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जकात हर मुसलमान पर है फर्ज और फितरा देना है वाजिब

करते हुए कह रही हैं कि उन्हें दीन पर रहकर किन कामों को करना है और किन कामों से बचना है। मजहब ए इस्लाम में जकात (दान) और ईद पर दिया जाने वाला फितरा का खास मुकाम है। मुबारक महीने में इन्हें अता करने का सवाब कई गुणा बढ़ जाता है। क्योंकि इस महीने में हर नेकी का अल्लाह तबारक ताआला 70 गुणा अता करते हैं। उन्होंने बताया कि जकात देना हर मुसलमान पर फर्ज और गरीबों को फितरा तकसीम करना उसपर वाजिब है। अल्लाह तबारक ताआला ने कुरआन मजीद के जरीए फरमाया कि सालभर की कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा जकात के रूप में मिस्कीनों को देना हर मुसलमान पर फर्ज है। उन्होंने बताया कि अल्लाह के नबी मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्

By JagranEdited By: Published: Sat, 01 Jun 2019 06:36 PM (IST)Updated: Sat, 01 Jun 2019 06:36 PM (IST)
जकात हर मुसलमान पर है फर्ज और फितरा देना है वाजिब

संवाद सहयोगी, फिरोजपुर झिरका :

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शेर-ए-पंजाब मौलवी अथर ने कहा कि अल्लाह रब्बुल इज्जत ने माहे रमजान के मुबारक महीने में कुरआन मजीद नाजिल कर मुसलमानों को न केवल दीन पर चलने का तरीका सिखाया है बल्कि उन्हें दीन पर रहकर किस तरह जिदगी को बशर करना है यह भी तरीका बतलाया है। कुरआन मजीद की आयतें मुसलमानों को बयां करते हुए कह रही हैं कि उन्हें दीन पर रहकर किन कामों को करना है और किन कामों से बचना है। मजहब ए इस्लाम में जकात (दान) और ईद पर दिया जाने वाला फितरा का खास मुकाम है। मुबारक महीने में इन्हें अता करने का सवाब कई गुणा बढ़ जाता है। क्योंकि इस महीने में हर नेकी का अल्लाह तबारक वा ताआला 70 गुणा अता करते हैं। उन्होंने बताया कि जकात देना हर मुसलमान पर फर्ज और गरीबों को फितरा तकसीम करना उसपर वाजिब है। अल्लाह तबारक वा ताआला ने कुरआन मजीद के जरिए फरमाया कि सालभर की कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा जकात के रूप में मिस्कीनों को देना हर मुसलमान पर फर्ज है। उन्होंने बताया कि अल्लाह के नबी मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू व अलैही व सल्लम ने इरशाद फरमाया है कि ईद की नमाज के बाद फितरा देना वाजिब है। अगर कोई इसको अता नहीं करता तो उसके रोजे आसमान और जमीन के दरमियान लटकते रहते हैं। उन्होंने बताया कि अपनी पाख कमाई के हिस्से में से जकात देना फर्ज है। यह केवल मिस्कीनों, ऐसे मुसाफिरों को देना चाहिए जिनके पास कुछ नहीं बचा। अगर फितरा की बात करें तो घर के प्रत्येक सदस्य पर पौने तीन किलो गेहूं या इसके बराबर की कीमत देना वाजिब है। इसलिए मुसलमान खूब जकात और अपने वाजिब तरीके से फितरा जरूर दें।

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