मनोहर सरकार ने जाट आरक्षण का फैसला किया राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के हवाले
हरियाणा सरकार ने जाट सहित छह जातियों को आरक्षण का मामला अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पाले में डाल दिया है।
जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा में जाटों सहित छह जातियों के आरक्षण मामले में प्रदेश सरकार ने गेंद अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पाले में डाल दी है। मनोहर सरकार ने नसीहत दी है कि जिन जातियों को आरक्षण चाहिए, वे सीधे आयोग में जाएं। आयोग को संवैधानिक मिलने के बाद किसी भी वर्ग और जाति को अब सरकार पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं रही है। हालांकि हाई कोर्ट में पहले से चल रहे मामलों में प्रदेश सरकार मजबूती से पैरवी करेगी।
संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद सरकार ने दी जाटों को आयोग में जाने की नसीहत
मुख्यमंत्री निवास पर सीएम मनोहर लाल की अध्यक्षता में हुई मंत्री समूह की बैठक में भी इस मसले पर विचार-विमर्श किया गया। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्ण कुमार बेदी ने कहा कि केंद्र सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर एेतिहासिक कदम उठाया है। बेदी ने कहा कि लोकसभा में कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का विरोध कर साफ कर दिया कि वह कभी पिछड़ा वर्ग के हक में नहीं रही।
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हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन से जुड़े सवाल पर बेदी ने कहा, कोई भी वर्ग और जाति अब आरक्षण के लिए आयोग के पास जा सकता है। आयोग को आरक्षण देने का पूरा अधिकार है। उसके फैसले को कानूनी चुनौती भी नहीं दी जा सकेगी। इस दौरान मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार राजीव जैन भी मौजूद रहे।
सरकारों ने दिया आरक्षण, कानूनी दांव-पेंचों में उलझा
पूर्ववर्ती केंद्र सरकार ने हरियाणा के जाटों को अपनी ओबीसी सूची में शामिल किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद कर दिया। इसी तरह प्रदेश की हुड्डा सरकार द्वारा जाट, जट सिख, रोड़, त्यागी, बिश्नोई व मुल्ला जाट को दस फीसद आरक्षण देने के फैसले को हाई कोर्ट ने रद कर दिया। वर्ष 2016 में जाट आंदोलन के दौरान हिंसा और आगजनी के बाद वर्तमान सरकार ने भी विधानसभा में कानून पास कर मार्च 2016 में इन छह जातियों को आरक्षण दिया। हाई कोर्ट ने इस पर भी रोक लगा दी। फिलहाल मामला हाई कोर्ट में लंबित है।
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आरक्षण के लिए सरकार पर निर्भरता खत्म
राज्य मंत्री कृष्ण बेदी ने कहा कि पूर्व की सरकारों ने अपने वोट बैंक के हिसाब से आरक्षण की नीतियां बनाई हुई थीं। अब कोई भी जाति और समाज आरक्षण के लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहेगा। आयोग खुद सर्वे कराएगा और किसी भी समुदाय या जाति को आरक्षण सूची में शामिल करने के लिए स्वतंत्र होगा।