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पराली को आय का स्त्रोत बनाकर पर्यावरण संरक्षण में बनें भागीदार: उपायुक्त

उपायुक्त धीरेंद्र खड़गटा ने कहा कि भूमि से अनाज प्राप्त होता है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि हम अपनी भूमि के स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रखें।

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 06:51 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 05:07 AM (IST)
पराली को आय का स्त्रोत बनाकर पर्यावरण संरक्षण में बनें भागीदार: उपायुक्त
पराली को आय का स्त्रोत बनाकर पर्यावरण संरक्षण में बनें भागीदार: उपायुक्त

जागरण संवाददाता, नूंह: उपायुक्त धीरेंद्र खड़गटा ने कहा कि भूमि से अनाज प्राप्त होता है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि हम अपनी भूमि के स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रखें। फसल कटाई के सीजन के दौरान प्रतिवर्ष किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे जहां एक तरफ भूमि बंजर होती है। वहीं, वायु प्रदूषण से मानव जीवन व जीव-जंतुओं पर भी संकट मंडराने लगता है। इसलिए पराली को आय का स्त्रोत बनाते हुए किसान पर्यावरण संरक्षण में अतुलनीय भूमिका निभा सकते हैं।

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उपायुक्त ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में सरकार की ओर से पराली न जलाते हुए उसकी खरीद करने के सार्थक कदम उठाए जा रहे हैं। कृषि विभाग के माध्यम से किसानों को पराली न जलाकर उसका सदुपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। फसल अवशेष जलाने वालों के खिलाफ प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। कोई भी किसान,व्यक्ति खेतों में पराली जलाता है तो उसे छह माह की जेल व जुर्माने अथवा दोनों का प्रावधान है। उपायुक्त ने जिला की ग्राम पंचायतों से आह्वान किया कि वे अपने-अपने गांवों में ग्राम सभा की बैठक में ग्रामीणों को पराली न जलाने की शपथ भी दिलवाएं। सकारात्मक सोच व दृढ़ संकल्प से ही हम जिले में पराली जलाने की घटनाओं पर शत प्रतिशत अंकुश लगा सकते हैं। इसलिए सरपंच अपना दायित्व गंभीरता से निभाएं और ग्रामीणों को पराली न जलाने के लिए जागरूक करें। ग्रामीणों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान व उसके प्रबंधन के बारे में विस्तार से बताएं। फसल अवशेषों में आग लगाने से हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और सांस लेने में तकलीफ होती है। कोरोना संक्रमित रोगियों के लिए यह प्रदूषण और भी अधिक नुकसानदायक है। वहीं, फसल अवशेष जलाने से पैदा हुए धुएं से अस्थमा व कैंसर जैसे रोगों को भी बढ़ावा मिलता है। पराली को जलाने से भूमि में मौजूद कई उपयोगी बैक्टीरिया व कीट नष्ट हो जाते हैं। वहीं, मिट्टी की जैविक गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। किसान पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। नागरिक सजगता का परिचय देते हुए पराली को न जलाएं बल्कि पराली के अवशेषों का उपयोग प्रभावी तरीके से करें। कोई भी व्यक्ति पराली को आग न लगाएं और दूसरों को भी इस बारे में जागरूक करें। सामूहिक संकल्प से ही हम जिला को प्रदूषण मुक्त बना सकते हैं।


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