उजाला करने वाले झेल रहे हैं बेरोजगारी की मार
चंद्रप्रकाश गर्ग, होडल बाजार में सस्ते इलेक्ट्रोनिक सामान की बिक्री के चलते मिट्टी के बर्तन अ
चंद्रप्रकाश गर्ग, होडल
बाजार में सस्ते इलेक्ट्रोनिक सामान की बिक्री के चलते मिट्टी के बर्तन और दीपावली पर घरों में उजाले के लिए दीये बनाने वाले प्रजापति वर्ग के कारीगर बेरोजगारी की मार झेलने को मजबूर हैं। हालांकि कुछेक परिवार अपने इस पुस्तैनी कार्य को बचाने का भी प्रयास कर रहे हैं। बर्तन बनाने के दौरान इन्हें कई परेशानियां उठानी पड़ रही हैं।
सरकार द्वारा इन्हें किसी भी प्रकार की सहायता मुहैया उपलब्ध नहीं कराने और त्यौहारों के समय इनके द्वारा निर्मित किए गए मिट्टी के बर्तन, दीपक, गुल्लक, करवे व अन्य उत्पादों की बिक्री में कमी आने के कारण अब इस कार्य से मोह भंग होता जा रहा है। कुछ वर्ष पहले बर्तनों में इस्तेमाल होने वाली चिकनी मिट्टी जहां जोहड़ों से मुफ्त में उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन अब मिट्टी के लिए वे जोहडों की तलाश के लिए भटकते रहते हैं।
कारीगरों की माने तो पहले जिन मिट्टी दीयों को तैयार करने में 10 से 15 रुपये प्रति सैकड़ा की लागत आती थी, आज उन्हीं को तैयार करने में 40 से 50 रुपये प्रति सैंकड़ा की लागत आ रही है, जिसमें पकाने और बिजली का खर्च अलग से होता है। इस कारण कारीगरों को उनकी मेहनत भी नहीं मिल पा रही है। इसी के चलते अब मिट्टी के बर्तन आदि तैयार करने वाले कारीगरों का इस पुस्तैनी कार्य अब छूटता जा रहा है।
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बढ़ती मंहगाई और मिट्टी से बने बर्तनों की मांग में कमी होने के बावजूद भी वह अपने पुस्तैनी कार्य जुटे हुए हैं। पर्याप्त मुनाफा नहीं मिलने के कारण नई पीढ़ी अब इस कार्य को करना नहीं चाहती है।
- बिज्जन
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मिट्टी के बर्तन तैयार करने के लिए सरकार द्वारा कारीगरों को किसी भी प्रकार की सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाती है, जिसके कारण अब इस कार्य से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है।
- चरण ¨सह