महाराष्ट्र में गतिरोध का हरियाणा में असर, लाेस संग विधानसभा चुनाव न हाेने का यह है कनेक्शन
हरियाणा विधानसभा चुनाव को लाेकसभा के साथ नहीं होने का कारण महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच गतिरोध है।
नई दिल्ली, [बिजेंद्र बंसल]। यदि महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर ज्यादा विवाद नहीं होता तो फिर हरियाणा और महाराष्ट्र में लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव होते। हरियाणा भाजपा लोकसभा चुनाव के साथ राज्य में विधानसभा चुनाव कराना चाहती थी, लेकिन महाराष्ट्र का गतिरोध इसमें आड़े आ गया। हरियाणा में विधानसभा चुनाव कराने आैर महाराष्ट्र में न कराने से भाजपा के लिए दुविधा की स्थिति पैदा सकती थी।
नई दिल्ली में रविवार को देर रात तक हुई बैठक में लोकसभा चुनाव समिति और राज्य भाजपा कोर कमेटी में दिग्गज नेता लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराए जाने के मुद्दे पर बंटे हुए थे। विधायकों की तरफ से पार्टी के पास फीडबैक था कि चुनाव के लिए मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति सबसे अनुकूल भाजपा के लिए है। टूटी इनेलो और बिखरी कांग्रेस के सामने एकजुट भाजपा की जीत काफी आसान रहेगी।
इसके विपरीत पार्टी के सांसदों की तरफ से फीडबैक यह था कि यदि विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ कराए गए तो दो से तीन लोकसभा सीट पर नुकसान हो सकता है। उनका कहना था कि अलग चुनाव होने पर विधानसभा के सभी उम्मीदवार पार्टी के सांसद प्रत्याशियों का अपनी टिकट की जुगत के लिए समर्थन करेंगे। मगर यदि एक साथ चुनाव होने पर एक विधानसभा से कई संभावित उम्मीदवारों में या तो दूसरे दलों में जाने की होड़ लगेगी या फिर वे पार्टी में रहते हुए नुकसान करेंगे।
इन फीडबैक के बाद जब पार्टी के केंद्रीय नेताओं ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के लोकसभा के साथ चुनाव आम जनता को एक खास संदेश देने के लिए कराना चाहते थे। पीएम चाहते हैं कि भाजपा ही चुनाव सुधार के क्रम में आगे बढ़ रही है। सत्ता का लोभ छोड़कर कुछ राज्यों के चुनाव एक साथ कराकर पीएम देश की जनता को सकारात्मक संदेश देना चाहते थे।
बाद में तय हुआ कि महाराष्ट्र में एक साथ चुनाव फिलहाल संभव नहीं है इसलिए हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव समय पर होंगे। यही कारण है कि कोर कमेटी के बाद प्रदेश प्रभारी महासचिव डॉ. अनिल जैन ने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग होंगे।
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अलग चुनाव होने से तीनों केंद्रीय मंत्रियों को होगा सबसे बड़ा राजनीतिक फायदा
लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग होने से तीनों केंद्रीय मंत्रियों को सबसे ज्यादा राजनीतिक फायदा होगा। राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह अपने आइएएस अधिकारी बेटे बृजेंद्र सिंह को सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं। बीरेंद्र सिंह खुद राज्यसभा सदस्य हैं और उनकी पत्नी प्रेमलता उचाना कलां से भाजपा विधायक हैं। ऐसे में यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो मां-बेटे को पार्टी एक साथ चुनाव मैदान में शायद नहीं उतारेगी।
इसी तरह अहीरवाल के नेता और केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी आरती राव को सौंपना चाहते हैं और वे खुद गुरुग्राम से लोकसभा तथा अपनी बेटी को अहीरवाल की किसी भी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाना चाहते हैं।
इसी तरह तीसरे केंद्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर खुद फरीदाबाद से लोकसभा और अपने बेटे देवेंद्र चौधरी को तिगांव विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाना चाहते हैं। 2014 में भी गुर्जर ने अपने बेटे के लिए टिकट मांगी थी मगर शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें बेटे के लिए टिकट नहीं दी थी। इस बार भी यदि लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव होते तो उनके बेटे के चुनाव लड़ने पर संशय खड़ा हो जाता।