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मुस्लिम प्रेमी जोड़े की याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की टिप्पणी, सुरक्षा के अधिकार से नहीं किया जा सकता वंचित

हाई कोर्ट ने मुस्लिम प्रेमी जोड़े की याचिका पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। जोड़ेे पहली पत्नी व प्रेमिका के घर वालों से जान को खतरा बताकर सुरक्षा मांगी थी। हाई कोर्ट ने कहा- विवाह अवैध हो फिर भी जोड़ेे को सुरक्षा केे अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 21 Dec 2020 04:43 PM (IST)Updated: Tue, 22 Dec 2020 09:36 AM (IST)
मुस्लिम प्रेमी जोड़े की याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की टिप्पणी, सुरक्षा के अधिकार से नहीं किया जा सकता वंचित
मुस्लिम प्रेमी जोड़े की याचिका पर हाई कोर्ट की टिप्पणी।

जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ कर दिया है विवाह अवैध होने की स्थिति में भी किसी दंपती को उसके कानूनी सुरक्षा अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट की जस्टिस अलका सरीन ने इसी के पुलिस अधीक्षक, नूंह, हरियाणा को निर्देश दिया गया कि वह मुस्लिम दंपती की सुरक्षा की मांग पर उचित निर्णय ले।

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मेवात निवासी जाकर व उसकी प्रेमिका जो मुस्लिम थी ने घरवालों की मर्जी के खिलाफ निकाह कर लिया था। जाकर की पहली पत्नी व उसकी प्रेमिका के घरवालों से जान का खतरा बताकर दोनों ने हाई कोर्ट में सुरक्षा की गुहार लगाई थी। कोर्ट को बताया गया था कि युवक 23 साल व युवती 18 साल की है और वो कानूनन व मुस्लिम धर्म के अनुसार विवाह करने का अधिकार रखते हैंं, लेकिन उनके रिश्तेदार उनके विवाह से खुश नहीं है और जान से मारने की धमकी दे रहे हैंं।

इस मामले में रोचक बात यह है कि युवक की पहली पत्नी ने हाई कोर्ट में अपने वकील के माध्यम से पेश होकर विवाह पर ऐतराज जताते हुए कहा कि मुस्लिम धर्म के अनुसार दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी की रजामंदी जरूरी है, लेकिन उससे इस बाबत सहमति नहीं ली गई, ऐसे में यह विवाह अवैध है। कोर्ट ने कहा कि वह इस बात पर कोई फैसला नहीं दे रहा कि पहली पत्नी की सहमति के बिना याचिकाकर्ताओं की शादी अवैध है। कोर्ट अपनी आंखे बंद नहीं कर सकता है कि याचिकाकर्ताओं को जान के खतरा की आंशका है। विवाह अवैध है, इसे आधार बनाकर किसी को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं कर सकते।

कोर्ट ने कहा यहां मुद्दा विवाह की वैधता का नहीं है, लेकिन तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। इसी के साथ हाई कोर्ट ने सुरक्षा के बारे में आदेश जारी करते हुए साफ कर दिया कि हाई कोर्ट के आदेश इस विवाह की वैधता और दर्ज आपराधिक मामलों को प्रभावित नहीं करता और पुलिस नियमों अनुसार कार्रवाई करने में सक्षम है। 


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