हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, अधिग्रहण के बाद सरकार का भूमि पर अधिकार, डीनोटिफाई करने का हक उसी को
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अधिग्रहीत की गई भूमि पर सरकार का पूरा अधिकार है। उसे डीनोटिफाई करने के लिए सरकार को मांगपत्र देने का जमीन मालिकों को हक नहीं है।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ कर दिया है कि सरकार यदि चाहे तो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को रद कर सकती है, लेकिन भूमि मालिकों को इसके लिए मांग पत्र देने का कोई अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट की जस्टिस दया चौधरी ने फैसला हवा सिंह व अन्य द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर वापिस लेने की छूट देते हुए यह फैसला दिया।
याचिका में मांग की गई थी कि उनकी अधिग्रहण की गई भूमि को डीनोटिफाई किया जाए। बाद में याची पक्ष द्वारा अर्जिंयां दाखिल करते हुए याचिका वापस लेने और सरकार को रिप्रेजेंटेशन देने की छूट मांगी गई। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि सरकार ने भूमि का अधिग्रहण कर लिया है तो वह उस भूमि की मालिक हो जाती है और ऐसे मेंं भूमि का पूर्व मालिक या कोई और इसमेंं प्रवेश करे तो उसे घुसपैठ माना जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि भूमि अधिग्रहण एक्ट 2018 में किए गए संशोधन में सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि यदि अधिग्रहण की गई भूमि जनहित के लिए अनुपयोगी लगे तो सरकार भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को डीनोटिफाई कर सकती है। हालांकि इससे भूमि मालिक को यह अधिकार नहीं मिलता है कि वह भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को डीनोटिफाई करने के लिए सरकार को मांगपत्र सौंप सके।
हाई कोर्ट ने कहा कि यदि भूमि मालिकों को ऐसी छूट दी गई तो बार-बार हाई कोर्ट मेंं याचिकाएं दाखिल होंगी और हाई कोर्ट का समय बर्बाद होगा। हाई कोर्ट ने कहा कि बहुत से मामलों में कोर्ट ने भूमि मालिकों को रिप्रेजेंटेशन देने की छूट देते हुए उनकी याचिका का निपटारा किया है लेकिन उनमें इसके लिए कारण स्पष्टï नहीं किया गया था।
फैसले से एक्ट के बारे में फैली कई भ्रामक स्थिति स्पष्ट
हरियाणा के एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन का कहना है कि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पहली बार भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास व उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार कानून की व्याख्या की है। इस फैसले के आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि किसी जमीन को डीनोटिफाइड करने का अधिकार केवल सरकार के पास है व जमीन मालिक इस बाबत सरकार पर मांग पत्र के माध्यम से जमीन छोड़ने का कोई दबाव नहीं बना सकता। यह सरकार के विवेक पर निर्भर है। डिविजन बेंच के फैसले के आने के बाद इस एक्ट के बारे में फैली कई भ्रामक स्थिति स्पष्ट हो गई है।