टकराव के बाद बिखराव ने कम कर दी चौटाला परिवार की राजनीतिक ताकत
टकराव के बाद बिखराव के कारण हरियाणा की सत्ता पर छह बार काबिज रहा देवीलाल का परिवार अब वनवास झेल रहा है।
चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। ताऊ देवीलाल और उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला के जिक्र के बिना हरियाणा की राजनीति की चर्चा अधूरी है। यह वही चौटाला परिवार है, जिसका देश और प्रदेश की राजनीति में मजबूत दखल रहा है। राष्ट्रीय राजनीति में ताऊ देवीलाल और प्रदेश की सियासत में चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने कई उतार चढ़ाव देखे हैैं।
देवीलाल और चौटाला परिवार के पास हरियाणा की सत्ता छह बार रही। अब यह परिवार राजनीतिक वनवास झेल रहा और पूरी तरह से बिखराव का शिकार है। बिखराव भी ऐसा कि सुलह की तमाम कोशिश फेल हो चुकी। स्व. देवीलाल के साथी रहे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल के साथ-साथ खाप पंचायतों के एकजुटता के प्रयास भी सिरे नहीं चढ़ पाए।
हरियाणा के रण में अब स्थिति यह है कि एक तरफ सत्तारूढ़ भाजपा है तो दूसरी तरफ गुटों में बंटी कांग्रेस। चुनावी रण के एक मुहाने पर टुकड़ों में बंटे चौटाला परिवार के सूरमा खड़े दिखाई दे रहे हैं। इन सूरमाओं की लड़ाई भाजपा से कम और अपनों से ज्यादा नजर आ रही है। विधानसभा के रण में उतरने से पहले चौटाला परिवार ने लोकसभा चुनाव में मिली बुरी हार से कोई सबक लेना उचित नहीं समझा। अब ओमप्रकाश चौटाला की राजनीतिक विरासत को संभालने का दम भर रहे अभय चौटाला के हाथों में बिखर चुके इनेलो की कमान है तो ताऊ देवीलाल का झंडा बुलंद करने का दावा कर रहे भतीजे दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी की राजनीति को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है।
चौटाला परिवार राजनीति में कभी नफा-नुकसान की परवाह नहीं करता। इस परिवार के सदस्यों का यही अडिय़ल रवैया विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा बनता दिखाई दे रहा है। अतीत में अगर जाएं तो देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला के परिवार की यह जंग नई नहीं है। करीब तीन दशक पहले ताऊ देवीलाल का परिवार राजनीतिक बिखराव का शिकार हुआ था। ओमप्रकाश चौटाला ने दिसंबर 1989 में अपने छोटे भाई रणजीत सिंह चौटाला को हाशिये पर कर खुद को देवीलाल की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर सीएम की कुर्सी पर काबिज कर लिया था।
परिवार की इस उठापटक से देवीलाल भी खुश नहीं थे। विधायक न होते हुए भी ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बन बैठे थे। इससे नाराज रणजीत सिंह ने लोकदल से किनारा कर लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। इस अवधि में ताऊ देवीलाल राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे और प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर देश के उप प्रधानमंत्री भी बने। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव, बिहार में नीतिश कुमार और शरद यादव और पंजाब में प्रकाश सिंह बादल से इस परिवार के मजबूत रिश्ते हैं।
ताऊ देवीलाल हरियाणा के दो बार में और उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला चार बार मुख्यमंत्री रहे। जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में जेल जाने के बाद अभय सिंह चौटाला ने पार्टी को संभाला और भतीजे दुष्यंत को हिसार से लोकसभा का चुनाव लड़वाया। दुष्यंत सांसद बने तो युवाओं की बड़ी फौज उनके साथ खड़ी हो गई। अब बारी थी प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर स्थापित होने की, जिसने चाचा अभय सिंह और भतीजे दुष्यंत चौटाला के रिश्तों में तल्खी ला दी और दोनों अजय व अभय के परिवार अलग हो गए। कुछ लोग इसे प्रापर्टी की लड़ाई भी बताते हैं। यदि ऐसा है तो इसके पीछे भी सत्ता पर काबिज होने की रणनीति छिपी होने से इन्कार नहीं किया जा सकता।
चौटाला परिवार में बिखराव की नींव पिछले साल सितंबर में गोहाना में ताऊ देवीलाल के जयंती समारोह पर हुई रैली में पड़ी, जब दुष्यंत को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। फिर उनके पिता अजय सिंह चौटाला भी बाहर हुए। पिछले 2014 के विधानसभा चुनाव में 19 विधायकों के साथ 24.11 फीसदी वोट हासिल करने वाली इनेलो में अब अभय सिंह चौटाला, वेद नारंग और ओमप्रकाश बरवा तीन विधायक बचे हैं। दो विधायकों डा. हरिचंद मिढा व जसविंद्र सिंह संधू का निधन हो चुका। चार विधायक नैना सिंह चौटाला, अनूप धानक, पिरथी नंबरदार और राजदीप फौगाट भतीजे दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी में शामिल हो गए।
इनेलो के दस विधायक भाजपा का दामन थाम चुके हैं, जबकि हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा के पार्टी छोड़ने के बाद चौटाला की राजनीतिक विरासत को बड़ा धक्का लगा है। इसमें कोई शक नहीं कि लोकसभा चुनाव में भी क्षेत्रीय दल के रूप में ताऊ देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला के परिवार का मजबूत हस्तक्षेप रहा है।
हाथी की टेढ़ी चाल ने ध्वस्त किए सत्ता के मंसूबे
हरियाणा की राजनीति पर बारीक निगाह रखने वालों का मानना है कि भले ही चौटाला परिवार गिरकर संभलने का हुनर जानता है, लेकिन जिस तरह से मोदी और मनोहर लाल की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ रहा है, उसके मद्देनजर यदि अभय सिंह चौटाला और दुष्यंत चौटाला एकजुट होकर चुनावी रण में नहीं उतरे तो उन्हें नुकसान तो है ही, साथ ही भाजपा व कांग्रेस को उनके छितरे वोट बैंक का लाभ मिलने से कोई नहीं रोक सकेगा। पहले इनेलो व फिर जजपा के साथ गठबंधन तोड़ने वाली उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती के हाथी की सवारी कर चाचा-भतीजे को लगा था कि शायद अब राह आसान हो सकती है, लेकिन हाथी की टेढ़ी चाल ने उनके यह मंसूबे भी ध्वस्त कर दिए।
हरियाणा की राजनीति में देवीलाल और चौटाला परिवार का दखल
- ताऊ देवीलाल 21 जून 1977 को पहली बार हरियाणा के सीएम बने और 28 जून 1978 तक रहे।
- देवीलाल दूसरी बार 17 जुलाई 1987 को सीएम बने और दो दिसंबर 1989 तक रहे।
- उनके बेटे चौ. ओमप्रकाश चौटाला 12 जुलाई दो दिसंबर 1989 को सीएम बने तथा 22 मई 1990 तक रहे।
- ओमप्रकाश चौटाला दूसरी बार 12 जुलाई 1990 को सीएम बने और 17 जुलाई 1990 तक मात्र पांच दिन रहे।
- तीसरी बार चौटाला 22 मार्च 1881 को सीएम बने और छह अप्रैल 1991 तक रहे।
- भाजपा के साथ गठबंधन के बाद ओमप्रकाश चौटाला 24 जुलाई 1999 को सीएम बने और चार मार्च 2005 तक रहे।
- इसके बाद चौटाला परिवार के लिए सत्ता में ग्रहण लग गया। तब से लेकर आज तक कार्यकर्ता और परिवार के सदस्य राजनीतिक वनवास पर हैं।
दलों में से दल बनकर निकला देवीलाल का इनेलो
इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) की स्थापना 1987 में ओपी चौटाला के पिता देवीलाल ने की थी। इनेलो एक साल पहले तक हरियाणा विधानसभा में मुख्य़ विपक्षी पार्टी के रूप में दर्ज थी, मगर बिखराव के बाद यह स्थान अब कांग्रेस ने ले लिया है। देवीलाल 1971 तक कांग्रेस में रहे थे। 1977 में वह जनता पार्टी में आ गए। 1989 में देवीलाल देश के उप प्रधानमंत्री बने। यूपी-बिहार की राजनीति में भले वह सक्रिय नहीं थे, लेकिन दोनों प्रदेशों का सियासी समीकरण बनाने और बिगाडऩे में उनका बड़ा दखल रहता था। देवीलाल ने जनता पार्टी और फिर जनता दल की अगुवाई की। बाद में समाजवादी जनता पार्टी टूटी, तो हरियाणा लोकदल राष्ट्रीय का गठन हुआ और फिर यही इंडियन नेशनल लोकदल बन गया। आज इनेलो के टूटने के बाद जजपा का भी उदय हो चुका है।
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