..नहीं चेते तो लातूर बन जाएगा जिला
देश के कई राज्यों में पानी की गंभीर समस्या है लेकिन फिर भी जिले में वर्षा जल संचयन को लेकर प्रशासन के पास न तो कोई योजना है और न ही इस ओर किसी का ध्यान। प्रतिवर्ष नूंह जिले में भूमिगत जल स्तर नीचे जा रहा है । अगर कुछ वर्षों तक और यही हालात रहे तो नूंह जिला भी महाराष्ट्र के लातूर की तरह एक-एक बूंद पानी को तरसेगा। बारिश के पानी को एकत्रित एवं संग्रहित करके आगे चलकर उसका उपयोग किसी लाभकारी कार्य के लिए करने की पद्वति को वर्षा जल संचयन कहा जाता है। किसी भी वर्षा जल संग्रहण के तीन घटक हो
संवाद सहयोगी, तावडू: देश के कई राज्यों में पानी की गंभीर समस्या है, फिर भी जिले में वर्षा जल संचयन को लेकर प्रशासन के पास न तो कोई योजना है और न ही इस ओर किसी का ध्यान। प्रतिवर्ष नूंह जिले में भूमिगत जल स्तर नीचे जा रहा है। अगर कुछ वर्षों तक और यही हालात रहे तो नूंह जिला भी महाराष्ट्र के लातूर की तरह एक-एक बूंद पानी को तरसेगा।
बारिश के पानी को एकत्रित एवं संग्रहित करके आगे चलकर उसका उपयोग किसी लाभकारी कार्य के लिए करने की पद्धति को वर्षा जल संचयन कहा जाता है। किसी भी वर्षा जल संग्रहण के तीन घटक होते हैं। पानी एकत्र करना, उसे किसी जगह तक ले जाना एवं उसका संग्रह करना।
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार देश के कई राज्यों में पानी की गंभीर समस्या है। जल्द ही मानसून की गड़गड़ाहट शुरू हो जाएगी। लेकिन उससे पूर्व प्रशासन वर्षा जल संचयन व इस संदर्भ में लोगों को जागरुक करने को लेकर कितना गंभीर है, ये बड़ा मुद्दा है। जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग, जिला विकास एवं पंचायत विभाग व यहां तक कि उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के पास इस संदर्भ में अभी तक कोई योजना ही नहीं है।
कोई भी पंचायत व नगरपालिका प्रतिनिधि हो या फिर प्रशासनिक अधिकारी किसी ने भी इस संदर्भ में कार्य करना तो दूर की बात, मीटिगों में इस महत्वपूर्ण विषय पर बातचीत तक करना मुनासिब नहीं समझा। ग्राम स्वराज अभियान में ग्रामीणों व अधिकारियों द्वारा विभिन्न विषयों पर समस्याओं के निदान की रूपरेखा तो बनाई जा रही है लेकिन ये मुद्दा यहां भी गायब है। हालातों पर एक नजर : 90 के दशक में यहां लगभग 30 फुट पर पानी निकल जाता था लेकिन वर्तमान स्थिति भयंकर है। 100-250 फु़ट नीचे पानी निकलता है। सैकड़ों ट्यूबवेल फेल हो चुके हैं। जिले में कई स्थान तो ऐसे हैं जहां इससे भी नीचे तक भूमिगत जलस्तर पहुंच चुका है। बहुत से तालाब सूख चुके हैं। हारवेस्टिग सिस्टम नहीं: जिले में पानी की जबरदस्त किल्लत होने के बावजूद जिला प्रशासन का रेन वाटर हारवेस्टिग सिस्टम को लेकर उदासीन व लचर रवैया है। ये रवैया लोगों की समझ से बाहर है। खराब जल प्रबंधन के कारण जिले के कई सतह व भूगर्भ के जल स्त्रोत सूख चुके हैं। जागरूकता की कमी : जब लोगों को ये जानकारी ही नहीं होगी कि वर्षा जल संचयन के माध्यम क्या हैं, तो वे संचयन करेंगे कैसे? और अगर प्रशासन का रवैया कुछ वर्षों तक ऐसा ही रहा तो यहां के लोग भी महाराष्ट्र के लातूर के लोगों की तरह एक-एक बूंद के लिए तरसेंगे। सबसे पहले लोग घरों में सप्लाई होने वाले पानी की बचत करें। बहुत से लोग जितना पानी आम दिनचर्या में इस्तेमाल करते हैं, उससे कहीं ज्यादा व्यर्थ में बहाते हैं। लोग टोंटी व ट्यूबवेल चलाकर छोड़ देते हैं। जिस भी व्यक्ति की अवैध रूप से जल दोहन करने व व्यर्थ में पानी बहाने की शिकायत विभाग के पास आई उन पर कार्रवाई होगी।
- फैजल इब्राहिम, कार्यकारी अभियंता, जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग जल संचयन को लेकर प्रशासन गंभीर है। स्कूल व सार्वजनिक स्थानों पर प्रशासन द्वारा इस विषय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वर्षा जल संचयन को लेकर भी रूपरेखा बनाई जा रही है। इस संदर्भ में विभागीय अधिकारियों की मीटिग भी ली गई है।
- पंकज, उपायुक्त, नूंह
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