कृषि सलाह : चूहों की रोकथाम के लिए सामूहिक अभियान जरूरी
कृषि विशेषज्ञ डा. महावीर सिंह मलिक ने कहा कि चूहे फसलों को तथा खलिहान व भंडारण में खाद्यान्न को खाकर जितना नुकसान करते हैं उससे कई गुना हानि उनके बालों मल-मूत्र तथा मृत शरीर से होती है।
जागरण संवाददाता, पलवल : कृषि विशेषज्ञ डा. महावीर सिंह मलिक ने कहा कि चूहे फसलों को तथा खलिहान व भंडारण में खाद्यान्न को खाकर जितना नुकसान करते हैं, उससे कई गुना हानि उनके बालों, मल-मूत्र तथा मृत शरीर से होती है। हालांकि जनवरी माह खेतों में चूहा नियंत्रण का सबसे उपयुक्त समय होता है। इस समय फसल छोटी होने के कारण उनके बिलों को ढूंढना आसान हो जाता है। चूहों द्वारा कुल कृषि उत्पादन का 8-10 फीसद भाग नष्ट कर देने से देश को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है। चूहों द्वारा फसलों, अनाज, घरेलू सामान, कच्चे बांध, सिचाई की नालियों, कीमती कागज, कपड़े आदि को भारी नुकसान पहुंचाया जाता है।
डा. मलिक ने बताया कि चूहे फसलों को हानि पहुंचाने के साथ प्लेग व लेप्टोस्पायरोसिस नामक संक्रामक रोग भी फैलाते हैं। चूहों के पेशाब में लेप्टोसोरायसिस नामक जीवाणु होते हैं जो अनाज, दालों, सब्जियों तथा फलों के माध्यम से मनुष्यों में पहुंच जाता हैं। इसके अलावा यह रोग खेत में काम करने वाले किसानों व सीवर सफाई कर्मचारियों में नमी व कीचड़ युक्त माहौल में चूहों के मूत्र करने से पहुंचकर बुखार के साथ लीवर व किडनी को भी प्रभावित करता है। सामूहिक रूप से अभियान चलाकर ही चूहों का नियंत्रण किया जा सकता है। खेतों में चूहों की रोकथाम जहरीले रसायनों द्वारा ही संभव हो पाती है। चूहों का स्वभाव :
चूहों में खाने, सुनने, स्वाद चखने तथा सूंघने की विशेष शक्ति के कारण इनका नियंत्रण करना बहुत कठिन होता है। मादा चूहा एक बार में छह से 10 बच्चे, एक वर्ष में तीन से चार बार देती है। इस प्रकार यदि यह मरे नहीं तो इनकी संख्या एक जोड़े से एक वर्ष में 800 तथा तीन से चार वर्ष में लाखों पहुंच सकती है। घरों में चूहों को पिजरे में पकड़कर तथा घर में बिल्ली पाल कर छोटे स्तर पर इनका नियंत्रण संभव है। चूहों का प्राकृतिक नियंत्रण, बाज, उल्लू, सांप, नेवला, चील, गरुड़, सियार, जंगली बिलाव आदि भी खेत में करते रहते हैं। रासायनिक नियंत्रण :
जिक फोस्फाइड चूहों को मारने के लिए बहुत ही कारगर विष है। इससे जहरीला चुग्गा बनाने के लिए जवाहर, मक्का, बाजरा, गेहूं, चना आदि का एक किलोग्राम आटा या बेसन या दाने लेकर उसमें 25 ग्राम जिक फोस्फाइड विष, 20 ग्राम गुड़, चीनी या बूरा तथा 20 ग्राम सरसों का तेल मिलाकर व विषाक्त चुग्गा बनाना चाहिए। इस जहरीले चुग्गे की 10-10 ग्राम मात्रा से कागज की पुड़िया बनाकर चूहों के बिलों में रखनी चाहिए। जिक फास्फाइड चुग्गा में कभी भी पानी न मिलाएं।
विषाक्त चुग्गा प्रयोग करने से दो-तीन दिन पहले अनाज के दाने या आटे की सरसों के तेल मिलाकर बनाई गोलियां या पुड़िया रखकर चूहों को लुभाना चाहिए। इसके बाद ही विषाक्त चुग्गा जिदा बिलों में रखें। चुग्गा बनाने के लिए कभी घर के बर्तनों का प्रयोग ना करें। विष मिला चुग्गा व चूहे मार दवा बच्चों, पालतू पशुओं, जानवरों तथा पक्षियों की पहुंच से दूर रखें। दवा मिलाने के लिए रबड़ के दस्ताने प्रयोग में लाएं तथा विषाक्त चुग्गा बनाने के बाद हाथों को अच्छी तरह साबुन से धो लें। चुग्गा बनाते समय धूम्रपान व खानपान नहीं करना चाहिए। यदि कुछ किसान ही अपने खेत पर चूहे मार दवा रखेंगे तो चूहे वहां से भागकर दूसरे किसान के खेतों में पहुंच जाते हैं। अत: चूहामार अभियान सभी किसानों एवं पंचायतों के साथ मिलकर ही चलाया जाए। खेतों के साथ-साथ खाली स्थानों, नहर, सड़क व लाइन के किनारे चूहा नियंत्रण अभियान चलाना जरूरी है।
- डा. महावीर मलिक, कृषि विशेषज्ञ