¨हदी के लिए न्यौछावर हैं चैन्नई के जयारामन
तमिल भाषी तथा चेन्नई निवासी 67 वर्षीय जयारामन एस पर राष्ट्र भाषा ¨हदी का ऐसा भूत सवार हुआ कि उम्र के इस पड़ाव पर वे साइकिल लेकर ¨हदी के प्रचार प्रसार में जुट गए। वे साइकिल पर देशभर का भ्रमण करते हुए लोगों को ¨हदी सीखने के लिए प्रेरित करते हैं तथा उन्हें बताते हैं कि ¨हदी ही ऐसी भाषा है जो सारे देश को जोड़कर रख सकती है। उन्होंने अपना जीवन ¨हदी के लिए न्यौछावर किया हुआ है।
संजीव मंगला, पलवल
तमिल भाषी तथा चेन्नई के कोडमवाकम निवासी 67 वर्षीय जयारामन एस पर राष्ट्र भाषा ¨हदी के प्रति ऐसा प्रेम उमड़ा कि उम्र के इस पड़ाव पर वे साइकिल लेकर ¨हदी के प्रचार प्रसार में जुट गए। वे साइकिल पर देशभर का भ्रमण करते हुए लोगों को ¨हदी सीखने के लिए प्रेरित करते हैं तथा उन्हें बताते हैं कि ¨हदी ही ऐसी भाषा है जो सारे देश को जोड़कर रख सकती है। उन्होंने अपना जीवन ¨हदी के लिए न्यौछावर किया हुआ है।
शनिवार को दिल्ली से यात्रा करते हुए पलवल पहुंचे जयारामन ने बताया कि वे बैंक आफ इंडिया से प्रबंधक पद से सेवानिवृत हैं। उनके पिताजी ¨हदी के जबरदस्त समर्थक थे। जब तमिलनाडु में ¨हदी विरोध का राजनीतिक आंदोलन चला था, तो आंदोलनकारियों ने उनके पिता को भी काफी धमकाया था। जब उनके पिता ने साफ कह दिया था कि बेशक उन्हें मार दो, लेकिन वे लोगों को ¨हदी सिखाते रहेंगे। अपने पिताजी से ही उन्होंने प्रेरणा ली, ¨हदी सीखी तथा आजकल ¨हदी के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। वे पंजाब व कश्मीर में भी ¨हदी का प्रचार कर चुके हैं। देश की सीमाओं पर साइकिल से जाकर उन्होंने ¨हदी का प्रचार किया है। उनका लक्ष्य ¨हदी को देशभर में उसका सम्मान दिलाना है।
जया रामन के अनुसार वे प्रतिदिन लगभग 100 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं। इससे उन्हें थकान तो होती है, पर आराम करके थकान को मिटा लेते हैं। वे सुबह जल्दी यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इसी तरह वे शाम को भी यात्रा कर लेते हैं। धूप से बचने का प्रयास करते हैं। इस दौरान लोगों से मिलते हैं तथा सरकारी स्कूलों में छात्रों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। रात को किसी धर्मशाला या किसी के भी घर ठहर जाते हैं। पूरी तरह शाकाहारी हैं तथा हर प्रदेश का भोजन उन्हें पसंद है। वे टेबल टेनिस शतरंज व कैरम के भी खिलाड़ी हैं। उनके अनुसार तमिलनाडु सहित समस्त दक्षिण भारत में आम लोगों के बीच ¨हदी का कोई विरोध नहीं है। विरोध केवल राजनीतिक है। आम आदमी ¨हदी सीखना चाहता है। क्योंकि, ¨हदी के बिना काम नहीं चल सकता। जो लोग राजनीतिक कारणों से ¨हदी विरोधी हैं, वो दक्षिण भारतीय भाषाओं का भला नहीं चाहते। क्योंकि जब ¨हदी का विरोध होगा तो ¨हदी भाषी भी विरोध करने वालों की भाषा का अच्छी नजर से नहीं देखेंगे। ¨हदी विरोधी राजनीतिज्ञ तो पैसे की भाषा जानते हैं। उनके अनुसार वे जहां भी जाते हैं, उन्हें लोगों का पूरा प्यार मिलता है।