भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपना रहे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल
Haryana Politics प्रदेश में जमीन की कमी को दूर करने के लिए सरकार का यह प्रयास निसंदेह सफल साबित हो सकता है लेकिन साथ ही ऐसे लोगों को शांत कर समझाने की जिम्मेदारी भी सरकार की होगी जो पूरे मामले को राजनीतिक हवा देते देर नहीं लगाएंगे। [राज्य ब्यूरो प्रमुख हरियाणा]
पंचकूला,अनुराग अग्रवाल। Haryana Politics पुराने जमाने में गांवों के मंदिरों और घरों में पूजा-पाठ करने वाले ब्राह्मणों, संपन्न लोगों के बाल काटने वाले सेन समाज के लोगों तथा मिट्टी के बर्तन बनाने वाले प्रजापति समाज के कामगारों समेत करीब एक दर्जन श्रेणी के लोगों को काम के एवज में कुछ जमीन दान में दे दी जाती थी। उस समय इन लोगों की आमदनी का कोई अतिरिक्त जरिया नहीं होता था। उनका घर-परिवार गांव के प्रभावशाली तथा साधन संपन्न लोगों द्वारा दान में दी जाने वाली सामग्री तथा जमीन से पैदा होने वाली फसल पर निर्भर रहता था। दान में दी जाने वाली अधिकतर जमीन पंचायती होती थी। इसपर किसी को एतराज भी नहीं होता था। कोई बड़ा जमींदार या पूंजीपति अपने पुरोहितों, नाइयों और सेवादारों पर अधिक मेहरबान होता था तो वह अपनी निजी जमीन में से भी कुछ हिस्सा दान में दे देता था। धीरे-धीरे समाज की मानसिकता में बदलाव आया।
दिल्ली से सटे हरियाणा में औद्योगिक क्रांति के रास्ते खुले। जमीन महंगी होने लगी। खासतौर से गुरुग्राम, फरीदाबाद और सोनीपत के इलाकों में जमीन के भाव आसमान छूने लगे। पुराने जमाने में जिन लोगों को जमीन दान में मिली थी, उनकी अगली पीढ़ी समझदार हो गई। उसे लगने लगा कि जब दान में मिली जमीन उनकी अपनी है तो क्यों न कागजों में इस पर मालिकाना हक भी हासिल कर लिया जाए। इसके लिए एक मुहिम चलाकर राज्य भर में आंदोलन खड़ा किया गया। ब्राह्मण नेताओं ने इस मुहिम का नेतृत्व किया। निजी जमीन पर मालिकाना हक हासिल करने में तो बहुत दिक्कत नहीं आई, लेकिन पंचायती जमीन पर मालिकाना हक प्राप्त करने को लेकर कई तरह की बाधाएं पैदा होने लगीं। जिन पंचायतों ने यह जमीन दान में दी थी, उन्हें भी लगने लगा कि करोड़ों रुपये की बेशकीमती जमीन को ऐसे ही क्यों जाने दिया जाए, जबकि उस जमीन को लीज पर देकर अथवा छोटे-मोटे उद्योग धंधे लगवाकर पंचायतों की आमदनी का स्थायी बंदोबस्त किया जा सकता है।
पंचायती जमीन पर मालिकाना हक के लिए लड़ी जा रही लड़ाई के बीच कुछ अधिकारियों और राजनेताओं का दिमाग चला। उन्होंने अवसर का फायदा उठाते हुए अपने चहेतों में पंचायती जमीन बांटनी आरंभ कर दी। कहा गया कि समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों को जमीन दान में दी जा रही है। थोड़े-बहुत विरोध को राजनीतिक हथियार से दबा दिया गया। फिर शुरू हुआ इस जमीन का पंजीकरण कराने तथा उसे एक-दूसरे के नाम स्थानांतरित कराने का खेल। दान में दी गई इस जमीन को जबरदस्त तरीके से खुर्दबुर्द किया जाने लगा।
प्रभावशाली लोगों ने इस जमीन को खरीद लिया और वह भी उसे अपने नाम कराने की लड़ाई में शामिल हो गए। साल 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार ने दान में दी गई इस जमीन का मालिकाना हक कब्जाधारकों को देने के लिए कानून बना दिया। इस कानून को नाम दिया गया दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेदार और मुकररीदार (मालिकाना अधिकार निहित) अधिनियम। साल 2011 में इसके नियम अधिसूचित किए गए। काफी लोगों ने इन नियमों का फायदा उठाया तो कुछ वास्तविक लोग इससे वंचित भी रह गए।
साल 2018 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को लगा कि जमीन के मालिकाना हक के इस कानून में गड़ीबड़ी है। मुख्यमंत्री ने तब तत्कालीन वित्तायुक्त केशनी आनंद अरोड़ा को बुलाया और ऐसी पंचायती जमीन की रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए, जो दान में दी गई हैं। तत्कालीन वित्त एवं राजस्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु के साथ भी चर्चा हुई। मुख्यमंत्री के पास जो रिपोर्ट आई, वह बेहद चौंकाने वाली निकली। पता चला कि दान में दी गईं पंचायती जमीन के मालिकाना हक के खेल में जबरदस्त झोल है। कई हजार एकड़ पंचायती जमीन ऐसे लोगों को दान में दे दी गईं, जो इसकी पात्रता के दायरे में ही नहीं आते। यह जमीन अधिकतर एनसीआर के इलाके की थीं।
मुख्यमंत्री ने वित्तायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर इस पूरे मामले को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में रखा। तब सहमति बनी कि पंचायती और राज्य सरकार के स्वामित्व वाली ऐसी किसी भी जमीन पर कब्जाधारक को मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता, जो दान में दी गई है। हरियाणा सरकार विधानसभा में 2018 में ही अध्यादेश लेकर आई। इस अध्यादेश में कई व्यवस्थाएं की गईं। जैसे-अगर किसी व्यक्ति ने निजी तौर पर जमीन दान में दी है तो उस पर तो मालिकाना हक लिया जा सकता है, लेकिन पंचायती जमीन, शहरी निकायों में आने वाली जमीन, बोर्ड एवं निगमों की जमीन और राज्य सरकार के स्वामित्व वाली किसी जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता।
अगर ऐसी जमीन पर संबंधित व्यक्ति का कब्जा है तो वह राज्य सरकार का कोई भी प्रोजेक्ट आने तक उस पर खेती तो कर सकता है, लेकिन न तो उसका मालिक बन सकता है और न ही जमीन को बेच सकता है। इस कानून को राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा गया। तभी राज्य के ब्राह्मण समाज के लोगों ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। वहां आज भी यह केस चल रहा है, लेकिन चार साल के लंबे प्रयासों के बाद अब राष्ट्रपति से इस कानून को मंजूरी मिल गई है। यानी अब न तो जमीन दान में देने के नाम पर भ्रष्टाचार होगा और न ही दान की जमीन का किसी को मालिकाना हक मिल सकेगा। प्रदेश में जमीन की कमी को दूर करने के लिए सरकार का यह प्रयास नि:संदेह सफल साबित हो सकता है, लेकिन साथ ही ऐसे लोगों को शांत कर समझाने की जिम्मेदारी भी सरकार की होगी, जो पूरे मामले को राजनीतिक हवा देते देर नहीं लगाएंगे।
[राज्य ब्यूरो प्रमुख, हरियाणा]