जल संचयन व संरक्षण को लेकर कोई रोडमैप नहीं
जल संचयन व संरक्षण को लेकर विभाग कतई गंभीर नहीं हैं। हर वर्ष अधिकारियों द्वारा इन विषयों को मूर्तरूप देने को लेकर लंबे-चौड़े वायदे अवश्य किए जाते हैं लेकिन मूल धरातल पर न्यूनतम कार्य होता है।
संवाद सहयोगी, तावडू: जल संचयन व संरक्षण को लेकर विभाग गंभीर नहीं हैं। हर वर्ष अधिकारियों द्वारा इन विषयों को मूर्तरूप देने को लेकर लंबे-चौड़े वायदे किए जाते हैं, लेकिन धरातल पर न्यूनतम कार्य ही होता है। हैरानी की बात यह है कि ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रशासन की ओर से अधिकारियों पर कोई कार्रवाई तक नहीं की जाती।
भूगर्भ जल स्तर में सुधार के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम के माध्यम से बारिश का पानी जमा किया जाता है। गत वर्ष शासन स्तर से सभी सरकारी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लगाने के निर्देश दिए गए थे। जिले के काफी सरकारी भवनों में ये सिस्टम लगे भी, लेकिन वर्तमान में ये सब फेल हो चुके हैं। वहीं प्राइवेट सेक्टर की इमारतों में भी जल संचयन को लेकर कोई सिस्टम नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का समुचित रूप से जीर्णोद्धार नहीं किया जा रहा है।
यही कारण है कि कई वर्षों से भूजल स्तर गिरता ही जा रहा है। नब्बे के दशक में जहां 40-50 फीट पर पानी निकलता था वहीं अब 150-250 फीट पर निकलता है। अगर यही सिस्टम जारी रहा तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में यह स्थिति कहां पहुंच जाएगी।
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जल संचयन को लेकर पिछले साल भी लगभग 20 जगह रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लगाए गए थे। अब दोबारा रिचार्ज को लेकर तैयार किया जाएगा। हां, इस संदर्भ में उनके विभाग द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों से लोगों को समय-समय पर जागरूक किया जाता रहता है।
फैजल इब्राहिम, कार्यकारी अभियंता, जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग, नूंह
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जिला परिषद की ओर से इंटीग्रेटेड वाटरशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम (आइडब्ल्यूडीपी) व मनरेगा स्कीमों से जल संचयन व संरक्षण का कार्य होता है। इस बार आइडब्ल्यूडीपी से फिरोजपुर झिरका में 4 चैकडेम का निर्माण किया जाएगा। वहीं तालाब निर्माण व जीर्णोद्धार को लेकर मनरेगा के तहत जो प्रपोजल आता है उसे स्वीकृत कर लिया जाता है।
प्रदीप कुमार, सीईओ, जिला परिषद, नूंह