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    हरियाणा में बड़ा खतरा बने रोहिंग्या, दिल्‍ली से निकाले गए तो मेवात में मिल रही शरण

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Wed, 17 Mar 2021 01:58 PM (IST)

    Rohingya In Haryana रोहिंग्‍या दिल्‍ली से निकाले जाने के बाद हरियाणा के कई हिस्‍सों खासकार मेवात में आग गए हैं। हरियाणा के मेवात में उनको शरण मिल रही है। ऐसे में रोहिंग्‍या हरियाणा के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं।

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    रोहिंग्‍या मुसलमान हरियाणा के लिए खतरा बन गए हैं। (फाइल फोटो)

    चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात (नूहं) में रोहिंग्या मुसलमानों की तादाद बढ़ती जा रही है। मेवात में लोग इन रोहिंग्या मुसलमानों के शरणदाता बन गए हैं। विश्‍व हिंदू परिषद ने हरियाणा में रोहिंग्या की भारी तादाद में मौजूदगी के दस्तावेजों के साथ उनके यहां रहने को देश और प्रदेश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ बताया है। केंद्र की तर्ज पर हरियाणा सरकार भी हालांकि इन रोहिंग्या मुसलमानों को प्रदेश में नहीं रहने देने के हक में है और बनाए जा रहे परिवार पहचान पत्रों के जरिये उनकी पहचान कर उन्हें प्रदेश से रुखसत करने का रास्ता भी तैयार कर रही है। इनको प्रदेश से बाहर निकालने में अभी थोड़ा वक्त लग सकता है, लेकिन तब तक किसी भी देशविरोधी घटना की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता।

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    हरियाणा के मेवात में सबसे ज्यादा तादाद, वहीं के लोग दे रहे अपने घरों में शरण

    हरियाणा सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पूरे प्रदेश में 600 से 700 परिवार रोहिंग्या मुसलमानों के हैं। अकेले मेवात में करीब दो हजार रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं। लेकिन, विश्‍व हिंदू परिषद सरकार के इन आंकड़ों को प्रमाणिकता के आधार पर सही नहीं मानती। विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल के अनुसार इनकी संख्या लाखों में हैं। सबसे ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान मेवात (नूंह), फरीदाबाद, गुरुग्राम, पलवल और यमुनानगर जिलों में रहते हैं। बाकी जिलों में भी इनकी उपस्थिति है, लेकिन उनके आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड बन जाने की वजह से उन पर जल्दी से शक किया जाना मुश्किल हो रहा है।

    विश्‍व हिंदू परिषद इन रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकालने की लड़ाई 2008 से लड़ रही है। उस समय, जब इन्हें दिल्ली से बाहर किया गया तब ज्यादातर रो¨हग्या मुसलमानों ने दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात और उत्तर प्रदेश में शरण ले ली। कई लोग छोटी-छोटी बस्तियां बनाकर रहने लगे। अब सख्ती दोबारा से बढ़ी तो मेवात के मुस्लिमों ने इन्हें अपने यहां शरण दे दी।

    2008 में ये रोहिंग्या शरणार्थियों का दर्जा हासिल कर भारत में स्थायी रूप से बसना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने यूएन के मानवाधिकार आयोग के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन भी किया। तब विहिप के तत्कालीन कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडि़या के हवाले से विनोद बंसल ने केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय, विभागों और राज्य सरकारों को पूरे दस्तावेजों के साथ 40 पेज का एक पत्र लिखा था। इसमें रोहिंग्‍याओं को शरणार्थी का दर्जा न दिए जाने की मांग के साथ ही उनकी उपस्थिति को खतरनाक साबित बताया गया था।

    विश्‍व हिंदू परिषद के पास तमाम ऐसे दस्तावेज, जिनके आधार पर रोहिंग्याओं की मौजूदगी खतरा

    विहिप के राष्ट्रीय सचिव डा. सुरेंद्र जैन के अनुसार हम इस पक्ष में कतई नहीं हैं कि रोहिंग्याओं को यहां शरण मिले। इन्हें तत्काल भारत की सीमा से बाहर खदेड़ा जाना चाहिए। इनके अनेक देशों के आतंकवादी संगठनों के साथ संबंधों से इन्कार नहीं किया जा सकता। म्यांमार में सेना और सरकार के विरुद्ध उपद्रव खड़ा करने में इन रोहिंग्या मुसलमानों ने आतंकवादी संगठनों के साथ मजबूत टाईअप किया था। इसलिए इनसे किसी नरम रुख की उम्मीद नहीं की जा सकती।

    विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल बताते हैं कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 40 हजार रोहिंग्या गैरकानूनी तौर पर रह रहे हैं, लेकिन हमारी रिपोर्ट में इनकी संख्या लाखों में हैं। ज्यादातर रो¨हग्या इस वक्त हरियाणा के अलावा जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर के अलावा राजस्थान में हैं।

    इस तरह से तैयार हुए रोहिंग्या मुसलमान

    म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाया था, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया था। इसके बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती आ रही है। विहिप का मानना है कि बांग्ला देश के सैनिक जब म्यांमार की सीमा पर तैनात थे, तब हमले में म्यांमार के सैनिक मारे गए। उनकी विधवाओं को इन बांग्ला देशी सैनिकों ने अपने साथ रखा। यह वापस आ गए और उनकी संतानें वहीं रह गई। यह रोहिंग्या बांग्ला देशी पुरुष और म्यांमार की महिलाओं की संयुक्त संतान हैं। अब इन्हें न म्यांमार संभालने को तैयार है और न ही बांग्ला देश स्वीकार कर रहा है।

    एनआरसी बनाने के हक में हरियाणा सरकार

    हरियाणा सरकार पिछले दिनों इन रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में अपना रुख साफ कर चुकी है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना है कि राज्य सरकार परिवारों के परिचय पत्र और इसके डाटा पर तेजी से काम कर रही है। नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) के हक में सरकार है। एनआरसी बनाने में इनका भी इस्तेमाल किया जाएगा।

    पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी मुख्यमंत्री की इस राय से सहमत हैं और उनका कहना है कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को देश में रहने की इजाजत हमारा कानून नहीं देता है। अवैध रूप से रहने वाला कोई भी व्यक्ति देश की सुरक्षा के लिए खतरा है।

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