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अनेक एतिहासिक पहलुओं को समेटे है पलवल शहर

हरियाणा का प्राचीन शहर पलवल अपने आंचल में अनेक ऐतिहासिक पहलुओं को समेटे हुए है। दूर से देखने में यहां का पुराना शहर एक पहाड़ी पर बसा नजर आता है, जबकि यह एक ऐसे टीले पर बसा है, जो कभी प्राकृतिक आपदा में उलट गया था। यही कारण है कि टीले की खुदाई में आज भी हड्डिया निकलती हैं। द्वापर के साथ-साथ पांडव व मुगलकालीन सभ्यता की छाप भी शहर में दिखती है। वहीं महात्मा गांधी की गिरफ्तारी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आगमन की यादें भी शहर अपने में समेटे हुए है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 06:18 PM (IST)Updated: Tue, 30 Oct 2018 06:18 PM (IST)
अनेक एतिहासिक पहलुओं को समेटे है पलवल शहर
अनेक एतिहासिक पहलुओं को समेटे है पलवल शहर

सुरेंद्र चौहान, पलवल

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प्राचीन शहर पलवल अपने आंचल में अनेक ऐतिहासिक पहलुओं को समेटे हुए है। दूर से देखने में यहां का पुराना शहर एक पहाड़ी पर बसा नजर आता है जबकि यह एक ऐसे टीले पर बसा है जो कभी प्राकृतिक आपदा में उलट गया था। यही कारण है कि टीले की खोदाई में आज भी हड्डियां निकलती हैं। द्वापर के साथ-साथ पांडव व मुगलकालीन सभ्यता की छाप भी शहर में दिखती है। वहीं महात्मा गांधी की गिरफ्तारी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आगमन की यादें भी शहर अपने में समेटे हुए है। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि

ब्रजमंडल से सटे पलवल नगरी एक ऐतिहासिक नगर है। माना जाता है कि अत्यंत बलशाली दानव पलंबासुर का वध भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम ने द्वापर युग में यहीं पर किया था। यह नगर उस समय पलंबासुर दानव की राजधानी थी, इसी कारण शहर का नाम पलवल पड़ गया। इस शहर का संबंध महाभारत-काल से भी है। पलंबासुर रामायण के मारीच असुर का वंशज था।

जनश्रुति के अनुसार पांडव अज्ञातवास के दौरान यहीं के घने जंगलों में रहते थे। पलवल में स्थित पंचवटी मंदिर पांडवों के समय का ही है और उन्होंने अज्ञातवास का कुछ समय यहीं पर बिताया था। उनकी याद में ही इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। यहां एक पुराना तालाब था, जो द्रोपदी घाट के नाम से प्रसिद्ध था। यहां पांच पुराने वट वृक्ष भी थे। गांवों में स्थित हैं बहुत से स्थान

ब्रज नगरी की उत्तरी सीमा से सटे पलवल के गांव खांबी में भगवान बलदाऊ का ब्रज खंभ भी है। ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा का शुभारंभ भी बंचारी स्थित बलदाऊ जी मंदिर से होता है। भुलवाना में चमेली वन, गोड़ोता में बहकवन, शेषसाई में लक्ष्मीनारायण मंदिर, होडल में पांडूवन मंदिर जैसे बहुत से स्थान हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण की याद दिलाते हैं। बौद्धकालीन यादें भी जुड़ी

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार उपमंडल के गांव अहरवां, जिसको प्राचीनकाल में आहारवन भी कहा जाता था। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत में भी मिलता है। मुगल शासनकाल के समय समीपवर्ती क्षेत्र सहित यह नगर ड्यूबोजन को जागीर के रूप में सौंप दिया गया। दिल्ली के जिर्मा खां को लार्ड लेक द्वारा पराजित किए जाने पर अंग्रेजों ने फिर इसे अपने अधिकार में ले लिया। ऐतिहासिक मुगलकालीन किला भी पलवल की सुंदरता में चार चांद लगा देता है।

इसके अलावा ढेर मोहल्ले पर स्थित गंगा मंदिर व शिवपुरी में स्थित जंगेश्वर मंदिर भी यहां की ऐतिहासिक धरोहर है। गंगा मंदिर से तो अनेक बौद्धकालीन यादें भी जुड़ी हुई है। अनेक प्राचीन मूर्तियां भी यहां से मिली है। गांव अलावलपुर स्थित बनी वाले का मंदिर भी यहां की शोभा बढ़ा रहे हैं। बापू और नेताजी की यादें भी जुड़ी हैं शहर से

अंग्रेजी शासन में सरकार ने रौलट एक्ट पास किया था। इसमें सरकार किसी को भी बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती थी। पूरे देश में इसका विरोध हुआ। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में भी एक सभा रखी गई, जिसमें महात्मा गांधी को भी बुलाया गया। पलवल भी तब पंजाब का हिस्सा था। सरकार ने गांधीजी के पंजाब प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। पंजाब जाते हुए 10 अप्रैल 1919 को अंग्रेजी सरकार ने पलवल रेलवे स्टेशन पर गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया। उनकी गिरफ्तारी की याद को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए स्वाधीनता के दीवानों ने यहां गांधी सेवाश्रम की स्थापना की। इस आश्रम की नींव आजादी के अमर सपूत नेताजी सुभाष चंद बोस ने गांधीजी के जन्मदिन दो अक्टूबर 1919 को रखी।


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