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बरोदा उपचुनाव के लिए मतदान कल, प्रत्याशियों से कहीं ज्यादा उनके आकाओं की प्रतिष्ठा दांव पर

Baroda assembly by election बरोदा विधानसभा के उपचुनाव के मतदान कल यानी मंगलवार को होगा। चुनाव नतीजों से हरियाणा की राजनीतिक नब्ज पता चल जाएगी। मनोहर लाल दुष्यंत चौटाला भूपेंद्र सिंह हुड्डा दीपेंद्र हुड्डा व अभय चौटाला के लिए के लिए यह चुनाव खास है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 02 Nov 2020 03:33 PM (IST)Updated: Mon, 02 Nov 2020 04:39 PM (IST)
भाजपा, कांग्रेस व इनेलो के चुनाव चिन्ह। सांकेतिक फोटो

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। Baroda assembly by election: हरियाणा के सोनीपत जिले की बरोदा विधानसभा सीट पर मंगलवार को होने वाले उपचुनाव में प्रत्याशियों की कम और दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा अधिक दांव पर लगी है। कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के देहावसान की वजह से खाली हुई बरोदा सीट पर मंगलवार को वोट पड़ेंगे। दस नवंबर को मतों की गिनती के बाद तय होगा कि भाजपा-जजपा गठबंधन बरोदा की बंजर राजनीतिक जमीन पर कमल खिलाने में कामयाब हो पाते हैं अथवा कांग्रेस ने अपना सिक्का बरकरार रखा। यह चुनाव इनेलो की राजनीति में बढ़ती सक्रियता का पैमाना भी तय करेगा।

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बरोदा में कांग्रेस ने इंदु नरवाल (भालू) को चुनाव मैदान में उतारा है तो भाजपा ने अंतरराष्ट्रीय पहलवान योगेश्वर दत्त पर दोबारा दांव खेला है। इनेलो ने अपने पुराने उम्मीदवार जोगिंदर मलिक को इंदु और योगेश्वर के मुकाबले रण में उतार रखा है। भाजपा के बागी पूर्व सांसद राजकुमार सैनी भी यहां अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। करीब पौने दो लाख मतदाताओं और 54 गांव वाले बरोदा हलके में प्रत्याशियों से ज्यादा राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है। इस चुनाव में इन दलों के प्रत्याशी तो नाममात्र का चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन असली चुनाव दिग्गजों के बीच हो रहा है, जिसके फैसले पर पूरे प्रदेश की निगाह टिकी हुई है। खुद राजनेता मानते हैं कि बरोदा के चुनाव नतीजे भविष्य की राजनीति की तस्वीर पेश करेंगे।

बरोदा से तय होगा भाजपा-जजपा गठबंधन का भविष्य

भाजपा-जजपा गठबंधन का चुनाव मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। पांच साल अकेले राज चलाने के बाद भाजपा ने इस बार जजपा के साथ गठबंधन किया है। इस गठबंधन को एक साल हो गया है। भाजपा को जहां जजपा के गठबंधन का फायदा मिलने की आस जताई जा रही है, वहीं गठबंधन सरकार के सभी मंत्री, विधायक, सांसद और पूर्व मंत्री बरोदा में प्रचार कर लौट चुके हैं।

मनोहर लाल व दुष्यंत चौटाला। फाइल फोटो

केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत के अलावा सभी दिग्गज एक या दो बार बरोदा की गलियों में आकर लोगों को विकास कार्यों की दुहाई दे चुके हैं। कई मंत्रियों ने तो योगेश्वर दत्त की जीत पर उन्हें सरकार में हिस्सेदारी तक मिलने के संकेत दिए हैं। वह भी तब, जब अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी संदीप सिंह सूबे में खेल राज्य मंत्री के पद पर कार्यरत हैं। पिछले चुनाव में जजपा उम्मीदवार को यहां करीब 35 हजार वोट मिले थे। कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा से भाजपा के योगेश्वर दत्त की हार का अंतर पौने पांच हजार वोट रहा है। भाजपा आश्वस्त है कि वह इस अंतर को पाटने में कामयाब हो सकती है।

हाईकमान में अपना कद बढ़ाने को बेकरार हुड्डा पिता-पुत्र

कांग्रेस में यह चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जु़ड़ा हुआ है। कहने को बरोदा में पूरी कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, लेकिन असली चुनाव भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा का ही है। बरोदा में चेहरा दिखाने के लिए तो कांग्रेस के कई दिग्गज नेता कई बार नजर आए, मगर इंदु नरवाल का चुनाव पूरी तरह से हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र की राजनीतिक प्रतिष्ठा तय करेगा।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा व दीपेंद्र हुड्डा। फाइल फोटो

हुड्डा और दीपेंद्र का साथ देने के लिए उनके विधायकों की टीम ने बरोदा में दिन रात एक कर रखा है। विधायक आफताब अहमद हों या बीबी बत्रा और गीता भुक्कल, सभी ने कांग्रेस की जीत के लिए जी-तोड़ मेहनत में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। इस सीट के नतीजे प्रदेश और हाईकमान दोनों में हुड्डा व दीपेंद्र के राजनीतिक कद को साबित करने वाले होंगे। साथ ही हुड्डा विरोधियों के लिए भी बड़ा सबक हो सकते हैं।

इनेलो की काडर वोटबैंक को वापस लाने की कवायद

बरोदा का उपचुनाव इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा है। बरोदा में छह बार कांग्रेस और छह बार ताऊ देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं। इनेलो में जब से दोफाड़ हुई, तब से पार्टी कमजोर मानी जाने लगी थी, लेकिन पिछले एक साल में अभय सिंह चौटाला ने जिस मुस्तैदी और शिद्दत के साथ मेहनत की, उससे इनेलो का काडर वोट वापस इनेलो के साथ जुड़ता नजर आ रहा है।

ओपी चौटाला व अभय चौटाला। फाइल फोटो

इसकी वजह यह बताई जा रही कि जजपा में उनके काम नहीं हो रहे, जिस कारण इनेलो के काडर वोट बैंक इनेलो के साथ जुड़ना ज्यादा पसंद कर रहा है। एक बड़ा तबका सिर्फ इसलिए ही जजपा के साथ गया था, ताकि वह अपने काम करा सके। अभय सिंह चौटाला की इस मेहनत को उनके पिता ओमप्रकाश चौटाला ने उम्रदराज होने के बावजूद काफी फलीभूत किया है। चौटाला पूरे बरोदा हलके में घूम गए, जिस कारण यहां इनेलो के वर्करों में एक नए जोश का संचार दिखाई दे रहा है।

पूर्व सांसद राजकुमार सैनी करेंगे वोटों में बिखराव

लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के अध्यक्ष एवं भाजपा से बगावत करने वाले पूर्व सांसद राजकुमार सैनी यहां अपनी सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। उनके चुनाव में खड़े होने का किसी को फायदा हो न हो, लेकिन गैर जाट व पिछड़े मतों में बिखराव का कारण जरूर बन सकते हैं। बरोदा में मंगलवार को सुबह सात बजे से मतदान शुरू होगा, जो शाम छह बजे तक चलेगा। इसके बाद रिजल्ट के लिए दस नवंबर तक इंतजार करना होगा। तब तक प्रत्याशियों की कमी और उनके तीमारदारों (नेताओं) की धड़कनें बढ़ती दिखाई देंगी।

हरियाणा विधानसभा की मौजूदा दलीय स्थिति

कुल सीटें - 90

भाजपा - 40

कांग्रेस - 30

जजपा - 10

निर्दलीय - 7

हलोपा - 1

इनेलो - 1

खाली सीट - 1 बरौदा

बरोदा सीट की हार-जीत के यह होंगे राजनीतिक मायने

बरोदा सीट भले ही कोई भी पार्टी जीत ले, लेकिन सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन भविष्य में फायदा जरूर हो सकता है। कांग्रेस यदि यह सीट दोबारा से जीतने में कामयाब हो जाती है तो कांग्रेस विधायकों की संख्या दोबारा 30 से बढ़कर 31 हो जाएगी, जबकि भाजपा के विधायकों की संख्या 40 से बढ़कर 41 हो जाएगी। सात निर्दलीय विधायकों में महम के विधायक बलराज कुंडू बागी हैं। वह सरकार में शामिल नहीं हैं। बाकी छह निर्दलीय विधायक सरकार के साथ हैं। इनमें से एक रणजीत चौटाला को सरकार ने मंत्री बना रखा है, जबकि पांच निर्दलीय विधायकों को बोर्ड एवं निगमों की चेयरमैनी दे रखी है। ऐसे में यह तो हो सकता है कि यदि भविष्य में जननायक जनता पार्टी किसी कारण से भाजपा को आंखें दिखाने लगे अथवा भाजपा उससे तंग हो जाए वह अपने 41 विधायकों और छह निर्दलियों के बूते सरकार बनाने में कामयाब हो सकती है।

हलोपा विधायक गोपाल कांडा का उसे पहले से ही बाहरी समर्थन हासिल है। लिहाजा बरोदा की जीत कांग्रेस के लिए जितनी अहम है, उससे कहीं अहम भाजपा के लिए हैं। भाजपा अपने लिए इस सीट को जननायक जनता पार्टी से भी ज्यादा अहम मानकर चल रही है, जबकि इनेलो बरोदा के रण में अपना राजनीतिक वजन तोलकर अपनी विरोधी जजपा को निशाने पर लेना चाह रही है। भाजपा, जजपा व इनेलो से इतर कांग्रेस इस सीट को जीतकर दिल्ली दरबार में अपनी मजबूत ताकत का अहसास कराना चाह रही है। 


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