घरेलू ¨हसा महिलाओं के विकास में बाधक
अंतराम खटाना, नूंह आए दिन हमारे समाज में महिलाओं के साथ ¨हसा की खबरें बढ़ रही है।
अंतराम खटाना, नूंह
आए दिन हमारे समाज में महिलाओं के साथ ¨हसा की खबरें बढ़ रही है। इस वर्ष जिले में घरेलू ¨हसा के अभी तक 11 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं बीते वर्ष घरेलू ¨हसा के 52 मामले दर्ज किए गए थे। महिला अपराधों में जिले का पुन्हाना पहले व तावडू खंड दूसरे स्थान पर है। जो कि महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से ¨चता का विषय है। हालांकि महिला सरंक्षण कम बाल विवाह निषेध कार्यालय द्वारा काउंस¨लग के जरिये अधिकतर मामलों को निपटा लिया जाता है। लेकिन घरेलू ¨हसा के कई ऐसे मामले आते हैं, जिनमें समझौता करना मुश्किल होता है, इस तरह के मामलों में न्यायालय का सहारा लेना पड़ता है। प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों ने बेटियों को बचाने लिए बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान चलाया हुआ है। लेकिन महिलाओं को घरेलू ¨हसा के प्रभाव से बचाने के लिए भी इस तरह के अभियान चलाने की जरूरत है।
क्या है घरेलू ¨हसा :
किसी भी महिला के साथ घर के अंदर होने वाली किसी भी तरह की ¨हसा, मारपीट, उत्पीड़न आदि के मामले इसी कानून के तहत आते हैं। यौन उत्पीड़न के मामलों में अलग कानून है लेकिन उसे इसके साथ जोड़ा जा सकता है। महिला को ताने देना, गाली देना, उसका अपमान करना, उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करना, जबरन शादी के लिए बाध्य करना आदि जैसे मामले भी घरेलू ¨हसा के दायरे में आते हैं। पत्नी को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर करना, या फिर नौकरी करने से रोकना, दहेज की मांग के लिए मारपीट करना आदि भी इसके तहत आ सकते हैं।
घरेलू ¨हसा अधिनियम :
घरेलू ¨हसा अधिनियम 2005 में बनाया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे देश में लागू किया गया। इसका मकसद घरेलू रिश्तों में ¨हसा झेल रहीं महिलाओं को तत्काल और आपातकालीन राहत पहुंचाना है। यह कानून महिलाओं को घरेलू ¨हसा से बचाता है। भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं। भारत में पहला ऐसा कानून है, जो महिलाओं को अपने घर में रहने का अधिकार देता है। घरेलू ¨हसा विरोधी कानून के तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आíथक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकती है।
अदालत मददगार :
घरेलू ¨हसा से पीड़ित कोई भी महिला अदालत में जज के समक्ष स्वयं या वकील, सेवा प्रदान करने वाली संस्था या संरक्षण अधिकारी की मदद से अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगा सकती है। पीड़ित महिला के अलावा कोई भी पड़ोसी, परिवार का सदस्य, संस्थाएं या फिर खुद महिला की सहमति से अपने क्षेत्र के न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज कराकर बचावकारी आदेश हासिल कर सकती हैं। इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है।
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घरेलू ¨हसा महिला व उसके परिवार के विकास में बहुत बड़ी बाधा है। घरेलू लड़ाई व ¨हसा के कारण परिवार टूट जाता है। पति-पत्नी के झगड़े से बच्चों पर मानसिक रूप से प्रभाव पड़ता है। इसलिए घरेलू ¨हसा को रोकने के लिए सामूहिक रूप से सभी को कदम उठाने की जरूरत है।
मधु जैन, महिला संरक्षण सह बाल विवाह निषेध अधिकारी।