डॉक्टरों के लिए बदलेगी पॉलिसी, स्पेशलिस्ट का बनाया जाएगा अलग कैडर
हरियाणा में सरकार डॉक्टरों के लिए नियम बदलेगी। राज्य में स्पेशलिसअ डॉक्टरों का अलग से कैडर बनाया जाएगा।
चंडीगढ़, [सुधीर तंवर]। सरकारी नौकरी से दूर भाग रहे डॉक्टरों को रिझाने के लिए प्रदेश सरकार अब पॉलिसी बदलेगी। विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए अलग कैडर होगा और सामान्य के लिए अलग। विशेषज्ञ डॉक्टरों का न केवल पदनाम बदला जाएगा, बल्कि ड्यूटी भी आपातकालीन सेवाओं, पोस्टमार्टम, प्रशासनिक कार्यों, आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) सहित अन्य गैर क्लीनिकल कामों में नहीं लगेगी। डॉक्टर केवल उन्हीं बीमारियों का इलाज करेंगे, जिनके वह विशेषज्ञ होंगे। विशेषज्ञ डॉक्टरों को नौकरी में ज्वाइनिंग के साथ ही आकर्षक वेतन व अलग से प्रोत्साहन राशि मिलेगी।
सरकार ने ड्राफ्ट जारी कर मांगे सुझाव, विशेषज्ञों को नहीं मिलेगा गैर क्लीनिकल काम
स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए प्रदेश सरकार ने नई पॉलिसी का ड्रॉफ्ट तैयार कर स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों से सुझाव मांगें हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों को स्पेशलिस्ट, एडिशनल सीनियर स्पेशलिस्ट, सीनियर स्पेशलिस्ट और चीफ स्पेशलिस्ट का दर्जा दिया जाएगा, जबकि सामान्य कैडर में पहले की तरह मेडिकल ऑफिसर, सीनियर मेडिकल ऑफिसर, प्रिंसिपल मेडिकल ऑफिसर और चीफ मेडिकल ऑफिसर रहेंगे। विशेषज्ञ डॉक्टरों के पदों पर सीधी भर्तियां भी होंगी और पदोन्नति से भी इन पदों को भरा जाएगा।
ड्रॉफ्ट में सरकार ने माना है कि वर्तमान में डॉक्टरों को आकर्षक पैकेज नहीं मिलने के चलते वह सरकारी सेवाओं में नहीं आते। इससे अस्पतालों में विशेषज्ञों की भारी कमी है। पॉलिसी में बदलाव के बाद विशेषज्ञ डॉक्टरों की भर्ती के लिए अलग से बोर्ड बनेगा।
डॉक्टरों को विशेषज्ञता की श्रेणी में प्रमोशन मिले या फिर स्पेशल कैडर के मुताबिक पदोन्नति दी जाए, इस पर सुझाव मांगा गया है। मौजूदा समय में डिप्लोमा होल्डर डॉक्टरों को चार व डिग्री प्राप्त डॉक्टरों को छह इंक्रीमेंट मिलती है। विशेषज्ञ डॉक्टरों को भर्ती के साथ ही डिप्लोमा पर 20 हजार और डिग्री पर 25 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलेगी। इससे सरकारी खजाने पर सालाना करीब 18 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा।
दो कैडर होने पर कौन बनेगा प्रशासनिक मुखिया
विशेषज्ञ डॉक्टरों और सामान्य डॉक्टरों का कैडर अलग होने पर बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या सिविल सर्जन के हाथ में ही जिले की कमान रहेगी या फिर चीफ स्पेशलिस्ट के पास। जिला अस्पताल और उप जिला अस्पतालों का इंचार्ज कौन होगा। प्रिंसिपल मेडिकल ऑफिसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर होगा या सामान्य कैडर का डॉक्टर। अधिकतर अस्पतालों में एमबीबीएस मेडिकल ऑफिसर ही ओपीडी और आपातकालीन सेवाएं संभालते हैं। जनरल कैडर के डॉक्टर को इंचार्ज बनाने पर विशेष डॉक्टर उनके अधीन हो जाएंगे और अगर विशेषज्ञ डॉक्टरों को इंचार्ज बनाया जाता है तो उन्हें प्रशासनिक कार्य भी देखना पड़ेगा।
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हरियाणा से डिग्री पर देना पड़ेगा एक साल
हरियाणा के मेडिकल कॉलेजों में पढऩे वाले छात्रों को एक साल प्रदेश के अस्पतालों में बिताना पड़ेगा। स्वास्थ्य विभाग ने पहले स्थानीय मेडिकल कॉलेजों के छात्रों को हरियाणा में दो साल की अनिवार्य सेवा का प्रस्ताव भेजा था जिसे मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एक साल कर दिया है। इससे हर साल करीब 800 रेजिडेंट्स अथवा जूनियर डॉक्टरों की सेवाएं लोगों को मिल सकेंगी। डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए होमगार्ड के जवान तैनात किए जाएंगे।
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अस्पतालों में खत्म होगा डॉक्टरों का टोटा
प्रदेश में 3294 सरकारी स्वास्थ्य संस्थान हैं जिनमें 59 अस्पताल, 119 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 486 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 2,630 सब सेंटर हैं। इनमें स्वीकृत 3191 पदों में से डॉक्टरों के 603 पद खाली हैं। वर्तमान में मेडिकल अफसर (एमओ) को नई ज्वाइनिंग पर 70 से 80 हजार रुपये महीना मिलते हैं जबकि बड़े निजी अस्पतालों में दो लाख मासिक के पैकेज के साथ शुरुआत होती है।
सरकारी सेवा में आने पर दो साल गांवों में नौकरी की शर्त, प्रमोशन पॉलिसी में खामियां, क्लेरिकल कामों के साथ वीवीआइपी ड्यूटी, पोस्टमार्टम, जेल में कैदियों के उपचार और आपातकालीन विभाग चलाने की जिम्मेदारी जैसे काम उन्हें नौकरी छोडऩे पर मजबूर कर देते हैं। नई पॉलिसी में विशेषज्ञ डॉक्टरों पर अनावश्यक बोझ नहीं होगा।
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