निजी स्कूलों की मांग पर हाई कोर्ट में फीस मामले पर सुनवाई 23 जुलाई को
हरियाणा में निजी स्कूलाेें की फीस के मामले में हाई काेर्ट में अब 23 जुलाई को सुनवाई होगी।
चंडीगढ़, जेएनएन। निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस के अलावा छात्रों से अन्य किसी भी तरह की फीस की वसूली पर हरियाणा सरकार द्वारा रोक लगाए जाने के जो आदेश दिए हैं, उन आदेशों के खिलाफ हाई कोर्ट ने जो सुनवाई 7 सितंबर तक स्थगित कर दी थी उसे अब सुनवाई 23 जुलाई को किए जाने का निर्णय लिया है। जस्टिस गिरीश अग्निहोत्री ने यह आदेश कुछ निजी स्कूलों द्वारा इस मामले की सुनवाई 7 सितंबर से पहले किए जाने की मांग को लेकर दायर अर्जी को स्वीकार करते हुए दिए हैं।
पहले हाई कोर्ट ने सुनवाई 7 सितंबर तक कर दी थी स्थगित, स्कूलों ने जल्द सुनवाई का किया था आग्रह
बता दें कि निजी स्कूलों की संस्थाओं ने हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि लॉकडाउन से सिर्फ छात्रों के अभिभावक ही प्रभावित नहीं हुए हैं, बल्कि निजी स्कूल भी प्रभावित हुए हैं। अगर वह फीस नहीं लेते हैं तो उन्हेंं शिक्षकों और अन्य स्टाफ को वेतन देना और स्कूल का खर्च तक निकालना मुश्किल हो जाएगा।
वहीं मामले में अभिभावकों की संस्था ने भी अर्जी दायर कर कहा है कि लॉकडाउन होने के कारण अभिभावकों की आय भी प्रभावित हुई है। ऐसे में सरकार के आदेश सही हैं जिसे लागु किया जाना चाहिए।
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ट्रांसपोर्ट लाइसेंस जारी करने में हरियाणा सरकार को नोटिस
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने ट्रांसपोर्ट अधिकारियों को फटकार लगाते हुए पूछा है कि एक दिन देरी से आने वाले आवेदन को अस्वीकार कर लिया गया तो कैसे दो माह बाद आने वाले आवेदनों पर गौर किया गया।
याचिका दाखिल करते हुए सोनीपत निवासी विरेंद्र ने हाई कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न याचिकाओं का निपटारा करते हुए हरियाणा सरकार को 28 जनवरी तक ट्रांसपोर्ट लाइसेंस के लिए आवेदन लेने को कहा था। याचिकाकर्ता ने ईमेल पर समय से रहते आवेदन कर दिया था।
याचिका में कहा गया है कि उसका आवेदन केवल इस आधार पर रद कर दिया गया की दस्तावेजों की हार्ड कॉपी 29 जनवरी को सरकारी कार्यालय में प्राप्त हुई। याचिकाकर्ता ने बताया कि एक और तो केवल एक दिन की देरी के कारण उसका आवेदन रद कर दिया गया वहीं दूसरी ओर मार्च माह में आने वाले आवेदनों पर भी गौर किया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि ऐसा करना ना केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
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