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.. बलिहारी गुरु आपने गोविद दियो बताए

गुरु गोविद दोऊ खड़े काके लागू पांय बलिहारी गुरु आपने गोविद दियो बताए। कबीर दास द्वारा लिखी गईं उक्त पंक्तियां जीवन में गुरु के महत्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2020 05:43 PM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2020 05:43 PM (IST)
.. बलिहारी गुरु आपने गोविद दियो बताए

ओम प्रकाश बाजपेयी, नूंह

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गुरु गोविद दोऊ खड़े काके लागू पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविद दियो बताए। कबीर दास द्वारा लिखी गईं उक्त पंक्तियां जीवन में गुरु के महत्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला शिक्षक दिवस एक पर्व की तरह है, जो गुरुजनों के मान-सम्मान को बढ़ाता है। कहा जाता है कि किसी भी पेशे की तुलना अध्यापन से नहीं की जा सकती। ये दुनिया का सबसे नेक कार्य है। पांच सितंबर को पूरे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के लिए ही अध्यापन को समर्पित किया गया है। जिले के शिक्षाविदों ने अपने विचार कुछ यूं साझा किए। शिक्षकों का करें सम्मान

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे, जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन को दिए। वो विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिये प्रसिद्ध थे।डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था। उन्होंने 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र शिक्षक के रूप में अध्यापन करियर की शुरुआत की। शिक्षक विद्यार्थियो के जीवन के वास्तविक कुम्हार होते हैं, जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें। इसलिए, देश में सभी शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है। अपने शिक्षकों के महान कार्यों के बराबर हम उन्हें कुछ भी नहीं लौटा सकते। हालांकि, हम उन्हें सम्मान और धन्यावाद दे सकते हैं। हमें पूरे दिल से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम अपने शिक्षक का सम्मान करेंगे।

- अनूप सिंह जाखड़, जिला शिक्षा अधिकारी नूंह ग्रंथों में भी है गुरु की महिमा का वर्णन

बिना शिक्षक के इस दुनिया में हम सभी अधूरे हैं। शिक्षक दिवस गुरु की महत्ता बताने वाला दिवस है। शिक्षक का समाज में आदरणीय व सम्माननीय स्थान होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन को गुरु दिवस के रूप में स्वीकार किया गया है। बहुत सारे कवियों, गद्यकारों ने कितने ही पन्ने गुरु की महिमा में रंग डाले हैं। गुरुओं की महिमा का वृतांत ग्रंथों में भी मिलता है। जीवन में माता-पिता का स्थान भी कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन एवम खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। उनका ऋण हम किसी भी रूप में उतार नहीं सकते, लेकिन जिस समाज में रहना है, उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं। यद्यपि परिवार को बच्चे के प्रारंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है, लेकिन जीने का असली सलीका उसे शिक्षक ही सिखाता है। समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता, क्योंकि वह ना सिर्फ विद्यार्थी को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि उसके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है।

दिनेश गोयल, प्रवक्ता, राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय नूंह बड़ों का करें आदर

गुरु, शिक्षक, आचार्य, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति की व्याख्या करते हैं, जो आपको ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। यदि शिक्षक दिवस का सही महत्व समझना है तो हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं और उम्र में अपने शिक्षक से काफी छोटे हैं। और फिर हमारे संस्कार भी तो यही सिखाते है कि हमें अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर अपने क्रोध, ईष्र्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं, तो निश्चित ही हमारा व्यवहार हमें बहुत ऊंचाइयों तक ले जाएगा और तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाना भी सार्थक होगा। संत कबीर के शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। कच्चे घड़े की भांति स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जिस रूप में ढालो, वे ढल जाते हैं। वे स्कूल में जो सीखते हैं या जैसा उन्हें सिखाया जाता है, वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है, जैसा वह अपने आस-पास होता देखते हैं।

सरोज दहिया, उप जिला शिक्षा अधिकारी, नूंह हर मोड़ पर हाथ थामे रहते हैं गुरु

सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है, जो गुरु से मिलती है। गुरु का संबंध केवल शिक्षा से ही नहीं होता बल्कि वह तो हर मोड़ पर अपने छात्र का हाथ थामने के लिए तैयार रहता है। उसे सही सुझाव देता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है, जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। शिक्षक के लिए सभी छात्र समान होते हैं और वह सभी का कल्याण चाहता है। शिक्षक ही वह धुरी होता है, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करता है। वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उनके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है। किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।

कुसुम मलिक, प्रवक्ता, राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय फिरोजपुर झिरका


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