पलवल में ही पड़ी थी दलाल व चौटाला के बीच कटु संबंधों की नींव
मंगलवार को विधानसभा में एक दूसरे को जूता दिखाने वाले विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अभय ¨सह चौटाला के परिवार व पलवल के विधायक करण ¨सह दलाल के बीच कटु संबंधों की नींव वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान पलवल में ही पड़ी थी। उससे पूर्व चौटाला परिवार तथा दलाल के बीच कभी मैत्रीपूर्ण संबंध रहे तो कभी खट्टे-मीठे अनुभव बने।
संजय मग्गू, पलवल
मंगलवार को विधानसभा में एक दूसरे को जूता दिखाने वाले विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अभय ¨सह चौटाला के परिवार व पलवल के विधायक कर्ण ¨सह दलाल के बीच कटु संबंधों की नींव वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान पलवल में ही पड़ी थी। उससे पूर्व चौटाला परिवार तथा दलाल के बीच कभी मैत्रीपूर्ण संबंध रहे तो कभी खट्टे-मीठे अनुभव बने। वर्ष 1999 में हसनपुर में हुई एक सभा में जहां विधायक कर्ण ¨सह दलाल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला का जमकर यशोगान किया था। वर्ष 1992 में पहली बार विधायक बनने पर ताऊ देवीलाल ने सार्वजनिक रूप से दलाल की पीठ थपथपाई थी।
राजनीति में रुचि रखने वाले लोग बताते हैं कि 1999 से पूर्व दलाल व चौटाला परिवार में कोई खास तल्खी नहीं थी। लेकिन दलाल के विश्वस्त सहयोगी केशव देव मुंजाल बताते हैं कि वर्ष 1993 में उपचुनाव जीतने के बाद जब ओमप्रकाश चौटाला विधानसभा में पहुंच गए थे तो उस समय भी दलाल व चौटाला के बीच जुबानी जंग हुई थी। 1996 में स्वर्गीय बंसीलाल के नेतृत्व में हविपा की सरकार बनी तथा ओमप्रकाश चौटाला विपक्ष के नेता थे। उस समय दलाल संसदीय कार्य मंत्री हुआ करते थे तथा उस समय भी दलाल व चौटाला के बीच तल्खी भरी बातें सामने आती रहती थीं। लेकिन इन सबके बीच भी जब हविपा-भाजपा सरकार का पतन हुआ तो चौटाला को सीएम बनाने में दलाल भी मुख्य भूमिका में थे। इतना ही नहीं दलाल ने चौटाला का सार्वजनिक रूप से यशोगान भी किया तो चौटाला ने भी उनसे खूब गलबहियां की।
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि इनेलो के कुछ नजदीकी लोग चाहते थे कि दलाल चौटाला परिवार के साथ राजनीति करें तथा उस समय चौटाला के विश्वस्त रहे स्वर्गीय धीरपाल व संपत ¨सह इस दोस्ती को परवान चढ़ाने के लिए कई बार दलाल के निवास पर भी आए थे, लेकिन यह बात सिरे नहीं चढ़ सकी। वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में दलाल भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन इनेलो व भाजपा में समझौता होने के चलते चौटाला ने पलवल को इनेलो के खाते में रखा तथा दलाल को शिकस्त देने के लिए खूब जोर भी लगाया। उस चुनाव में दलाल जीत गए तथा यहीं से ही कटुता की ऐसी नींव पड़ी जो कि विधानसभा में जूते दिखाने तक पहुंच गई।