जिले में 18 बच्चे थैलेसीमिया ग्रस्त, गर्भवती की नहीं होती जांच
सिविल अस्पताल में गर्भवती का नहीं होता टेस्ट , जेनेटिक बीमारी है थैलेसीमिया।
जागरण संवाददाता, पानीपत
थैलेसीमिया जेनेटिक बीमारी है। जिले में बीमारी से पीड़ित 18 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। गैर पंजीकृत बच्चों की संख्या ज्यादा हो सकती है सरकार ने पिछले वर्ष प्रत्येक गर्भवती महिला का थैलेसीमिया टेस्ट अनिवार्य कर दिया था, ताकि गर्भ में पल रहे शिशु की बीमारी को नियंत्रित किया जा सके। सिविल अस्पताल की लैब में गर्भवती का टेस्ट शुरू नहीं किया गया है। इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट के लिए भी बच्चों को रोहतक और चंडीगढ़ रेफर किया जाता है। विवाह से पूर्व भी थैलेसीमिया टेस्ट के लिए भी युवा आगे नहीं आ रहे हैं।
इस बीमारी से पीड़ित माता-पिता के बच्चों को बीमारी होने की ज्यादा संभावना रहती है। डिलीवरी से पहले रोग की पुष्टि हो जाए तो डॉक्टर महिला के लिए खून की कोशिकाओं (बोन मैरो) बदलने का इंतजाम तथा अन्य इलाज और उपाय कर सकते हैं। सिविल अस्पताल में गर्भवती का एएनसी (एंटी नॉटल चेकअप) टेस्ट के दौरान ब्लड, शुगर, यूरिन, हीमोग्लोबिन, टीबी, एचआइवी आदि जांच तो होती हैं, थैलेसीमिया टेस्ट नहीं होता। हीमोग्लोबिन अत्यधिक कम होने पर महिला को रोहतक और चंडीगढ़ भेजा जाता रहा है। यही स्थिति बच्चों की जांच के लिए भी है। प्राइवेट लैब में टेस्ट महंगा (दो से ढ़ाई हजार) रुपये होने के कारण इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट के लिए अभिभावक रोहतक और चंडीगढ़ की दौड़ लगाते रहे हैं। पीड़ित बच्चों को प्रत्येक सप्ताह ब्लड चढ़वाना पड़ता है। रेडक्रॉस में थैलेसीमिया बच्चों के लिए पर्याप्त ब्लड होता है, कुछ सामाजिक संस्थाएं भी पीड़ित बच्चों के हित में काम कर रही है।
सिविल अस्प्ताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश दहिया ने बताया कि गर्भवती महिलाएं प्रीनेटल टेस्ट कराएं तो गर्भ में पल रहे शिशु में थैलेसीमिया की संभावनाओं का पता लगाया जा सकता है। बीमारी को ठीक नहीं किया जा सकता, नियंत्रित किया जा सकता है। प्री डिटेक्शन मरीज की ¨जदगी सामान्य करने में मददगार साबित हो सकती है।
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एक वर्ष में 131 यूनिट ब्लड दिया रेडक्रॉस ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. पूजा ¨सघल ने बताया कि थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को पिछले एक वर्ष में लगभग 131 यूनिट ब्लड फ्री दिया गया। अप्रैल 2018 में अब तक आठ यूनिट ब्लड दिया गया है। उन्होंने स्वस्थ्य लोगों, खासकर युवाओं से अपील करते हुए कहा कि बच्चों के हित में रक्तदान करने के लिए आगे आएं ।
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बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही इलाज
डॉ. दहिया ने कहा कि थैलेसीमिया के रोगी को समय-समय पर ब्लड चढ़वाना पड़ता है। उम्र बढ़ने के साथ उतनी ही जल्द रक्त की जरूरत भी पड़ती है। बीमारी का एकमात्र इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट है, इसे स्टेम सैल ट्रांसप्लांट के नाम से भी जाना जाता है। सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा नहीं है। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज खर्च 15 से 20 लाख रुपये आता है।
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कुंडली तो मिलाते हैं, जांच नहीं कराते
सरकार ने गत वर्ष गाइडलाइन जारी करते हुए कहा कि शादी करने से पहले लड़का-लड़की दोनों थैलेसीमिया टेस्ट कराएं ताकि जेनेटिक बीमारी से बच्चों को बचाया जा सके। किसी को माइनर थैलेसीमिया है तो वह स्वस्थ पार्टनर चुने ताकि भविष्य में संतान को बीमारी की संभावना बहुत कम रहे। लड़का-लड़की दोनों माइनर थैलेसीमिया पीड़ित हैं तो होने वाला बच्चा मेजर थैलेसीमिया से पीड़ित हो सकता है। डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. मुनेश गोयल ने कहा कि भारत में शादी से पहले बच्चों की कुंडली तो मिलान की जाती है, जरूरी टेस्ट कराने में संकोच करते हैं। बच्चों की मुख्य सहयोगी संस्थाएं :
-वक्त दे रक्त दे रक्तदान सेवा सोसाइटी
-आरंभ रक्तलाइन
-निफा
-युवा क्रांति जीवन रक्षक बीमारी के लक्षण :
-शारीरिक विकास प्रभावित।
-अस्थि विकृति।
-मूत्र का रंग बदल जाना। ऐसे करें मुकाबला :
-गर्भावस्था के दौरान थैलेसिमिया जांच कराएं ।
-पीड़ित मरीज का नियमित रक्त जांच कराएं।
-आयरन क्लेटर्स जरूरत पडने पर इस्तेमाल करें।
-समय पूर्व एंडोक्राइन समस्याओं की जांच कराएं।
-मनोसामाजिक स्तर पर मरीज की सहायता करें। वर्जन :
गर्भवती महिलाओं का नैकेड आई ¨सगल ट्यूब रेड सेल्स ओस्मोटिक फ्रोगिलिटी टेस्ट सुविधा इसी माह शुरू की जाएगी।चिन्हित महिलाओं के सैंपल रोहतक के पीजीआइ की एचपीएलसी लैब में सैंपल भेज कर उनके गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया होने या नहीं होने की पुष्टि कराई जाएगी ।
-डॉ. संतलाल वर्मा, सिविल सर्जन, पानीपत।
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