प्रतिष्ठा खराब करने की कार्रवाई पति के विरुद्ध मानसिक क्रूरता का अपराध, तलाक मामले पर हाई कोर्ट की टिप्पणी
सेना के एक अधिकारी की अपनी पत्नी से तलाक की मांग को स्वीकार करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक रिश्ता जीवनसाथी के साथ आपसी विश्वास सम्मान प्यार और स्नेह पर टिका होता है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। सेना में मेजर के पद पर कार्यरत अपने पति के करियर और प्रतिष्ठा को नष्ट करने व अपने ससुर पर यौन उत्पीड़न के आरोप झूठे लगाकर बदनाम करना एक महिला को महंगा पड़ गया। हाई कोर्ट ने मेजर की अपील पर उसकी तलाक की मांग को स्वीकार कर लिया।
कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक रिश्ता नाजुक, मानवीय और भावनात्मक संबंधों से जुड़ा होता है। यह रिश्ता जीवनसाथी के साथ आपसी विश्वास, सम्मान, प्यार और स्नेह पर टिका होता है। इस तरह के रिश्ते सामाजिक मानदंडों के अनुरूप होने चाहिए।
हाई कोर्ट की जस्टिस रितु बाहरी व जस्टिस अशोक कुमार वर्मा ने सेना के मेजर द्वारा अपनी पत्नी से तलाक की मांग करने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए अपने आदेश में यह टिप्पणी की। इसी के साथ हाई कोर्ट ने पानीपत फैमिली कोर्ट के फैसले को रद कर दिया, जिसमें सेना अधिकारी की तलाक की मांग को खारिज कर दिया गया था।
याचिका के अनुसार, दंपति की शादी नवंबर 2009 में हुई थी। शादी से दोनों की कोई संतान नहीं हुई। पति का आरोप है कि शादी के दिन से ही पत्नी का स्वभाव हिंसक था और उसने अपने ससुराल पक्ष पर दहेज व मारपीट के कई आरोप लगाए।
इतना ही नहीं, उसने बीएसएफ के सेवानिवृत अपने ससुर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर समाज में उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया। उसकी पत्नी ने उसको प्रताड़ित करने के लिए सेना मुख्यालय में उसके खिलाफ कई शिकायत भी की।
पत्नी द्वारा दी गई सभी शिकायत में उनको क्लीन चिट मिल गई थी। पत्नी के रवैये से तंग आकर उसने पानीपत कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की थी, लेकिन फैमिली कोर्ट पानीपत ने तब पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था।
उसकी पत्नी ने सेना मुख्यालय को एक पत्र लिखा, जिसमें पति व उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज व उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए गए थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि पति के करियर और प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ।
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान अपील में विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या पति-पत्नी का संबंध समाप्त हो गया है और पत्नी अपीलकर्ता पति को सहमति से तलाक देने के लिए तैयार नहीं है। इस बात की कोई गुंजाइश नहीं है कि वे फिर से पति-पत्नी के रूप में रह सकें।
हाई कोर्ट ने यह भी देखा कि पत्नी ने अपने ससुर व अन्य के खिलाफ निराधार, अभद्र और अपमानजनक आरोप लगाए तथा शिकायत दर्ज की। उसका यह आचरण दर्शाता है कि उसने यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किए कि पति और उसके माता-पिता को जेल में डाल दिया जाए।
पत्नी ने पति के करियर और प्रतिष्ठा को खत्म करने के लिए पूरी कोशिश की। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस आचरण ने अपीलकर्ता पति को मानसिक क्रूरता का शिकार बना दिया है, इसलिए हाई कोर्ट पति की तलाक की मांग स्वीकार करता है। कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को एकमुश्त मुआवजा के तौर पर 30 लाख रुपये अदा करे।