क्लोन से तैयार होंगे उन्नत किस्म के भैंसे
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआइ) अब क्लोन तकनीक से ऐसे 25 भैंसे तैयार होंगे जो उन्नत किस्म के होंगे।
मनोज ठाकुर, करनाल
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआइ) अब क्लोन तकनीक से ऐसे 25 भैंसे तैयार करेगा जो सर्वश्रेष्ठ गुणों वाले होंगे। देश में यह अपनी तरह पहला प्रोजेक्ट है।
एनडीआरआइ के वैज्ञानिक क्लोन तकनीक में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। नए शोध का उद्देश्य यह है कि भैंसों से भैंस नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाया जाए, जिससे दूध उत्पादन में वृद्धि हो सके। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आइसीएआर) का यह प्रोजेक्ट 5.74 करोड़ रुपये का है। इसमें एक साथ 25 भैंसे क्लोन से तैयार किए जा रहे हैं। केंद्रीय संस्थान फॉर रिसर्च ऑन बफेलो (सीआइआरबी) और एनडीआरआइ के लगभग 200 वैज्ञानिकों और सहायकों की एक टीम काम कर रही है। वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती
अभी तक इस तकनीक से सफलता की दर मात्र एक प्रतिशत है। इसलिए यह प्रोजेक्ट वैज्ञानिकों की कड़ी परीक्षा है। एनडीआरआइ के पशु जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख डॉ. प्रभात पाल्टा ने बताया कि क्लोन तैयार करना बहुत रिस्की प्रोजेक्ट है। इस तकनीक की सफलता की दर एक से 2.5 प्रतिशत तक है। एनडीआरआइ में तैयार किए गए 16 क्लोन में केवल आठ जीवित हैं। इस तकनीक को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। यही वजह है कि इस प्रोजेक्ट को लेकर वैज्ञानिक पहले चरण से बेहद संजीदा हैं। इस तरह से तैयार होंगे उन्नत किस्म के क्लोन
इसके लिए देशभर में उन भैंस की तलाश की जाएगी जो सर्वश्रेष्ठ गुणों वाली होंगी। उनके शरीर की बनावट से लेकर दूध देने की क्षमता, बीमारियों से लड़ने की ताकत का वैज्ञानिक तरीके से आकलन किया जाएगा। इसके क्लोन से आगे भैंसा का क्लोन तैयार होगा, लेकिन इसमें यह भी देखा जाएगा कि ऐसे भैंसों से तैयार भैंस कितना दूध देती है। क्या उसका प्रदर्शन वैसा ही है जैसा वैज्ञानिकों ने तय किया था। कई स्तर के परीक्षण के बाद इस भैंसे को आगे नस्ल सुधार कार्यक्त्रम में शामिल किया जाएगा। ताकि दूध की कमी को पूरा किया जा सके
दुनिया में सबसे अधिक भैंसें भारत में हैं। देश में कुल दूध उत्पादन का 55 प्रतिशत इनका योगदान है, लेकिन दिक्कत यह है कि सर्वश्रेष्ठ नस्ल की भैंसों की संख्या कम है। भविष्य में ऐसी भैंसों की जरूरत पड़ेगी। यह प्रोजेक्ट इस दिशा में एक कदम है, जिससे अच्छी नस्लों को तैयार करने में मदद मिले। एनडीआरआइ के डॉ. राजन शर्मा ने बताया कि भविष्य में उच्च गुणों वाले भैंसों के सीमन की माग बढ़ेगी। 2021-22 तक लगभग 80 मिलियन सीमन डोज की माग का अनुमान है। एनडीआरआइ का क्लोनिंग सफर
------------
एनडीआरआइ ने 2009 से अब तक 16 क्लोन बनाए हैं, जिनमें आठ जीवित हैं।
2009 में पहली क्लोन कटड़ी समरूपा
(उम्र पाच दिन)
06 जून 2009 कटड़ी गरिमा
(2 साल, 2 महीने 14 दिन)
22 अगस्त 2010 गरिमा टू क्लोन
( जीवित)
26 अगस्त 2010 को कटड़ा श्रेष्ठ
(जीवित)
18 मार्च 2013 को कटड़ा स्वर्ण तैयार किया। उसी साल 10 अगस्त को बछड़ा तैयार किया जो सिर्फ 12 घटे जीवित रहा। उसी महीने जुड़वा कटड़िडया तैयार हुईं जो सिर्फ एक घटे जीवित रहीं। इसके बाद कटड़ी पूर्णिमा, लालिमा, कटड़ा रजत, जंगली भैंस, कटड़ी दिपाशा, अपूर्वा और स्वरूपा तैयार की गईं।