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पांच साल बाद मैट पर उतर पूर्व सूबेदार ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में जीता सिल्वर

इरादे मजबूत हो तो न तो शारीरिक कमजोरी और न ही उम्र बाधा बन पाती है। सफलता कदम चूमती है। तंज कसने वाले भी तालियां बजाकर वाहवाही करते हैं।

By Edited By: Published: Wed, 23 Oct 2019 07:27 AM (IST)Updated: Wed, 23 Oct 2019 07:29 AM (IST)
पांच साल बाद मैट पर उतर पूर्व सूबेदार ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में जीता सिल्वर
पांच साल बाद मैट पर उतर पूर्व सूबेदार ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में जीता सिल्वर

पानीपत, [विजय गाहल्याण]। इरादे मजबूत हो तो न तो शारीरिक कमजोरी और न ही उम्र बाधा बन पाती है। सफलता कदम चूमती है। तंज कसने वाले भी तालियां बजाकर वाहवाही करते हैं। ऐसा ही आर्मी के सूबेदार 36 वर्षीय लोहारी गांव के महेंद्र सिंंह ने कर दिखाया है। बुखार से पीड़ित होने पर भी उन्होंने जार्जिया के तिब्लिसी में 8 से 14 अक्टूबर को हुई विश्व वेटरन कुश्ती चैंपियनशिप में चार पहलवानों को पटकनी दे कांस्य पदक जीता।

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पुणे आर्मी स्पो‌र्ट्स इंस्टीट्यूट के कुश्ती कोच महेंद्र ने बताया कि उनके लिए पदक जीतना आसान नहीं था। 2014 में कुश्ती छोड़ दी थी। वजन भी 88 किलोग्राम हो गया था। दो महीने में दस किलो वजन घटाया। जार्जिया में ठंड ज्यादा होने से बीमार हो गए। डॉक्टरों ने मुकाबले लड़ने से मना कर दिया। हौसला नहीं खोया। पांच साल बाद मैट पर उतरे और सफलता पाई। अब उनका लक्ष्य 2020 में एथेंस में होने वाली विश्व वेटरन कुश्ती चैंपिनयशिप में स्वर्ण पदक जीतना है। इसके लिए छह घंटे अभ्यास कर रहे हैं। भाई के साथ से पूरा किया पिता का सपना महेंद्र सिंह ने बताया कि किसान पिता दया सिंह और बड़े भाई रोशन सिंह हरियाणा स्टाइल कबड्डी के खिलाड़ी रहे हैं। पिता की इच्छा थी कि वे पहलवान बने।

वर्ष 1994 में गांव में सुनहरा पहलवान से कुश्ती के गुर सीखे। 1999 में पिता का देहांत हो गया। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। भाई ने साथ दिया और सोनीपत व गुरु हनुमान अखाड़ा दिल्ली में अभ्यास कर राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते। 2003 में आर्मी में हवलदार भर्ती हुआ। इसके बाद से जिंदगी बदल गई। कोच का कोर्स किया और पहलवानों को ट्रेनिंग देना शुरू किया। भाई के कहने पर ही विश्व वेटरन कुश्ती चैंपियनशिप में भागीदारी की।

भारतीय मूल के मैनेजर ने शाकाहारी भोजन मुहैया कराया

महेंद्र सिंह ने बताया कि चिंता थी कि जार्जिया में शाकाहारी भोजन नहीं मिलेगा। वे जिस होटल में ठहरे थे, वहां के मैनेजर शुभम जोशी भारतीय मूल के थे। जोशी ने उन्हें व अर्जुन अवार्डी कृपाशंकर बिश्नोई व अन्य पहलवानों के लिए शाकाहारी भोजन की व्यवस्था कराई। उन्हें घर जैसा खाना मुहैया कराया। इससे वजन नियंत्रण में रहा और मुकाबले खेलने में दिक्कत नहीं हुई।

अखाड़े में मिली सफलता

-1997 में दिल्ली में हुई व‌र्ल्ड कैडेट कुश्ती चैंपियनशिप में शिरकत की।

-2002 में भारत कुमार का खिताब जीता।

-चार बार पानीपत कुमार का खिताब जीता।

-2003 में ओपन सीनियर नेशनल में स्वर्ण पदक जीता।

-जूनियर नेशनल में दो रजत पदक जीता।

-सीनियर नेशनल में आठ पदक जीते। इसमें चार स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक शामिल हैं।


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