मरघट का कारण न बन जाए मरकज, हर तब्लीगी के सैंपल लेंगे 'गब्बर', पढ़ें और भी कई रोचक खबरें...
Coronavirus Covid-19 तब्लीगी जमात ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जाने-अनजाने यह लोग न केवल अपनी जान से खेल रहे हैं बल्कि दूसरे हजारों लोगों का जीवन भी खतरे में डाल रहे हैं।
जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा में खतरनाक मोड़ पर पहुंचे Coronavirus COVID-19 से निपटने के लिए जहां सरकार ने पूरी ताकत झोंक रखी है, वहीं सरकारी मशीनरी को गच्चा देकर घूम रहे तब्लीगी जमात के लोग बड़ी मुसीबत साबित हो रहे हैं। जाने-अनजाने यह लोग न केवल अपनी जान से खेल रहे हैं, बल्कि दूसरे हजारों लोगों का जीवन भी खतरे में डाल रहे हैं।
Lockdown के बावजूद तब्लीगी दिल्ली निजामुद्दीन में मरकज के लिए कैसे जमा हुए, केंद्र ने इसकी जांच की तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन फिलहाल हरियाणा में मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही। ऐसे में भाजपा के पूर्व सांसद और एडीशनल सॉलिसीटर जनरल सत्यपाल जैन की वह टिप्पणी बहुत अहम है, जिसमें जैन कह रहे हैं कि मरकज में शामिल हुए लोग आपराधिक काम क्यों कर रहे हैं, किसके कहने पर कर रहे हैं, जाने-अनजाने में कर रहे हैं, यह गुत्थी तो बाद में सुलझ ही जाएगी, लेकिन फिलहाल छिपते घूम रहे तब्लीगी जमात के लोगों को इलाज के लिए आगे आना चाहिए। भगवान उन्हें सद्बुद्धि दे, ताकि महामारी से लड़ा जा सके।
हर तब्लीगी के सैंपल लेंगे 'गब्बर'
हरियाणा में महामारी फैलने का बड़ा कारण बन रही तब्लीगी जमात 'गब्बर' के निशाने पर है। स्वास्थ्य महकमे के साथ गृह विभाग संभाल रहे अनिल विज ने निर्देश जारी कर दिए हैं कि एक महीने के दौरान देश या विदेश से प्रदेश में आने वाले हर तब्लीगी के सैंपल लेकर जांच कराई जाए। चाहे उसमें कोरोना वायरस के लक्षण हो या नहीं। इसके लिए ग्राम पंचायतों को ठीकरी पहरा लगाने के निर्देश दिए गए हैं और शहरों में स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि तब्लीगी को चिन्हित कर जानकारी सरकार को देंगे। यह जरूरी भी है। तब्लीगी जमात के हरियाणा में प्रवेश से कोरोना से जंग को बड़ा झटका लगा है। पिछले तीन-चार दिन में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है। तब्लीगी जमात की करतूत से मामला बिगड़ गया।
भाकियू की सराहनीय पहल
कोरोना से जंग में सरकार को ट्रैक्टर-ट्रॉली और स्प्रे मशीन के साथ ही मंडियों में व्यवस्था के लिए सेवाएं देने का प्रस्ताव रख चुकी भारतीय किसान यूनियन ने एक और अच्छी पहल की है। भाकियू ने किसानों और आढ़तियों से कोरोना रिलीफ फंड के लिए फसलों के मुनाफे से अंशदान देने का आह्वान किया है।
हर किसान प्रति क्विंटल पैदावार में से एक किलोग्राम ब्लॉक अधिकारियों को दान करें जिसे भूखे, गरीब और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सके। इसी तरह आढ़ती अपनी आढ़त से दो फीसद हिस्सा राज्य सरकार को जिला या ब्लॉक स्तर पर दान करें। भाकियू से जुड़े बड़ी संख्या में किसानों और आढ़तियों ने संगठन की इस पहल का स्वागत करते हुए इसमें कदमताल करने की बात कही है।
साहब, कुछ अपने खजाने से भी दे दो
कोरोना राहत कोष में सांसदों, विधायकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों ने भी खूब सहयोग दिया। सांसदों ने अपनी सांसद निधि में से एक से दो करोड़ रुपये तक दिए और विधायकों की तरह अपना एक माह का वेतन भी दिया। बावजूद इसके सोशल मीडिया पर यह सवाल भी उठा कि इन चुने हुए प्रतिनिधियों ने अपने व्यक्तिगत खजाने में से कुछ क्यों नहीं दिया। इस सवाल पर सोशल मीडिया पर जमकर बहस हुई। कुछ चुने हुए प्रतिनिधियों के समर्थकों ने कमेंट बाक्स यह कहकर भर दिए कि उनके नेताओं के पास आमदनी का और कोई साधन नहीं है। अब खोजी लोग भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, सो वे कुछ तथ्य लेकर आगे आए। चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा चुनाव नामांकन के दौरान चुनाव अधिकारी को दिया वह शपथ पत्र भी कमेंट बाक्स में पोस्ट कर दिया, जिसमें चुने हुए प्रतिनिधियों की कुल संपति 200 करोड़ रुपये तक भी है।
पुलिस फोर्स में हीरो बन गए विज
गृहमंत्री अनिल विज को कुछ अलग करने और कहने के लिए कौन नहीं जानता। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ रहे योद्धाओं में उनके ही मातहत काम करने वाले तीनों विभागों के कर्मचारी व अधिकारी शामिल हैं। पुलिस के गृह के अलावा डॉक्टरों का स्वास्थ्य और सफाईकर्मियों का शहरी स्थानीय निकाय विभाग भी विज के ही पास है। लॉकडाउन में जरूरतमंद के परिवारों की मदद के लिए कोरोना राहत कोष में मदद के लिए जब अपील की गई तो इसमें सभी समाजसेवियों, उद्यमियों से लेकर सरकारी कर्मचारी व अधिकारी अपना सहयोग देने के लिए आगे आए। पुलिसकर्मियों ने भी अपने तीन दिन का वेतन देने की पेशकश की तो विज को छोड़कर पूरे मंत्रिमंडल ने पुलिस की सराहना की। विज ने लॉकडाउन को कामयाब करने और जरूरमंदों की सेवा को ही पुलिस का सबसे बड़ा सहयोग बताया। बस, फिर क्या था विज पुलिस फोर्स के नायक बन गए।
घर तो ठीक मगर संस्थानों की फिक्र
22 मार्च के जनता कर्फ्यू से लेकर अब तक लगे लॉकडाउन के दौरान लोगों के घर तो ठीक हैं मगर संस्थानों के क्या हाल हैं, इसकी फिक्र उन्हें सता रही है। इस दौरान दुकानदार अपनी दुकान और फैक्ट्री मालिक अपनी फैक्ट्री के बारे में एक बार जरूर जानना चाहता है। क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि जिस दुकान, संस्थान को आर्थिक मंदी से उबारने के लिए वे लॉकडाउन के दौरान गुणा-भाग कर रहे हैं, उस पर ही चोरों की नजर पड़ जाए। असल में बाजारों में केवल जरूरत के समान वाली दुकानें खुल रही हैं। फैक्ट्रियों में बेशक सुरक्षाकर्मी लगे हैं मगर उनकी आंखों में धूल झोंककर भी चोरी हो जाती है, इसलिए दुकानदार और उद्यमियों ने अपने संस्थानों की देखभाल के लिए लॉकडाउन से छूट का पास मांगा है। (प्रस्तुति - अनुराग अग्रवाल, बिजेंद्र बंसल एवं सुधीर तंवर)
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