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परवरिश मामले में हाई कोर्ट ने कहा- ऑस्ट्रेलिया में पैदा बच्चे को भारत में दादा-दादी के पास रखना क्रूरता नहीं

बच्चे की मां का आरोप है कि आस्ट्रेलिया में पैदा हुए बच्चे के लिए भारत में नहीं अनुकूल परिवेश नहीं है। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा दादा-दादी एक अनुकूल माहौल दे सकते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 10 Jul 2020 12:26 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2020 12:26 PM (IST)
परवरिश मामले में हाई कोर्ट ने कहा- ऑस्ट्रेलिया में पैदा बच्चे को भारत में दादा-दादी के पास रखना क्रूरता नहीं
परवरिश मामले में हाई कोर्ट ने कहा- ऑस्ट्रेलिया में पैदा बच्चे को भारत में दादा-दादी के पास रखना क्रूरता नहीं

चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर आस्ट्रेलिया में भारतीय माता-पिता से पैदा हुआ बच्चा भारत में अपने दादा-दादी के संरक्षण में रह रहा है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि बच्चे को उसकी जन्मभूमि से दूर रखकर उसके प्रति क्रूरता बरती जा रही है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस एके त्यागी ने यह आदेश कुरुक्षेत्र की एक महिला द्वारा, जो अब आस्ट्रेलियाई नागरिक है, दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए दिया।

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महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके ससुराल वालों ने उसके बेटे को जबरन अपने पास रखा हुआ है। हालांकि, हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आस्ट्रेलिया प्रत्यावर्तन के लिए बच्चे का संरक्षण तय करने के लिए अंबाला में फैमली कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी है।

याचिका के अनुसार महिला की शादी दिसंबर 2009 में पंचकूला में हुई थी। पति अंबाला का मूल निवासी है, जबकि महिला कुरुक्षेत्र से है। शादी के समय पति आस्ट्रेलिया में रह रहे थे। जुलाई 2010 में वह पत्नी को भी आस्ट्रेलिया में ले गया और मार्च 2011 में एक बेटे का जन्म हुआ।

याचिका के अनुसार उसके कुछ दिन बाद पति अपनी पत्नी को दहेज के लिए तंग करने लगा। जब वे 11 सितंबर, 2019 को अपने बेटे के साथ भारत आए तो पति अपने परिवार के सदस्यों की मदद से उनके बेटे को जबरन अंबाला अपने साथ ले गया। पत्नी ने कोर्ट को बताया कि अपनी जान के खतरे को भांपते हुए वह आस्ट्रेलिया लौट गई।

याचिका के अनुसार दो दिनों के बाद उनके पति भी आस्ट्रेलिया लौट आए और आस्ट्रेलिया के स्कूल से अपने बेटे का प्रमाणपत्र लेकर अंबाला के स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया। महिला के अनुसार उसके बेटे को उसके ससुराल वालों ने गलत तरीके से अपने संरक्षण में रखा हुआ है।

अपने बेटे की कस्टडी की मांग करते हुए महिला ने कहा कि उसका बेटा आस्ट्रेलिया में पैदा हुआ था, वहां अपना बचपन बिताया, आस्ट्रेलिया में ही उसके दोस्त हैं और आस्ट्रेलिया में पढ़ाई करना और रहना उसे पसंद है। मेरे पति ने आस्ट्रेलिया में पैदा हुए बच्चे के आराम, स्वास्थ्य, शिक्षा, बौद्धिक विकास और उसके अनुकूल परिवेश की परवाह नहीं की और उसे भारत में छोड़ दिया।

वहीं, सुनवाई के दौरान पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी के विवाहेतर संबंध थे और यहां तक कि उस व्यक्ति के साथ संबंध तोड़ने के बाद उसने आस्ट्रेलिया में आत्महत्या करने की भी कोशिश की। इस मामले में पुलिस की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि पुलिस ने नाबालिग लड़के, उसकी दादी और परिवार के अन्य सदस्यों के बयान दर्ज किए।

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, लड़का संयुक्त परिवार में अपनी दादी और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ खुशी से रह रहा है और अंबाला स्थित स्कूल में पढ़ रहा है। सभी पक्षों के सुनने के बाद हाई कोर्ट ने महिला के आरोपों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कहना अनुचित है कि बच्चे को भारत में अनुकूल परिवेश नहीं मिलेगा, क्योंकि बच्चे का कोई सामाजिक दायरा नहीं है। बेंच ने कहा कि उसके माता-पिता दोनों भारतीय है। माता-पिता व दादा-दादी के सामाजिक परिवेश में कोई अंतर नहीं है। दादा-दादी वह एक अनुकूल माहौल दे सकते हैंं जो एक बच्चे के विकसित होने के लिए जरूरी है।


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