..और दहेज के खिलाफ शबाना के साथ उठ खड़ा हुआ उसका परिवार
शेर¨सह डागर, नूंह : इसलाम में निकाह के दौरान दहेज लेना और देना गुनाह (पाप) है। ि
शेर¨सह डागर, नूंह :
इसलाम में निकाह के दौरान दहेज लेना और देना गुनाह (पाप) है। फिर भी काजी और इमाम ऐसे निकाह क्यों करा रहे हैं? बेटियों को इस दहेज रूपी दानव से बचाना है तो आमिलों को ऐसे निकाहों का बहिष्कार करना होगा। ये विचार सहेली संस्था की राष्ट्रीय संयोजिका शबाना खान ने पिनगवां में लोगों दहेज के प्रति लोगों को जागरूक करते हुए कही। पिछले आठ वर्ष से दहेज प्रताड़ना के दर्द को सह रही शबाना खान ने देश को दहेज मुक्त बनाने के लिए अपने माता-पिता व छह सगी बहनों के साथ इस मुहिम की नूंह जिले से शुरुआत की है। दहेज नहीं, शिक्षा है बेटी का अधिकार, नारे साथ जागरूकता का अलख जगा रही शबाना की बच्चों की नाटक के जरिये ही नहीं आपबीती बताकर भी दहेज पर प्रहार कर रही हैं।
अपना दर्द सांझा करते हुए शबाना ने बताया दस साल पहले उसकी शादी हुई थी, लेकिन कम दहेज के कारण ससुराल वाले आज तक उसे परेशान करते आ रहे हैं। जिसकी वजह से वह आठ साल से अपने पिता के घर पर रहकर अपनी लड़ाई लड़ रही है। दहेज के कारण हर साल लाखों बेटियां घर से बेघर हो रही हैं। भले ही देश के कानून और इसलाम में दहेज का लेना-देना मना हो फिर भी ये खुलेआम चल रहा है। इसे रोकने के लिए न तो दीनी उमेला कोई कदम उठा रहे हैं और न ही कानून सख्ती दिखा रहा है। शबाना ने आग्रह किया जिन निकाहों में दहेज का लेना-देना है उनसे काजी तौबा करें। पंडित भी इसमें आगे आएं।
शबाना की छोटी बहन शाहीन बताती है दहेज की खातिर जब उनकी बहन का घर बर्बाद हुआ तो हम बाकी पांच बहनों ने तय किया है कि वो भी शादी नहीं करेंगी और दहेज के खिलाफ शुरू की गई मुहिम में बहन का साथ देंगी। शबाना खान के पिता फिरोज खान बताते हैं बहुत पहले उनके पूर्वज मेवात से जाकर दिल्ली बस गए। शबाना बेटी का दस साल पहले रिश्ता किया। बेटी को बेहतरीन शिक्षा तो दी, लेकिन वह दहेज में कार और नगद पैसे नहीं दे सका। जिसकी वजह से बेटी का रिश्ता खराब हो गया है।