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सांसत के 100दिन : किसान आंदोलन में खिसकता सियासी आधार तलाशता रहा विपक्ष, हरियाणा के नेता भी जुटे रहे

100 Days of Farmers Agitation किसान आंदोलन के 100 दिन हो गए हैं। इस आंदोलन के माध्‍यम से विपक्षी सियासी दल अपना खोया आधार भी तलाशने के लिए खासी सक्रिय रहीं। इनमें हरियाणा के सियासी दलों के नेता भी पूरी तरह इस प्रयास में जुटे रहे।

By Sunil kumar jhaEdited By: Published: Sat, 06 Mar 2021 08:08 AM (IST)Updated: Sat, 06 Mar 2021 08:08 AM (IST)
कृषि कानूनों के खिलाफ किसान के आंदोलन की फाइल फोटो।

नई दिल्ली, [बिजेंद्र बंसल]। दिल्ली की सीमाओं पर 40 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चला आंदोलन 100 पूरे कर चुका है। मोर्चा की सात सदस्यीय समन्वय समिति ने साफ तौर पर एलान किया आंदोलन पूरी तरह गैर राजनीतिक रहेगा मगर तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध में आंदोलन के दौरान विपक्षी दल किसानों के बीच खूब सक्रिय रहे। कांग्रेस ने तो आंदोलन को खुलकर समर्थन दिया।

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26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा से बिखरे आंदोलन को कांग्रेस ने दिया दम

आंदोलन में इन कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने अपने खिसकते राजनीतिक आधार को तलाशने का काम भी किया। इतना ही नहीं 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुए उपद्रव के बाद आंदोलन में आए बिखराव को रोकने के लिए कांग्रेस ने ब्लाक स्तर के नेताओं की जिम्मेदारी सौंपी। कांग्रेस को चिंता थी कि यदि किसान आंदोलन की धार खत्म हो गई तो उनके हाथ से बड़ा राजनीतिक मुद्दा छिन जाएगा।

सड़क से संसद तक कृषि सुधार कानूनों में कुछ काला नहीं बताने पर घिरे रहे विपक्षी दलों के नेता

आंदोलन के मुख्य मंचों पर विपक्षी दलों के नेता बेशक नहीं पहुंच पाए मगर विपक्षी नेताओं ने हर मोर्चे पर किसानों का पक्ष रखा। हालांकि संसद सत्र में चर्चा के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्ष के नेताओं को यह कहकर अवश्य घेरा कि कोई नेता अभी तक तीनों कृषि सुधार कानूनों काला क्या है यह नहीं बता पाए। बता दें, विपक्ष ने तीनों कृषि सुधार कानूनों को काले कानून की संज्ञा दी थी।

अभय चौटाला के इस्तीफे ने विपक्ष के सामने खड़ी की चुनौती

किसान आंदोलन को गैर भाजपाई विपक्षी दलों ने खुलकर समर्थन दिया मगर इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक अभय चौटाला ने ही समर्थन के साथ अपना इस्तीफा दिया। अभय चौटाला ने सरकार को किसानों की मांग मानने के लिए 26 जनवरी तक का अल्टीमेटम दिया था। जब सरकार ने किसानों की मांग नहीं मांगी तो अभय ने 27 जनवरी को अपना इस्तीफा दे दिया।

अभय के इस्तीफे ने अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। किसान संगठनों की तरफ से विपक्ष के नेताओं पर भी इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया मगर किसी अन्य नेता ने इस्तीफा नहीं दिया। हरियाणा में भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार में शामिल जजपा के नेता अजय सिंह चौटाला को तो यहां तक कहना पड़ा कि यदि इस्तीफे से किसानों की मांग मानी जाती हैं तो उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का इस्तीफा उनकी जेब में है।

विपक्षी दलों ने मंत्रियों के बहिष्कार कराने में भी निभाई अहम भूमिका

हिसार में उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और फिर करनाल जिला में मुख्यमंत्री मनोहर लाल का विरोध करवाने के पीछे भी विपक्ष के नेता ही सक्रिय रहे। विपक्षी दलो ने ही हरियाणा के मंत्रियों और प्रमुख भाजपा नेताओं के बहिष्कार कराने में भी अहम भूमिका निभाई। किसानों के साथ आंदोलन को धार देने के लिए कांग्रेस के हरियाणा प्रभारी विवेक बंसल ने प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ दिल्ली में रणनीति भी बनाई।

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'' आंदोलन 100 दिन से बढ़कर अब 1000 दिन में भी जा सकता है मगर आंदोलन कम, ज्यादा और कम तीनों आयामों पर चलता रहेगा। फिलहाल मोर्चा के नेता विभिन्न राज्यों में जिला स्तर पर जाकर महापंचायत कर रहे हैं। किसान भी फसल कटाई में जुटे हैं। डेढ़ साल तक तीन कृषि कानून स्थगित करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर मोर्चा में शामिल किसान नेता एकमत नहीं हैं। अब तक किसान आंदोलन की जीत नहीं होने के पीछे कई कारण रहे हैं। इनमें आंदोलन लंबा खिंचने के कारण नेताओं के आपसी मतभेद, कुछ किसान संगठनों के पीछे राजनीतिक दलों का स्वार्थ, कुछ किसान नेताओं की महत्वाकांक्षा भी मुख्य है। शनिवार सायं 4 बजे सिंघु बार्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा की अहम बैठक होगी, इसमें और कुछ निर्णय लिए जाने की संभावना है।

                                           - शिव कुमार शर्मा कक्काजी, सदस्य, संयुक्त किसान मोर्चा समन्वय समिति।


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