कर्ण नगरी में खूब लड़ी गई दिल और दिमाग की जंग, एक छोर पर किसानों के बुलंद हौसले तो दूसरी तरफ पुलिस प्रशासन का संयम
हरियाणा के करनाल में किसानों के एकजुट होने से लेकर बैरिकेड्स तोड़े जाने को लेकर उनके हौसले और प्रशासन का संयम देखने लायक था। दिल्ली कूच के लिए पंजाब से पहुंचे किसानों ने दिल और दिमाग की जंग लड़ी।
पानीपत/करनाल, [पवन शर्मा]। करनाल का नजारा यकीनन दिलचस्प ही नहीं, यादगार भी साबित हुआ। देखने वालों को कभी चरम छूने वाले आइपीएल मुकाबलों के रोमांच की याद आई तो कभी यूं लगा कि दानवीर कर्ण की नगरी की सीमा पर कोई हाइ वोल्टेज ड्रामा चल रहा है। एक छोर पर किसानों के बुलंद हौसले तो दूसरी तरफ पुलिस प्रशासन के संयम की इस अग्नि परीक्षा में घंटों तक उतार-चढ़ाव की स्थिति नुमायां होती रही। फिर सीधे टकराव की घड़ी आई तो किसानों पर वाटर कैनन की बौछार से लेकर आंसू गैस के गोले तक छोड़े गए।
नतीजतन, तमाम दिलों की धड़कन एक बार फिर तेज हो गई मगर अंतत: शाम करीब सवा पांच बजे जब किसानों का काफिला शांतिपूर्ण ढंग से जिले की सीमा पार कर गया तो सबने राहत की सांस ली। 26 नवंबर की रात जीटी रोड स्थित करनाल के शुरुआती गांव समाना बाहू के एक पेट्रोल पंप पर बुधवार और वीरवार की मध्यरात्रि के समय कुछ मीडियाकर्मियों ने किसानों का नेतृत्व कर रहे भाकियू नेता गुरनाम सिंह चढूनी को एक वाहन में सोते समय जगाया तो उन्होंने पूरे जोश के साथ दावा किया था कि अब दिल्ली दूर नहीं है।
सीएम सिटी करनाल हो या अपनी ऐतिहासिक लड़ाइयों के लिए अलग पहचान रखने वाले पानीपत शहर से लेकर सोनीपत तक की पूरी राह, वे किसी भी सूरत में रुकने वाले नहीं हैं। यह कारवां दिल्ली कूच करके ही दम लेगा।
11.45 पर शहर की सीमा में पहुंचा काफिला
वीरवार सुबह नौ बजे हजारों की तादाद में जुटे किसानों के साथ सफर का आगाज करते ही उन्होंने अपने ये तेवर दिखा भी दिए। पहले नीलोखेड़ी और फिर तरावड़ी में की गई नाकाबंदी पार करके चढूनी की अगुवाई में किसानों का काफिला करीब 11.45 बजे करनाल शहर की सीमा पर पहुंचा तो पुलिस प्रशासन के संयम के साथ अन्नदाताओं के हौसले की जंग का आगाज हुआ।
पुलिस-प्रशासन ने सधे अंदाज में उठाए कदम
एक तरफ तीन कृषि कानूनों को लेकर चरम तक पहुंचे किसानों का आक्रोश साफ जता रहा था कि वे आर-पार की जंग लड़ने का हौसला लेकर मैदान में उतरे हैं तो दूसरी तरफ उनकी हर हरकत पर बेहद संयमित रुख अपना रहे पुलिस प्रशासन की कार्यशैली से बखूबी साबित हुआ कि यह मुकाबला यकीनन दिल और दिमाग का है। खुली जीप से किसानों से संवाद कर रहे चढूनी और अन्य नेताओं के तल्ख तेवरों के बावजूद पुलिस प्रशासन ने एक-एक कदम बेहद सधे अंदाज में उठाया। पानी की बौछारें और आंसू गैस के गोले मामला तब जरूर संवेदनशील होता दिखाई दिया, जब हाईवे पर अपने सामने दीवार बनकर खड़े ट्रकों को धक्का देकर हटाने में जुटे किसानों को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन को वाटर कैनन से लेकर आंसू गैस के गोलों तक का इस्तेमाल करना पड़ा।
दरअसल, सुनियोजित रणनीति के तहत प्रशासन ने ही हाईवे पर दूर तक ट्रकों की लंबी कतार लगवाई ताकि किसान अपने ट्रैक्टरों से कंक्रीट के बैरियर ध्वस्त कर दें तो भी इस दीवार के जरिए उन्हें रोका जा सके। इसमें कुछ कामयाबी मिली भी मगर जल्द ही अधिकारियों ने भांप लिया कि अब किसानों को रोका तो स्थिति और गंभीर रुख ले सकती है। नतीजतन, हाईवोल्टेज ड्रामे के पटाक्षेप की पटकथा लिखी गई और प्रशासनिक रणनीति में जल्द ही बड़ा बदलाव झलकने लगा। किसानों को बाकायदा हाईवे पर आगे बढ़ने की राह दी गई, जिसके चलते पहले बसताड़ा टोल प्लाजा और फिर घरौंडा से होते हुए पानीपत सीमा तक किसानों के काफिले को किसी रुकावट का सामना नहीं करना पड़ा। इससे पुलिस प्रशासन के साथ करनालवासियों ने जहां राहत की सांस ली तो वहीं दोनों पक्षों की रणनीति को भी बखूबी सराहा।