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साइकिल बनी घर जाने का सहारा, कालाबाजारियों ने इसमें भी मारा

श्रवण कुमार बेटी बन साइकिल से पिता को गुरुग्राम से दरभंगा (बिहार) तक ले जाने वाली ज्योति सोशल मीडिया प्रिट तथा इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया सभी जगह चर्चा में है। नेताओं से अभिनेता तक ज्योति के हौंसले तथा जज्बे को सलाम कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 07:31 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 07:31 PM (IST)
साइकिल बनी घर जाने का सहारा, कालाबाजारियों ने इसमें भी मारा

संजय मग्गू, पलवल

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श्रवण कुमार की तरह अपने बीमार पिता को साइकिल से गुरुग्राम से दरभंगा (बिहार) तक ले जाने वाली बेटी ज्योति सोशल मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया पर चर्चा में है। नेताओं से लेकर अभिनेता तक ज्योति के हौसले व जज्बे को सलाम कर रहे हैं। बेटी ने जो हौसला दिखाया वह वाकई काबिले तारीफ है और पीएम मोदी के आत्मनिर्भर बनने के संदेश की राह में मील का पत्थर। ज्योति तो चर्चाओं में है ही, लेकिन उप्र, बिहार के हजारों कामगारों ने साइकिल को अपने घर जाने का सहारा बनाया तथा कई लोगों ने तो नई साइकिल भी खरीदी थी। पर कालाबाजियों ने साइकिल बिक्री में भी 20 फीसद तक ब्लैक कर मजबूर लोगों के जख्मों पर नमक डालने का काम किया।

घर जाने को आतुर दूसरे प्रदेशों के कामगारों को जब कोई रास्ता नहीं दिख रहा था तो उन्होंने साइकिल को विकल्प के रुप में चुना था। जिन लोगों के पास साइकिल थी उनका तो ठीक है लेकिन जिनके पास पहले से साइकिल नहीं थी उन्होंने अपनी जमा पूंजी घर जाने के लिए साइकिल खरीदने में लगा दी। शहर के साइकिल विक्रेता इस बात की गवाही देते हैं और बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान शहर में 500 से अधिक साइकिलें बिकी। इसके खरीदार दूसरे प्रदेशों के कामगार रहे। बाजारों में साइकिल बिक्री की वेटिग भी रही तथा जब शहर के व्यापारियों का स्टॉक खत्म हो गया तो पिनंगवा के थोक विक्रेताओं ने 300 से 500 रुपये तक की ब्लैक के साथ इनकी बिक्री की।

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बॉक्स : हरियाणा में कही नहीं बनती बड़ी साइकिल

दशकों बाद फिर से साइकिल शान की सवारी बनी तो सही, लेकिन केवल कामगारों के लिए। हालांकि धनाढ़य वर्ग के लोग तथा युवा साइकिल खरीदते तो हैं, लेकिन शौकिया और व्यायाम के तौर पर। शहर के सबसे पुराने साइकिल विक्रेता मैसर्ज मोहन साइकिल एंड ट्रंक के संचालक ललित कुमार बताते हैं कि हरियाणा में साइकिल बनाने की कोई इंडस्ट्री नहीं है। हालांकि बच्चों की साइकिलें झज्जर तथा गुरुग्राम जिलों में बनती हैं जिनकी एनसीआर के कई जिलों में आपूर्ति होती है।

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शहर में लॉकडाउन के दौरान 500 से अधिक साइकिलों की बिक्री हुई है। शहर में केवल आठ साइकिल की दुकानें हैं तथा सभी के पास स्टॉक में 200 के करीब साइकिल थीं। बाद में पिनंगवा से साइकिल मंगाई गई, लेकिन वहां एक साइकिल पर 300 से 500 रुपये तक ब्लैक की गई।

- योगेश भयाना, साइकिल विक्रेता समाप्त

संजय मग्गू


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