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हरियाणा कांग्रेस का हाल- इलाज के साथ ही बढ़ता गया मर्ज, सोनिया गांधी भी सुलझा नहीं पाईं दिग्‍गजों के झगड़े

हरियाणा कांग्रेस में नेताओं की खींचतान खत्‍म नहीं हो पा रही है। समस्‍या के समाधान के प्रयास के बेकार साबित हो रहे हैं और नेताओं के विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं। अब पार्टी की राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष सो‍निया गांधी भी दिग्‍गज नेताओं के झगड़े समाप्‍त नहीं करा पा रही हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 05 Jul 2021 10:11 AM (IST)Updated: Tue, 06 Jul 2021 06:47 AM (IST)
हरियाणा कांग्रेस का हाल- इलाज के साथ ही बढ़ता गया मर्ज, सोनिया गांधी भी सुलझा नहीं पाईं दिग्‍गजों के झगड़े
हरियाणा कांग्रेस के दिग्‍गज नेताओं के झगड़े सोनयिा गांधी भी नहीं सुलझा पा रही हैं। (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली, [बिजेंद्र बंसल]। हरियाणा कांग्रेस का हाल यह है कि 'ज्‍यों-ज्‍यों इलाज किया मर्ज बढ़ा गया'। साल 2014 में केंद्र व राज्य में सत्ता जाने के बाद शुरू हुई हरियाणा के कांग्रेसियों के बीच खींचतान अब चरम पर है। सत्ता में रहते हुए जिस सोनिया गांधी के एक टेलीफोन कॉल पर राज्य के दिग्गज नेता लाइन लगाकर जी-हुजूरी के खड़े हो जाते थे, अब वे आंखें दिखाने से भी पीछे नहीं हटते।

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सोनिया गांधी ने इन नेताओं के बीच विवाद सुलझाने को दिग्गज व अनुभवी नेताओं को प्रदेश संगठन का प्रभारी बनाया मगर कोई कामयाब नहीं हो सका है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हरियाणा कांग्रेस अध्‍यक्ष कुमारी सैलजा, पूर्व मंत्री किरण चौधरी, वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्‍नोई और रणदीप सुरजेवाला में टकराव पार्टी के लिए अरसे से सिरदर्द बना हुआ है।

सोनिया गांधी के साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा। (फाइल फोटो)

सत्ताविहीन होने के बाद राज्य कांग्रेस के नेताओं के बीच पहला विवाद जून 2016 में राज्यसभा चुनाव में पार्टी विधायकों की क्रासवोटिंग से शुरू हुआ। तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. अशोक तंवर ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कटघरे में खड़ा किया। इस प्रकरण की गाज तत्कालीन प्रदेश प्रभारी शकील अहमद पर गिरी।

इसके बाद आलाकमान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को हरियाणा कांग्रेस का प्रभारी बनाया। कमलनाथ के समय में हुड्डा, तंवर सहित मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा, विधायक कुलदीप बिश्नोई, पूर्व मंत्री रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी के बीच खींचतान बढ़ती चली गई। सत्तारूढ़ भाजपा सहित अन्य गैर कांग्रेसी दलों के नेता हरियाणा कांग्रेस की बजाय इन छह नेताओं के नाम से कांग्रेस को पुकार कर तंज कसने लगे।

पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और डा. अशाेक तंवर की फाइल फोटो।

माना जाता है कि कमलनाथ ने भी इन नेताओं के बीच सुलहनामा कराने के कोई अधिक प्रयास नहीं किए। उनका फोकस अपने राज्‍य मध्यप्रदेश की राजनीति पर ही रहा। जनवरी 2019 में जब पार्टी आलाकमान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद को प्रदेश प्रभारी नियुक्त किया तो यह माना जा रहा था कि अब कांग्रेसियों के झगड़े निपट जाएंगे। लेकिन, आजाद भी तंवर और हुड्डा को एक साथ रखने में विफल रहे।

कुलदीप बिश्‍नोई और गुलाम नबी आजाद की फाइल फोटो।

तंवर ने तो 2019 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गुलाम नबी आजाद और पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर गंभीर आरोप लगाते हुए कांग्रेस को ही अलविदा कह दिया। अप्रैल 2020 में राज्यसभा चुनाव में दीपेंद्र सिंह हुड्डा को टिकट दिलवाने से लेकर अपने 21 माह के कार्यकाल में आजाद का झुकाव भूपेंद्र हुड्डा के प्रति ही रहा। कुलदीप बिश्‍नाेई भी इस दौरान खफा रहे और कांग्रेस के अभियानों से भी दूर रहे। एक समय राहुल गांधी की हरियाणा यात्रा के दौरान कुलदप काफी मान-मनोव्‍वल के बाद इसमें शामिल हुए।

सितंबर 2020 में राजस्थान में सहप्रभारी रह चुके विवेक बंसल को आलाकमान ने हरियाणा का प्रभारी बनाकर पारितोषिक दिया। बंसल भी अपने 11 माह के कार्यकाल में कांग्रेस के सभी क्षत्रपों को एकजुट रखने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। राज्य कांग्रेस के नेताओं के बीच खींचतान का आलम यह है कि पिछले सात साल से राज्य में कांग्रेस का ब्लाक, जिला स्तर का संगठन भी नहीं बन पाया।

जमीनी ताकत के बूते हाईकमान को आंखें दिखाने से पीछे नहीं हटे दिग्गज

हरियाणा कांग्रेस में दिग्‍गज नेताओं के बीच झगड़े कोई नई बात नहीं हैं। एक नवंबर 1966 को हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद पूर्व सीएम पंडित भगवत दयाल शर्मा सहित बंसीलाल, देवीलाल, भजन लाल के बीच भी उनके समय में सत्ता और पार्टी संगठन में वर्चस्व को लेकर तनातनी जगजाहिर है। हालांकि केंद्र में सत्तारूढ़ रहते कांग्रेस जब इन दिग्गज नेताओं की हाईकमान के सामने दाल नहीं गली तो इन्होंने पार्टी से बाहर रहने में भी अपनी भलाई समझी।

हरियाणा के तीन लाल: बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल की फाइल फोटो।

बंसीलाल, देवीलाल, भजन लाल ने तो कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी भी खड़ी की। इसके साथ हीकेंद्र में सत्ता जाने के बाद कांग्रेस कभी दिग्गजों को संभाल नहीं पाई। जिस दिग्गज की जितनी जमीनी राजनीतिक ताकत, उसने उतनी ही तीखी आंखें हाईकमान को दिखाई। हरियाणा के दिग्गज नेताओं के झगड़े सुलझाने में पार्टी हाईकमान के अनुभवी से अनुभवी प्रतिनिधि भी फेल साबित हुए।

जर्नादन द्विवेदी के सामने भजन लाल की पीएचडी हो गई थी फेल

हरियाणा में राजनीति के माहिर खिलाड़ी पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल 2005 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा था। तब कांग्रेस को 90 में से 67 सीट का प्रचंड बहुमत मिला था। जीतकर आए ज्यादातर विधायक भी भजन लाल के समर्थक थे। इस दौर में पार्टी के अंदर भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनके सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी थे।

राज्य कांग्रेस में वर्चस्व को लेकर दोनों के बीच कई बार आलाकमान के प्रतिनिधि के समक्ष भी तनातनी हुई। हुड्डा समर्थकों ने एक बार तो भजन लाल के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार भी किया। हुड्डा तब रोहतक से सांसद थे। लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा को सीएम बनाया। हुड्डा के सीएम बनने की घोषणा के तुरंत बाद भजन लाल ने विद्रोही तेवर दिखाए। दिल्ली सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में उनके समर्थकों ने सोनिया गांधी के पुतले भी जलाए। तब प्रदेश प्रभारी का जिम्मा संभाल रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने भजन लाल के खिलाफ सख्त रुख अपनाया।

द्विवेदी का राजनीतिक कौशल ही था कि उन्होंने राजनीति के पीएचडी कहे जाने वाले भजन लाल को भी शांत कर लिया। लेकिन तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार के चलते हाईकमान सशक्त था। हालांकि 2007 में भजन लाल और उनके छोटे पुत्र कुलदीप बिश्नोई ने अलग पार्टी भी बना ली थी।


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