विधायकों के दबाव में हाईकमान से टकराने को तैयार हुए हुड्डा, चुनाव लड़ने के दावेदारोंं को करेंगे सक्रिय
हुड्डा पर अपने समर्थक विधायकों का भारी दबाव है। हुड्डा खुद भी चाहते हैं कि चुनावी रण में उतरने के लिए आर पार की लड़ाई का ऐलान जरूरी है।
चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा के दस साल तक मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस हाईकमान से सीधे टकराने को अचानक ही तैयार नहीं हुए। उन पर अपने समर्थक विधायकों का भारी दबाव है। हुड्डा खुद भी चाहते हैं कि चुनावी रण में उतरने के लिए आर पार की लड़ाई का ऐलान जरूरी है। रोहतक में होने वाली महापरिवर्तन रैली से पहले यदि हुड्डा को कांग्रेस की कमान नहीं सौंपी गई तो उनके समर्थक कोई बड़ा राजनीतिक फैसला लेने का दबाव भी हुड्डा पर बना सकते हैं।
महापरिवर्तन रैली में यह फैसला अलग पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ने का भी हो सकता है। हुड्डा समर्थक विधायकों का मानना है कि यदि अब भी कोई ठोस फैसले नहीं लिए गए तो चुनावी रण में मुश्किलें आना तय हैं।हरियाणा में चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और स्टेट विजिलेंस ब्यूरो ने जिस तरह से कांग्रेस दिग्गजों को निशाने पर लेना शुरू किया है, उसके मद्देनजर हुड्डा की रोहतक में होने वाली महा परिवर्तन रैली काफी अहम है।
हुड्डा 18 अगस्त को यह रैली करेंगे। इससे दो दिन पहले 16 अगस्त को मुख्यमंत्री मनोहर लाल पूरे प्रदेश में जन आशीर्वाद रथयात्रा निकाल रहे हैं। ऐसे में हुड्डा समर्थक विधायकों को लगता है कि यदि अभी से सक्रियता नहीं दिखाई तो लोगों को जवाब देना भारी हो जाएगा। दरअसल, हरियाणा में कांग्रेस पूरी तरह से गुटबाजी का शिकार है। हुड्डा समर्थक विधायकों की दलील है कि पिछले छह साल के अंतराल में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर न तो कोई संगठन खड़ा कर पाए और न ही पार्टी को मजबूती दे सके।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी का खजाना भी पूरी तरह खाली है। तंवर को हटाने की मुहिम लंबे समय से चल रही है, लेकिन हुड्डा खेमे को इसमें सफलता हाथ नहीं लग रही। ऐसे में अब चुनाव से ठीक पहले हुड्डा समर्थकों ने आरपार की लड़ाई लड़ने के साथ ही एक रणनीति के तहत हाईकमान को आंखें दिखानी शुरू की हैं।
हुड्डा समर्थक विधायकों ने हाईकमान के सामने दो विकल्प रखे हैं। पहला तो यह कि तंवर को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर हुड्डा को कमान सौंपी जाए और दूसरी यह कि टिकटों का आवंटन हुड्डा अपने ढंग से करेंगे। भले ही इसमें बाकी गुटों के नेताओं को उनकी राजनीतिक क्षमता के हिसाब से हिस्सेदारी दी जाएगी।
हाईकमान ने अभी तक इस बारे में कोई फैसला इसलिए नहीं लिया, क्योंकि दलील दी जा रही कि फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद खाली है। हुड्डा समर्थक विधायक इस दलील से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि तमाम काम और बहाने छोड़कर हरियाणा के बारे में इसलिए फैसला जरूरी है, क्योंकि यहां अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
महा परिवर्तन रैली के बहाने हुड्डा का रणनीतिक अंदाज
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार हुड्डा ने बड़े ही रणनीतिक अंदाज में 18 अगस्त की रैली रखी है। तब तक हाईकमान ने कोई निर्णय कर लिया तो ठीक अन्यथा इस रैली में हुड्डा किसी नई पार्टी का संकेत देने के साथ ही अपने चुनाव लडऩे वाले कार्यकर्ताओं, समर्थकों, पूर्व विधायकों तथा मौजूदा विधायकों को एक्टीवेट (सक्रिय) कर सकते हैं। यहां यह जिक्र करना भी जरूरी है कि कांग्रेस में रहते हुए पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल और चौ. भजनलाल ने भी अलग पार्टियां बनाई थी, लेकिन उनको अपनी पार्टियों का एक समय के बाद कांग्रेस में ही विलय करना पड़ा।
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