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किसानों और आढ़तियों के बीच फंसी हरियाणा सरकार, फसलोें के सीधे भुगतान पर मचा घमासान

हरियाणा में किसानों को फसलों के सीधे भुगतान पर घमासान मच गया है। हरियाणा इस मामले में किसानों और आढ़तियों के बीच फंस गई है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 22 Aug 2020 04:16 PM (IST)Updated: Sat, 22 Aug 2020 04:33 PM (IST)
किसानों और आढ़तियों के बीच फंसी हरियाणा सरकार, फसलोें के सीधे भुगतान पर मचा घमासान
किसानों और आढ़तियों के बीच फंसी हरियाणा सरकार, फसलोें के सीधे भुगतान पर मचा घमासान

चंडीगढ़, जेएनएन। हरियाणा सरकार राज्‍य में किसानों और आढ़तियों के बीच फंस गई है। राज्‍य में फसलों का भुगतान सीधे किसानों को देने पर घमासान मचा गया है। इस बार खरीद की राशि सीधे किसानों के खाते में भेजने के सरकार के सैद्धांतिक फैसले से आढ़तियों में बेचैनी का आलम है। भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के इस फैसले को किसान जहां अपने हित में मान रहे हैं, वहीं आढ़तियों को इसमें नुकसान ही नुकसान नजर आ रहा है। सरकार को लगता है कि किसानों के खाते में सीधे फसल का पैसा जाने से बिचौलिये खत्म होंगे, जबकि आढ़तियों को लग रहा है कि खाद, बीज और निजी खर्च के लिए किसानों द्वारा उनसे लिया जाने वाला पैसा अब वापस आना संभव नहीं हो सकेगा।  

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आढ़तियों और किसानों के बीच टकराव से दुविधा में सरकार

हरियाणा सरकार हालांकि इसी बार गेहूं के सीजन से किसानों को सीधे उनके खातों में फसल का भुगतान करना चाहती थी, लेकिन आढ़तियों के विरोध के चलते सरकार को अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा और उन्हें आढ़तियों के जरिये ही किसानों के खाते तक भुगतान पहुंचाने की व्यवस्था करनी पड़ी।

सरकार को इसके लिए राजी करने के लिए आढ़तियों को कई दिनों तक हड़ताल पर रहना पड़ा। अब प्रदेश में एक अक्टूबर से धान की सरकारी खरीद संभव है। ऐसे में सरकार ने पहले ही संकेत दे दिया है कि वह इस बार आढ़तियों के दबाव में नहीं आएगी और किसानों को सीधे उनके खातों में फसल का पैसा देगी।

धान के सीजन में आढ़तियों को पिक्चर से बाहर करना आसान नहीं

हरियाणा सरकार के इस फैसले से आढ़तियों में बेचैनी का आलम है। केंद्र सरकार के तीन अध्यादेशों को किसान व आढ़ती विरोधी बताने की आड़ लेते हुए आढ़तियों ने शुक्रवार को राज्य भर में हड़ताल भी की, लेकिन आढती इस आंदोलन को लंबा चलाने के मूड में हैं। हरियाणा में आढ़तियों के आंदोलन की बागडोर व्यापार मंडल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रदेश अध्यक्ष बजरंग दास गर्ग ने संभाली हुई है।

बजरंग दास गर्ग लंबे समय से आढ़तियों के हित की लड़ाई लड़ रहे हैं। कोई आंदोलन ऐसा नहीं रहा, जिसे बजरंग दास ने किसी नतीजे पर पहुंचाकर न छोड़ा हो। इस बार फिर गर्ग किसानों को पेमेंट देने के मामले में आढ़तियों की अनदेखी को मुद्दा बनाकर सरकार से आरपार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं।

पीके दास और गुरनाम सिंह चढूनी।

किसानों को सीधे भुगतान मिला तो आढ़तियों की बढ़ेगी नाराजगी

भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी और दूसरे गुट के अध्यक्ष रतन मान भी अपने-अपने ढंग से किसानों के हित की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी लड़ाई किसानों को उनकी फसल के पूरे और समय से दाम नहीं मिलने को लेकर है। साथ ही वे चाहते हैं कि किसानों को उनके खाते में सीधे पैसा मिलना चाहिए। आढ़तियों की दलील है कि कभी धान घोटाले की जांच तो कभी चावल के फिजिकल वैरीफिकेशन के नाम पर व्यापारियों, आढ़तियों तथा मिल मालिकों को तंग किया जा रहा है तो कभी विभिन्न सर्वे की आड़ में उनका उत्पीड़न हो रहा है, जिसका आढ़ती विरोध करने में तुले हुए हैं।

पत्रकारों से बातचीत करते हरियाणा व्‍यापार मंडल के अध्‍यक्ष बजरंग दास गर्ग।

हरियाणा व्यापार मंडल के अध्यक्ष एवं कानफेड के पूर्व चेयरमैन बजरंग दास गर्ग ने शनिवार को दावा किया कि राज्य भर में कल हुई हड़ताल पूरी तरह से सफल रही है। आढ़तियों व किसानों के बीच पुराना रिश्ता है, जिसमें सरकार नए-नए फैसलों के जरिये उसे खराब करने पर तुली हुई है। गर्ग के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा जो तीन नए अध्यादेश लाए जा रहे हैं, उसका पूरे देश में विरोध हो रहा है। अगर सरकार समय रहते हुए किसान व आढ़ती विरोधी फरमान वापस नहीं लेती तो पूरे देश में अक्टूबर महीने में मंडिया बंद कर देश का किसान, आढ़ती, मुनीम, मजदूर व व्यापारी सड़कों पर आ जाएगा।

दूसरी तरफ हरियाणा के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव पीके दास का कहना है कि हम धान के सीजन से किसानों के खाते में उनकी फसल का पूरा पैसा डालने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार भी सरकार ने ऐसी योजना बनाई थी, लेकिन आढ़तियों ने इस पर आपत्ति जताई। जब आढ़तियों के जरिये पैसा किसानों के खाते में भेजा गया तो वह देरी से पहुंचा। करीब दो हजार करोड़ रुपये की राशि देरी से पहुंची है।

उन्‍होंने कहा कि अब भविष्य में ऐसी व्यवस्था खत्म करने की योजना है। इसके जवाब में बजरंग दास गर्ग का कहना है कि आढ़ती यदि पिक्चर से बाहर हो जाएंगे तो वह कहां जाएंगे। एक आढ़त से कम से कम दस परिवारों का रोजगार जुड़ा हुआ होता है। इसिलए सरकार को कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिये। आढ़तियों व किसानों के बीच बनने जा रही इस व्यवस्था से अब सरकार के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है।


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