सत्ता के गलियारे से: ओमप्रकाश चौटाला व प्रकाश सिंह बादल की यारी, राजनीतिक किस्से तो बनेंगे ही
हरियाणा के पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला व पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल की दोस्ती किसी से छिपी हैं। पिछले दिनों दोनों की मुलाकात हुई तो राजनीतिक किस्से तो बनेंगे ही। आइए साप्ताहित कालम सत्ता के गलियारे से में कुछ ऐसी ही खबरों पर नजर डालते हैं....
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा और पंजाब की सियासत के सबसे बुजुर्ग व अनुभवी नेता ओमप्रकाश चौटाला तथा प्रकाश सिंह बादल बेहद सक्रिय हैं। पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और हरियाणा में अभी तीन साल बाकी हैं, लेकिन दोनों नेताओं की सक्रियता गजब की है। प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब में घूम-घूमकर लोगों को अपने पक्ष में लामबंद करना शुरू कर दिया है और ओमप्रकाश चौटाला तो पूरे हरियाणा में काफी समय से घूम ही रहे हैं। ईश्वरीय देन यह है कि उम्र के इस दौर में भी दोनों नेता राजनीतिक मसलों पर बातचीत करते हुए लयबद्ध रहते हैं। पटरी से नहीं उतरते। चौटाला तो टेप रिकार्डर की तरह शुरू हो जाते हैं और मुद्दों पर बड़े ही प्रभावी ढंग से बात करते हैं। देश की राजनीति में चौटाला और बादल को पगड़ी बदल भाई कहा जाता है। दोनों के पारिवारिक संबंध हैं। दोनों परिवार एक दूसरे के सुख-दुख में भाग लेने जाते हैं। चार दिन पुरानी बात है, चौटाला जब प्रदेश का दौरा कर निपटे तो वह बादल के लंबी स्थित फार्म हाउस पर पहुंच गए। बस फिर क्या था...जब मिल बैठें दो यार..तो राजनीति में किस्से भी बनते हैं अपार।
चार सौ करोड़ की कंपनी के डायरेक्टर मुख्यमंत्री
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का गणित बहुत तेज है। किसी भी योजना के लिए धन आवंटन से लेकर उसके खर्च तक आंकड़ेबाजी में कोई अधिकारी मुख्यमंत्री को बरगला नहीं सकता। अंगुलियों पर हिसाब लगाकर मुख्यमंत्री इन अफसरों को साफ बता देते हैं कि उनके बजट अनुमान ठीक नहीं हैं। साथ ही सुझाव भी देते हैं कि उन्हें किस तरह से हिसाब-किताब बनाना चाहिए। मुख्यमंत्री से जब गणित में इस मास्टरी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि हिसाब-किताब लगाना उन्होंने अपने पिता से सीखा है। पिता कपड़े के व्यापारी थे। पिता के साथ उन्होंने भी कपड़ा बेचा है। एक-एक इंच और एक-एक पैसे का हिसाब-किताब रखना पिता ने सिखाया। दुकानदारी भी की। यहां तक कि मुख्यमंत्री चार सौ करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली एक कंपनी के फाइनेंस डायरेक्टर (वित्त निदेशक) भी रह चुके हैं। मुख्यमंत्री ने जब यह राज खोले तो अफसरों को भी लगा कि उनके सामने तो पाई-पाई का हिसाब लेकर जाना पड़ेगा।
उन पर तो बस नहीं चला, ये ही सही
कांग्रेस तो कांग्रेस, युवक कांग्रेस भी अब गुटबाजी का शिकार हो गई है। हरियाणा युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर चयनित दिव्यांशु बुद्धिराजा इस लड़ाई का कारण बने हैं। लेकिन उन पर एक कहावत फिट बैठती है कि जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। दिव्यांशु बुद्धिराजा को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे का खास आदमी माना जाता है। यूं कह सकते हैं कि युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव दिव्यांशु ने नहीं बल्कि दीपेंद्र हुड्डा ने जीता है। विवाद इस बात को लेकर है कि हरियाणा कांग्रेस कमेटी के सात दिसंबर को भर्तियों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध होने वाले आंदोलन से पहले ही युवक कांग्रेस ने तीन दिसंबर को प्रदर्शन कर दिया। इससे प्रदेश कांग्रेस कमेटी को बड़ा खराब लगा, लेकिन हुड्डा खेमे की अपनी दलील है। आंदोलन जितनी जल्दी किया जाए, उसका प्रभाव उतना ही अधिक होता है। अब दिव्यांशु पर कार्रवाई के लिए कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल मना बना रहे हैं। हुड्डा खेमे के विधायकों पर कार्रवाई के लिए मन तो उन्होंने पहले भी कई बार बनाया, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। अब कार्रवाई युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के विरुद्ध हो या फिर हुड्डा खेमे के विधायकों के, विवेक बंसल को इसमें सफलता मिल पाती है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।
इसी का नाम राजनीति है
हरियाणा में किसान संगठनों की नरमगोशी सबसे अधिक जननायक जनता पार्टी के नेताओं को रास आई है। तीन कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसान संगठनों की वजह से भाजपा तो भाजपा, मगर जजपा नेता भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में नहीं जा पा रहे थे। अब कानून वापस हो चुके हैं तो सरकार के नेताओं और मंत्रियों ने फील्ड में अपनी आवाजाही एकाएक बढ़ा दी है। राजनीतिक नफे-नुकसान का आकलन करते हुए चीजों को बैलेंस करने की मंशा से जननायक जनता पार्टी तो अब एमएसपी की गारंटी का कानून बनाने की मांग तक कर डाली है। यह मांग करने वाले दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला हैं। जजपा को लगने लगा कि जब तक किसानों की बात नहीं करेंगे तो फील्ड में जाना मुश्किल हो जाएगा। दुष्यंत चौटाला भी अब प्रदेश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक न केवल फील्ड में घूम रहे, बल्कि अपनी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के साथ-साथ भाजपा विधायकों के पास भी जा रहे हैं। मौका भले ही विवाह समारोहों या व्यक्तिगत आयोजनों का हो, दुष्यंत के लिए भाजपा विधायकों की यह गलतफहमी दूर करना भी जरूरी हो गया है कि डिप्टी सीएम के कार्यालय में उनके काम इतनी आसानी से नहीं होते।