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विदेशों तक छाया हरियाणा का ये गांव, बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार का रहा केंद्र

बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का केंद्र रहे टोपरा कलां गांव में फिर से बड़ा काम हो रहा है। सारनाथ व सांची के स्तूप की तरह टोपरा कलां में स्थापित होगा अष्टमंगल छत्र। 65 फीट ऊंचे छत्र पर 75 लाख रुपये का खर्च आएगा।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Wed, 14 Oct 2020 04:16 PM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2020 04:16 PM (IST)
विदेशों तक छाया हरियाणा का ये गांव, बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार का रहा केंद्र
यमुनानगर स्थित टोपरा कलां गांव में छत्र लगने के ऐसा दिखाई देगा अशोक चक्र।

पानीपत/यमुनानगर, पोपीन पंवार। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का केंद्र रहे टोपरा कलां गांव में फिर से बड़ा काम हो रहा है। अशोक चक्र के बाद अब यहां पर अष्टमंगल छत्र स्थापित होगा। इसका डिजाइन सारनाथ व सांची के स्तूप के छत्र की तरह होगा। 65 फीट ऊंचे छत्र पर 75 लाख रुपये का खर्च आएगा। दा बोद्धिस्ट फोरम के अध्यक्ष सत्यदीप नील गौरी व उप प्रधान सिद्धार्थ गौरी का कहना है कि यह देश का सबसे बड़ा अष्टमंगल छत्र होगा। इसमें आठ सिंबल जिसमें मछली का जोड़ा, रस्सी का गुच्छा, चक्र, शंख, कलश, कमल, ध्वज, छत्र शामिल हैं। इसकी डिजाइङ्क्षनग का काम पूरा हो चुका है। प्राचीन समय में राजा या महापुरुष के सम्मान में इस तरह के छत्र का प्रयोग हुआ करते थे।

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लिम्का बुक में दर्ज है नाम

फोरम ने ही यहां पर 30 फीट ऊंचे छह टन भारी सुनहरे रंग का अशोक चक्र स्थापित करवाया था। केंद्रीय खेल मंत्री किरेन रीजजू ने इसका उद्घाटन किया। गत वर्ष देश का सबसे बड़ा अशोक चक्र होने का रिकॉर्ड लिम्बा बुक में दर्ज हुआ। अब फिर से रिकॉर्ड बनाने की तैयारी है।

Yamunanagar Ashok chakra

यह है इतिहास

बौद्धिस्ट फोरम के अध्यक्ष गौरी बताते हैं कि अशोक स्तंभ 2300 साल पहले गांव टोपरा कलां में स्थापित किया था। तारीख-ए-फिरोजशाही पुस्तक में इसका वर्णन है। 1453 में फिरोजशाह तुगलक जब टोपरा कलां में शिकार के लिए आया तो उसकी नजर स्तंभ पर पड़ी। पहले वह इसको तोडऩा चाहता था, लेकिन बाद में दिल्ली ले जाने का मन बनाया। यमुना नदी के रास्ते स्तंभ को दिल्ली ले जाने के लिए बड़ी नाव तैयार की गई। स्तंभ पर कोई खरोंच न पड़े इसके लिए उसे रेशम व रुई में लपेटा गया। टोपरा से यमुना नदी तक ले जाने के लिए 42 पहियों की गाड़ी तैयार की गई थी, जिसे आठ हजार लोगों ने खींचा था। 18वीं शताब्दी में सबसे पहले एलेग्जेंडर कङ्क्षनघम ने साबित किया था कि यह स्तंभ टोपरा कलां से लाया गया है। उसके सहकर्मी पहली बार ब्राह्मी लिपि में लिखे संदेश को पढ़ा था। आदिबद्री, चुनेटी, अग्रोहा, असंध, रोहतक, खोसराकोदस, गांव सुघ आदि स्थानों पर भगवान बुद्ध के आने के प्रमाण हैं।

गौरी कहते हैं कि भगवान बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के सारनाथ में सबसे पहले उपदेश दिया था। वहां पर छत्र बना है। मध्यप्रदेश के सांची के स्तूप पर भी छत्र बना है। दोनों छत्रों को देखकर ही इस छत्र का डिजाइन तय किया गया है। इसको भी लिम्का बुक में दर्ज करवाना है। 65 फीट ऊंचे छत्र में तीन डिक्स लगेगी। अशोक चक्र के ऊपर छत्र स्थापित होगा। चक्र धर्म का प्रतीत और छत्र शुभता का प्रतीत माना जाता है। इसकी डिक्स पहली 10, दूसरी 20 व 30 फीट पर लगाए जाएगी। फाउंडेशन का काम शुरू हो गया है। कमल इंजीनियरिंग के संचालक अनिल कुमार इसको तैयार करा रहे हैं।

हमारे लिए गर्व की बात 

टोपरा कला के सरपंच मनीष नेहरा कहते है कि यह हमारे गांव के लिए गर्व की बात है। गांव का नाम देश के अलावा विदेशों तक होगा। गांव में विदेशी पर्यटक आएंगे। जिससे यहां पर रोजगार की अवसर भी बढ़ेंगे।


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