजपेयी भी चख चुके चिमन लाल की कचौरी का स्वाद
अटल बिहारी वाजपेयी भी चख चुके चिमन लाल की कचौरी का स्वाद

बलराज सैनी, पानीपत

loksabha election banner

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल भी चिमन लाल की पिट्ठी वाली कचौरी का स्वाद ले चुके हैं।

किले पर आरएसएस की शाखा लगती थी। वर्ष 1960 में अटल बिहारी वाजपेयी कई दिनों तक यहां रुके थे। उस समय शाखा में रोजाना चिमन लाल की दुकान से ही कचौरी जाती थी। पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल ने भी एक बार पानीपत दौरे के दौरान यहां की कचौरी खाई थी।

वर्तमान में दुकान पर खाने वालों से अधिक पैक कराकर घर ले जाने वालों की संख्या अधिक है। हलवाई हट्टा स्थित चिमन लाल की दुकान पर शुद्ध सात्विक कचौरी बनती है। सब्जी या चटनी में प्याज-लहसून का प्रयोग नहीं किया जाता। रविवार को पेठे की भी सब्जी बनाई जाती है।

ऐतिहासिक किले के साथ हलवाई हट्टा है। यहीं पर चिमन लाल कचौरी वाले की दुकान है। चिमन लाल के बेटे राजीव कुमार उर्फ सग्गू, दीपक और अनिल दुकान संभाल रहे हैं।

राजीव ने बताया कि उनके परदादा भखतावर ने करीब 150 वर्ष पहले हलवाई हट्टा चौक पर कचौरी-हलवे की दुकान की थी। भखतावर के बेटे राजा राम, राजा राम के बेटे गोपी राम पहलवान, गोपीराम के बेटे चमन लाल, चमन लाल के बेटे राजीव, दीपक, अनिल अपने पुस्तैनी काम को आगे बढ़ाते रहे। राजीव का पौत्र आठवीं क्लास में पढ़ रहा है, वह भी कभार पर दुकान पर आकर कचौरी बनाना सीख रहा है।

ऐसे बनाते हैं कचौरी

राजीव ने बताया उरद की दाल को मशीन में पिस कर उसकी पिट्ठी बनाते हैं। गेहूं के आटा में पिट्ठी मिलाकर कचौरी बनाते हैं। आलू की सब्जी, छोले के साथ मंथी की चटनी स्वाद को और बढ़ा देती है। नमकीन और मिट्ठी लस्सी भी बनाते हैं। रोजाना सुबह 4:30 से शाम 4 बजे तक दुकान पर कचौरी मिलती है। दिल्ली-चंडीगढ़ भी कचौरी जाती है। कुछ लोग कच्ची कचौरी अपने घर जाकर पकाते हैं।

150 वर्ष पहले आए थे पूर्वज

चिमन लाल के पूर्वज करनाल के जिले के फुरलक गांव में रहते थे। 150 वर्ष पहले गांव छोड़ कर पानीपत आए थे। उस समय शहर की आबादी 10 हजार थी। राजीव ने बताया कि उनके पूर्वज देशी घी का हलवा और कचौरी बनाते थे। बाजार में तरह-तरह की मिठाइयां आने के बाद हलवा बनाना बंद कर दिया। अब सिर्फ कचौरी बना रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.