गुजारा भत्ते पर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, इससे मतलब नहीं पति गलत है या पत्नी, जीवनसाथी को तो गुजारा भत्ता चाहिए
पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। पति ने पत्नी के चरित्र पर सवाल उठाते हुए गुजारा भत्ते देने के आदेश को रद करने की गुहार लगाई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता देना ही होगा।
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वैवाहिक विवादों में गुजारा भत्ते का निर्धारण करते समय कोर्ट के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक नहीं है कि पति-पत्नी में कौन गलत है। कोर्ट गुजारा भत्ते का निर्धारण करते समय पति-पत्नी के बीच हुए झगड़े की गहराई में भी जाने की जरूरत नहीं समझता।
गुजारा भत्ता तय करते समय कोर्ट को केवल यह देखना होता है कि क्या पत्नी अपना जीवनयापन करने में असमर्थ है और पति के पास उसे उपलब्ध कराने के पर्याप्त साधन हैं। कोर्ट का यह भी विचार है कि अगर पति सक्षम व्यक्ति है तो उसका नैतिक कर्तव्य और दायित्व बनता है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों के जीवनयापन के लिए उन्हें उचित गुजारा भत्ता दे।
हाई कोर्ट के जस्टिस सुवीर सहगल ने फरीदाबाद के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह राय जाहिर की है। इस व्यक्ति ने 11 फरवरी 2021 को पारिवारिक अदालत फरीदाबाद द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बेटे को पांच हजार रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
याचिका के अनुसार इस जोड़े की शादी जून 2010 में फरीदाबाद में हुई थी। पत्नी के मुताबिक शादी के बाद से उसका पति व परिवार के लोग दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे। गर्भवती होने पर उसे ससुराल से बाहर कर दिया गया था। उसकी डिलीवरी उसके पैतृक घर पर हुई और सुलह के बाद वह याचिकाकर्ता (पति) के पास वापस आ गई, लेकिन इसके बावजूद ससुराल पक्ष के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया और जनवरी 2011 में उसे फिर से ससुराल से निकाल दिया गया।
मामला फैमिली कोर्ट में जाने पर कोर्ट ने पति को अपनी पत्नी और नाबालिग बेटे के लिए प्रति माह पांच हजार रुपये गुजारा भत्ता देने आदेश दिया। इन आदेश के खिलाफ पति ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी उसके भाई से गर्भवती हुई थी और वही बच्चे के जैविक पिता है।
पति ने बच्चे के पितृत्व से इन्कार किया। पति ने कोर्ट में बताया कि उसकी पत्नी उसके साथ रहने के लिए तैयार नहीं थी। पत्नी ने आरोप लगाया था कि वह नपुंसक है। उसने सरकारी अस्पताल में अपनी जांच करवाई और पाया कि वह नपुंसक नहीं है।
पति के तरफ से कोर्ट को बताया गया कि पत्नी व बच्चे को गुजारा भत्ता देने के लिए उसके पास कोई आय का साधन भी नहीं है। हाई कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि हम यह तय नहीं कर रहे कि कौन सही है और कौन गलत है, गुजारा भत्ता देना पति का नैतिक कर्तव्य और दायित्व है।